शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019
तुम ही कहो
हाँ ,तुम सही कह रहे हो
फिर वही घिसे-पिटे
प्रेमाव्यक्ति के लिए प्रयुक्त
अलंकार,उपमान,शब्द
शायद शब्दकोश सीमित है;
प्रेम के लिये।
अब तुम ही कोई
नवीन विशेषण बतलाओ
फूल,चाँद, चम्पई,सुरमई
एहसास,अनुभूति
दोहराव हर बार
दिल के एहसास
बचपना छोड़ो
उम्र का लिहाज़ करो
महज़ साँसों का आना-जाना
कुछ महसूस कैसे होता है
धड़कन को स्टेथेस्कोप से चेक करो
अगर सूझे तो कोई
सिहरन का अलग राग बताओ
शारीरिक छंद मे उलझे हो
स्पंदन मन का समझ नहीं आता
प्रेम की परिभाषा में
रंग,बहार,मुस्कान की
और कितनी परत चढ़ाओगे
प्रेम की अभिव्यक्ति में
कुछ तो नयापन लाओ
बदलाव ही प्रकृति है
आँखों की बाते
साँसों की आहटें,
स्पर्श की गरमाहटें
अदृश्य चाहतें
उनींदी करवटें
बारिश की खुशबू,
यथार्थ की रेत से रगड़ाकर
लहुलूहान प्रेम
क्षणिक आवेश मात्र
मुँह चिढ़ाता उपहास करता है
पर फिर भी
आकर्षण मन का कहाँ धुँधलाता है?
शाब्दिक परिभाषा में
प्रेम का श्रृंगार पारंपरिक सही
मन की वृहत भावों को समझाने के लिए
मुझे यही भाषा आती है
सुनो,
तुम ही अब परिभाषित करो
नया नाम सुझाकर
प्रेम को उपकृत करो।
#श्वेता सिन्हा
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019
विश्लेषण
कभी सोचा न हो तो
सोचना जरूर
बहुत ज्यादा विश्लेषण
छानबीन करती नजरें
जरूरत से ज्यादा जागरुकता
कहीं खत्म न कर दे
आपके प्रिय संबंधों की
आत्मीयता
क्या ये सच नहीं कि
बातों ही बातों में
कभी अलमस्ती में
निभ जाते है
कई प्रगाढ़ रिश्ते
संबंध कोई मासिक किस्त
तो नहीं न
जो समय पर न भरो
तो फायदा न मिलेगा
कुछ बातें जो चुभती हो
किसी अपने की
कभी उनको नजरअंदाज़
कर मुसकुरा दो
खिल उठेगे नये कोंपल
फिर से स्नेह के
बंधनों की किताब में
जरुरत से ज्यादा
गलतियाँ ढूँढ़ना
ख़तरनाक है
रिश्तों के लिए।
#श्वेता
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