Friday, 8 February 2019

बूँदभर गंगाजल

मौन के
सूक्ष्म तंतुओं से 
अनवरत
रिसता, टीसता,भीगता
असहज,असह्य
भाव 
उलझकर खोल की
कठोर ,शून्य दीवारों में
बेआवाज़ कराहता,
घुटता,ताकता है
रह-रहकर,
झिर्रियों से झाँकता
मुक्ति के लिए
छटपटाता मन
बूँदभर गंगाजल
की आस में

#श्वेता सिन्हा

7 comments:

  1. आकुलता की आहट को समेटती कविता!

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  2. मन की अकुलाहट अपना गंतव्य पाने को तरसती है ...
    एक बूँद की आस ... गंगा जल की प्यास जो रहती है बाकी ... अच्छी रचना ...

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  3. Waah shweta ji...bahut khoob 👌👌👌

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  4. गहरी बात...
    कई बार पढ़कर कुछ मर्म समझ आता हैं,
    या हर बार नया भाव आता हैं।

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/108.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  6. विरह वेदना और अकुलाहट से भरी रचना प्रिय श्वेता | शुभकामनायें और मेरा प्यार |

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  7. सुन्दर लेखन, संवेदनाओं को त्वरित करा गई ।बहुत-बहुत बधाई ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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