धूल-धूसरित आम के पुराने नये गहरे हरे पत्तों के बीच से स्निगध,कोमल,नरम,मूँगिया लाल पत्तियों के बीच हल्के हरे रंग से गझिन मोतियों सी गूँथी आम्र मंजरियों को देखकर मन मुग्ध हो उठा।
और फूट पड़ी कविता-
केसर बेसर डाल-डाल
धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत
सरसों बाली देवे ताली
मदमाये महुआ रस प्याली
सिरिस ने रेशमी वेणी बाँधी
लहलही फुनगी कोमल जाली
बहती अमराई बौराई सी गंध
सखि रे! फिर आया बसंत
नवपुष्प रसीले ओंठ खुले
उफन-उफन मधु राग झरे
मह-मह चम्पा ले अंगड़ाई
कानन केसरी चुनर कुसुमाई
गुंजित चीं-चीं सरगम दिगंत
सखि रे! फिर आया बसंत
प्रकृति का संदेश यह पावन
जीवन ऋतु अति मनभावन
तन जर्जर न मन हो शिथिल
नव पल्लव मुस्कान सजाओ
श्वास सुवास आस अनंत
सखि रे! फिर आया बसंत।
#श्वेता सिन्हा
केसर बेसर डाल-डाल
ReplyDeleteधरणी पीयरी चुनरी सँभाल...
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सरसों बाली देवे ताली
मदमाये महुआ रस प्याली...
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नवपुष्प रसीले ओंठ खुले
उफन-उफन मधु राग झरे...
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तन जर्जर न मन हो शिथिल
नव पल्लव मुस्कान सजाओ
श्वास सुवास आस अनंत
सखि रे! फिर आया बसंत।
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श्वेता जी, किसी एक विषय को इतने अलग-अलग दृष्टिकोण से सोचना और प्रस्तुत करना वाकई निस्तब्ध कर देता है। लेखन में यह जादू आपके कौशल का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सादर अभिनंदन🙏👏👏👏
अमित जी..आपकी इतनी उत्साहवर्धक विस्तृत प्रतिक्रिया पढ़कर मन अभिभूत है हम दुबारा अपनी रचना पढ़ने गये कि क्या वाकई ऐसी रचना बनी है।
Delete..बेहद शुक्रिया हृदयतल से आभार आपके स्नेह परिपूर्ण आशीष के लिए। सादर।
वाह!!श्वेता ,क्या बात है!!!!लाजवाब !!👍
ReplyDeleteआभारी हूँ शुभा दी...बेहद शुक्रिया।
Deleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteआभारी हूँ लोकेश जी..सादर शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर पोस्ट वाह बहुत खूब
ReplyDeleteजी बहुत आभारी हूँ...बेहद शुक्रिया।
Deleteवाह ! क्या शब्द सौंदर्य है !!!
ReplyDeleteमधुलोभी भ्रमरोंसम
हम मँडराते हर मधुर शब्द पर
रसमय, मधुमय, भावसुधामय
आकर्षण रख दीन्हा रचकर !!!
गूँज रहे हैं शब्द शब्द से
मधुर बाँसुरीवाले के स्वर
ऋतुओं का राजा आया है
पाहुन बनकर आज धरा पर !!!
- मीना
वाह्ह्ह... वाह्ह्ह... अति सुंदर दी...बहुत सुंदर प्रतिक्रिया मेरी रचना से भी ज्यादा प्यारी ..आभारी हूँ दी..आपके स्नेह से मन अभिभूत है। बहुत शुक्रिया स्नेहाशीष बनाये रखिए।
Deleteवाह !!!!!! मीना बहन , प्रिय श्वेता की सुंदर मनभावन बासंती रचना और आप के सुंदर काव्यांश सोने पर सुहागा !!!!! इस जुगलबन्दी के क्या कहने !! आभार - आभार |
Deleteबड़ी प्यारी बहनें जो मिल गई हैं। बहुत सारा स्नेह आप दोनों को।
Deleteवाहहहहह
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है
आभारी हूँ सोलंकी जी..बेहद शुक्रिया..ब्लॉग पर आपकी.प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।
Deleteवाह..मन बसंती, रंग बसंती,ढ़ंग बसंती..
ReplyDeleteउम्दा
केसर बेसर डाल-डाल
ReplyDeleteधरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत!!!!!
प्रिय श्वेता -- मधुर , मनभावन बासंती काव्य के लिए सिर्फ वाह और कुछ नहीं | मेरा प्यार साथ में |
वाह, बहुत ही सुन्दर ऋतुराज वसंत का
ReplyDeleteसांगोपांग वर्णन करती रचना
केसर बेसर डाल-डाल
ReplyDeleteधरणी पीयरी चुनरी सँभाल
क्या बात हैं रचनात्मकता चरम पर हैं,आपकी कलम को सलाम,बेहद उम्दा दर्ज़े का लेखन हैं ये।बहुत गहरी नज़र ज़ज़्बात चाहिये ये सब लिखने और कहने के लिये।
आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये।
बसंत के आगमन को शब्द मंजरी से बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteप्राकृति भी खुद इस समय अपने सम्पूर्ण यौवन से महकती है दहकती है और जीवन खिल उठता है ... सुन्दर रचना ...
वाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसरसों बाली देवे ताली
ReplyDeleteमदमाये महुआ रस प्याली
सिरिस ने रेशमी वेणी बाँधी
लहलही फुनगी कोमल जाली
बहती अमराई बौराई सी गंध
सखि रे! फिर आया बसंत
बहुत ही प्यारी रचना
Deleteवाह आदरणीया दीदी जी कितनी मधुर रचना प्रस्तुत की आपने बसंत का सारा सौंदर्य साक्षात हमारे सामने आ गया हो जैसे
ReplyDeleteवैसे....आपकी रचना हमने पढ़ी कम गुनगुनाई ज़्यादा
मनोहारी रचना की खूब बधाई
सादर नमन