Monday, 11 February 2019

फिर आया बसंत

धूल-धूसरित आम के पुराने नये गहरे हरे पत्तों के बीच से  स्निगध,कोमल,नरम,मूँगिया लाल पत्तियों के बीच हल्के हरे रंग से गझिन मोतियों सी गूँथी आम्र मंजरियों को देखकर मन मुग्ध हो उठा।
और फूट पड़ी कविता-

केसर बेसर डाल-डाल 
धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत

सरसों बाली देवे ताली
मदमाये महुआ रस प्याली
सिरिस ने रेशमी वेणी बाँधी
लहलही फुनगी कोमल जाली
बहती अमराई बौराई सी गंध
सखि रे! फिर आया बसंत

नवपुष्प रसीले ओंठ खुले
उफन-उफन मधु राग झरे
मह-मह चम्पा ले अंगड़ाई 
कानन केसरी चुनर कुसुमाई
गुंजित चीं-चीं सरगम दिगंत
सखि रे! फिर आया बसंत

प्रकृति का संदेश यह पावन
जीवन ऋतु अति मनभावन
तन जर्जर न मन हो शिथिल 
नव पल्लव मुस्कान सजाओ
श्वास सुवास आस अनंत
सखि रे! फिर आया बसंत।

#श्वेता सिन्हा

24 comments:

  1. वाह!!श्वेता ,क्या बात है!!!!लाजवाब !!👍

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    1. आभारी हूँ शुभा दी...बेहद शुक्रिया।

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    1. आभारी हूँ लोकेश जी..सादर शुक्रिया।

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  3. अमित जी..आपकी इतनी उत्साहवर्धक विस्तृत प्रतिक्रिया पढ़कर मन अभिभूत है हम दुबारा अपनी रचना पढ़ने गये कि क्या वाकई ऐसी रचना बनी है।
    ..बेहद शुक्रिया हृदयतल से आभार आपके स्नेह परिपूर्ण आशीष के लिए। सादर।

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  4. बहुत सुन्दर पोस्ट वाह बहुत खूब

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    1. जी बहुत आभारी हूँ...बेहद शुक्रिया।

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  5. वाह ! क्या शब्द सौंदर्य है !!!
    मधुलोभी भ्रमरोंसम
    हम मँडराते हर मधुर शब्द पर
    रसमय, मधुमय, भावसुधामय
    आकर्षण रख दीन्हा रचकर !!!
    गूँज रहे हैं शब्द शब्द से
    मधुर बाँसुरीवाले के स्वर
    ऋतुओं का राजा आया है
    पाहुन बनकर आज धरा पर !!!
    - मीना

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    1. वाह्ह्ह... वाह्ह्ह... अति सुंदर दी...बहुत सुंदर प्रतिक्रिया मेरी रचना से भी ज्यादा प्यारी ..आभारी हूँ दी..आपके स्नेह से मन अभिभूत है। बहुत शुक्रिया स्नेहाशीष बनाये रखिए।

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    2. वाह !!!!!! मीना बहन , प्रिय श्वेता की सुंदर मनभावन बासंती रचना और आप के सुंदर काव्यांश सोने पर सुहागा !!!!! इस जुगलबन्दी के क्या कहने !! आभार - आभार |

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    3. बड़ी प्यारी बहनें जो मिल गई हैं। बहुत सारा स्नेह आप दोनों को।

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  6. वाहहहहह
    क्या खूब लिखा है

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    1. आभारी हूँ सोलंकी जी..बेहद शुक्रिया..ब्लॉग पर आपकी.प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।

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  7. वाह..मन बसंती, रंग बसंती,ढ़ंग बसंती..
    उम्दा

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  8. केसर बेसर डाल-डाल
    धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
    उतर आम की फुनगी से
    सुमनों का मन बहकाये फाग
    तितली भँवरें गाये नेह के छंद
    सखि रे! फिर आया बसंत!!!!!
    प्रिय श्वेता -- मधुर , मनभावन बासंती काव्य के लिए सिर्फ वाह और कुछ नहीं | मेरा प्यार साथ में |

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  9. वाह, बहुत ही सुन्दर ऋतुराज वसंत का
    सांगोपांग वर्णन करती रचना

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  10. केसर बेसर डाल-डाल
    धरणी पीयरी चुनरी सँभाल

    क्या बात हैं रचनात्मकता चरम पर हैं,आपकी कलम को सलाम,बेहद उम्दा दर्ज़े का लेखन हैं ये।बहुत गहरी नज़र ज़ज़्बात चाहिये ये सब लिखने और कहने के लिये।
    आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये।

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  11. बसंत के आगमन को शब्द मंजरी से बाखूबी लिखा है ...
    प्राकृति भी खुद इस समय अपने सम्पूर्ण यौवन से महकती है दहकती है और जीवन खिल उठता है ... सुन्दर रचना ...

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  12. वाह, बहुत सुंदर

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  13. बहुत ही सुन्दर रचना

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  14. सरसों बाली देवे ताली
    मदमाये महुआ रस प्याली
    सिरिस ने रेशमी वेणी बाँधी
    लहलही फुनगी कोमल जाली
    बहती अमराई बौराई सी गंध
    सखि रे! फिर आया बसंत

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    1. बहुत ही प्यारी रचना

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  15. वाह आदरणीया दीदी जी कितनी मधुर रचना प्रस्तुत की आपने बसंत का सारा सौंदर्य साक्षात हमारे सामने आ गया हो जैसे
    वैसे....आपकी रचना हमने पढ़ी कम गुनगुनाई ज़्यादा
    मनोहारी रचना की खूब बधाई
    सादर नमन

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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