Saturday 26 August 2017

मौन हो तुम

मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
मंद मंद सुलगा रहा मन
अतृप्त प्रेम का ताप हो
नैन दर्पण आ बसे तुम
स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे
प्रीत भरे हृदय घट के
सकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो
तेरे नयन आलोक से
सजता मेरा रंग रूप है
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है
साँसों में जपकर न थकूँ
प्रभु मंत्र सा तुम जाप हो
रंग लिया हिय रंग में तेरे
कुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलक छवि तेरे डेरे
अश्रुजल से न मिट सके
वो अमिट अनंत संताप हो
मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
     #श्वेता🍁

  


चित्र साभार गूगल

Wednesday 23 August 2017

तीज

जय माता पार्वती जय हो बाबा शंकर
रख दीजे हाथ माथे कृपा करे हमपर
अटल सुहाग माँगे कर तीज व्रत हम
बना रहे जुग जुग साथ और सत सब
माँग का सिंदूर मेरा दम दम दमके
लाल हरी चुड़ियाँ खन खन खनके
प्रीत की सुगंध मेंहदी मह मह महके
बिछुआ पायल बजे छम छम छमके
सोलह सिंगार रूप लह लह लहके
बँधे खुशी आँचल में बरसे जमकर
जय माता पार्वती.........
पिया जी अँगना में स्वप्न दीप जलाई
सतरंगी सितारों से है रंगोली सजाई
सकल दुख संताप प्रभु चरण चढ़ाई
फूल मुसकाये गोदी में अरज लगाई
बना विश्वास रहे रामा यही है दुहाई
रहे पिया साथ मेरे मन से रमकर
जय माता पार्वती..........
जीवन की राहों में गाँठ एक जोड़ा
दुनिया जहान में ढूँढ लाए वर मोरा
नेह के नभ पिया मैं चाँद औ चकोरा
हाथ थाम चलूँ हिय प्रीत के हिलोरा
डोली में आई अब काँधे जाऊँ तोरा
प्रेम न पिया जी से भूल के  कमकर
जय माता पार्वती........
     #श्वेता🍁

Monday 21 August 2017

मैं रहूँ न रहूँ

फूलेंगे हरसिंगार
प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार
सूरज जोगी बनेगा
ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार
झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से
किरणें धरा को प्यार से चूमेगी
मैं रहूँ न रहूँ
मौसम की करवटों में
सिहरेगी मादक गुनगुनी धूप
पीपल की फुनगी पर
नवपात लजायेगी धर रक्तिम रूप
पपीहा, कोयल लगायेगे आवाज़
भँवर तितली रंगेगे मन के साज
फूट के नव कली महकेगी
मैं रहूँ न रहूँ
चार दिन बस चार दिन ही
मेरी कमी रूलायेगी
सजल नयनों में रिमझिम
अश्रुओं की बरखा आयेगी
थक कर किसी जीवन साँझ में
छोड़ चादर तन की चली जाऊँगी
मन की पाखी बनके उड़ उड़
यादों को सहलाऊँगी
अधर स्मित मुसकायेगे
मैं रहूँ न रहूँ
    #श्वेता🍁

Sunday 20 August 2017

हादसा


हंसते बोलते बतियाते लोग
पोटली में बँधे सफर की ख्वाहिशें
अपनों के साथ कुछ सपनों की बातें
अनजानों के साथ समसामयिक चर्चायें
अचार और पूरियों की गंध से भरे
कूपों में तृप्ति की डकार भरते
तरह तरह के रंग बिरंगे चादरों में
पाँव से कंधे तक ढके गर्दन निकाले
फोन,टैब पर मनोरंजन करते
कुशल क्षेम की खबर पहुँचाते
फुरसत के ये पल़ों को जीते
अपने सीटों के आरामदायक बिस्तर पर
हिलते डुलते आधे सोये जागे
माँ के आँचल से झाँकते
लजाते मनमोहक आँखों से बोलते
बेवजह खिलखिलाते
उछले कूदते रोते गाते लुभाते
नन्ही मासूम मुस्कान से रिझाते बच्चे
एक दूसरे को चोर निगाहों से देखते
अखबार पत्रिकाओं के बहाने से परिचय बनाते
सब प्रतीक्षा रत थे सफर के गंतव्य के लिए
ये सफर आखिरी बनेगा कौन जानता था
अचानक आए जलजले से
समय भी सहमकर थम गया कुछपल
चरमराकर लड़खड़ाते
चीखते थमते लोहे के पहिए बेपटरी
एक दूसरे के ऊपर चढ़े डिब्बे
सीना चीरते चीत्कारों से गूँज उठा
कराहों से पिघल जाए  पत्थर भी
चीखते मदद को पुकारते
बोगियों में दबे, आधे फँसे सुन्न होते तन
मिट्टी गर्द खून में लिथड़े
एक एक पल की साँस को लड़ते
बेकसूर लोगों के कातिल
अपंग तन का जीवनभर ढ़ोने को मजबूर
सहानुभूति के चार दिन और
जिल्लत को आजीवन झेलने को बेबस
इन आम लोगों के दर्द का जिम्मेदार
चंद नोटों के मुआवजे की चद्दर में
अपनी गलती ढकने की कोशिश करते
हवा में उड़ने वाले ओहदेदार
बड़ी बातें करते , हादसों की जाँच पर
कमिटियाँ बनाते एक दूसरे पर
आरोप प्रत्यारोप करते
समसामयिक कुकुरमुत्ते
खेद व्यक्त करते चार दिन में गायब हो जायेगे
और ज़िदगी फिर पटरी पर डगमगाती दौड़ेगी
ऐसे अनगित हादसे जारी रहेगे ,
सामर्थ्य वान, समृद्धशाली, डिजिटल भारत
की ओर कदम बढ़ाते
देश में ऐसी छोटी घटनाएँ आम जो है।
   #श्वेता

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...