जीवन रेखा,मस्तिष्क रेखा,
भाग्य रेखा सबकी हथेलियों में होते हैं
ऐसा एक ज्योतिष ने समझाया
ग़रीबी-रेखा कहाँ होती है?
यह पूछने पर वह गुस्साया
कहने लगा-
ऐसी रेखाओं की माया
ऊपरवाला ही जाने
तू पैसे निकाल और
अपनी किस्मत चमका ले
पहुँच प्रभु के दरवाज़े पर
जोड़ विनय से हाथ कहा-
हे प्रभु!कृपा करके
देकर मेरे कुछ सवालों के उत्तर
मेरी अज्ञानता का अंत कीजिए
समझाइए हाथ की लकीरों के बारे में
कृपा मुझपर दयावंत कीजिए
मुझको आप ही
ग़रीबी-रेखा वाली हाथ की
विशेषता समझाइए
किन कर्मों को करने से
ऐसी रेखाएँ बनती है
जरा विस्तार से बताइये
लाचारी ,भूख से ऐंठती अंतड़ियों पर
हर सुबह एक आशा की लकीर का बनना
ग़रीब के घर जन्मते दुधमुँहों का
बूँदभर दूध को तरसना,
दाने को मोहताज ग़रीब
नेता,अभिनेता के
मुनाफ़े के प्रचार का सामान गरीब
अख़बार भी भूखों के मरने की सुर्ख़ियों से
कमा लेते है नाम
अस्थि-पंजरों पर शोधकर
पढ़नेवाले कहलाते हैं विद्वान,
पाते है डिग्रियाँ और ईनाम
कितनी योजनाएँ बनती हैं
इतनी रगड़-पोंछ के बाद भी
क्यों गरीबों के आंकड़े बढ़ते है?
गहरी होती जाती है गरीबी रेखा
तकदीर शून्य ही गढ़ते हैं
विचारमग्न प्रभु ने तोड़ा मौन
कहने लगे मूर्ख प्राणी
मैं बस इंसानों को गढ़ता हूँ
हाथों की लकीर मैं कहाँ पढ़ता हूँ
यह सब तुम मुट्ठीभर इंसानों की
स्वार्थ का कोढ़ है
आडंबर की दुकान चलाने के लिए
इतने सारे जोड़-तोड़ हैं
तुम ही सोचो अगर
हाथ की रेखाओं से तकदीर गढ़े जाते
जीवन की कहानी
चंद लकीरों में पढ़े जाते
तो बिना हाथ वाले मनुष्य
भला कैसे जीवन पाते?
सच तो यह है
इन ग़रीबों को ही
जीने का शऊर नहीं,
मुफ्त की बिज़ली,पानी,ऋण माफ़ी,
गैस कनेक्शन,आवास योजना जैसी
शाही सुविधाओं की कल्पनाओं को
भोगने का लूर नहीं
कोई धर्म,सम्प्रदाय नहीं,
अधिकारों के प्रति असजग ग़रीब
न कोई यूनियन,न कम्पेनियन
न बैनर ढंग का, न आकर्षण
हड़ताल,तोड़-फोड़ न प्रदर्शन,
अयोग्य है हेरा-फेरी में,
जोड़-तोड़,लेन-देन के हिसाब में
फिर कैसे आ पायेंगे भला
ये सम्पन्नता सूची की किताब में?
बित्तेभर हथेली में इस रेखा
को ढूँढना व्यर्थ है
जुगाड़ की तिजोरी में बंद
इस रेखा का गहन अर्थ है।
बच्चे! ग़रीबी रेखा भगवान नहीं
तुम इंसानों का बनाया मंत्र है
जिसके जाप से फल-फूल रहा
इस देश का लोकतंत्र है।
#श्वेता सिन्हा
बहुत सुन्दर श्वेता !
ReplyDeleteकबीर की तरह से खरी-खरी कहना भगवान ने कब से सीख लिया? उन्हें तो केवल 'तथास्तु' कहना आता है.
अब भगवान बदल रहे हैं तो गरीब के दिन भी बदलेंगे लेकिन इसके लिए उसको अपने हाथों में मशाल लेनी होगी.
जी सर...अब तो एक भगवान ही हैं जिनसे हम सवाल जवाब कर सकते हैं..तथास्तु तो बस वो तपस्वियों को कहते हैं हम जैसे बेवकूफ से बहुत दूर भागते हैं पर फिर भी जवाब मिल ही गया।
Deleteसादर आभार सर।
बहुत शानदार
ReplyDeleteआभारी हूँ लोकेश जी..सादर शुक्रिया।
Deleteबहुत ख़ूब आदरणीय श्वेता जी |लाजबाब 👌👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सच लिखा आपने.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
धन्य हुवे के भगवान ने जवाब दिया वर्ना वो भी कानों में रूई डाले बैठते हैं आजकल।
ReplyDeleteमन की अगणित उधेड़बुन से आखिर अपनी हर जिज्ञासा और अंत द्वंद्व का एक सांगोपांग सटीक जवाब देती असाधारण रचना ।
वाहहहहहहहहहहहहह अति सुन्दर
ReplyDeleteतारीफ नहीं मन की सदा भेज रहा हूँ
वाह श्वेता जी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 13/02/2019 की बुलेटिन, " मस्त रहने का ... टेंशन नहीं लेने का ... ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteगरीबी घटाओ नहीं गरीबी बढ़ाओ कार्यक्रम चलता है क्योंकि इन पर सरकारें टिकी रहती हैं
ReplyDeleteबहुत सही
भगवान के उपालम्ब में रची बहुत ही गहन, विचारणीय रचना...सटीक व्यंग्यात्मक... लाजवाब प्रस्तुति.....
ReplyDeleteबहुत खूब कहा आपने आदरणीया दीदी जी
ReplyDeleteवास्तव में...ये गरीबी रेखा भी वोट बटोरने का एक ज़रिया है..
सादर नमन
तुम ही सोचो अगर
ReplyDeleteहाथ की रेखाओं से तकदीर गढ़े जाते
जीवन की कहानी
चंद लकीरों में पढ़े जाते
तो बिना हाथ वाले मनुष्य
भला कैसे जीवन पाते?
......यथार्थ ....रचना
समाज की वास्तविकता बयान करती एक मर्मस्पर्शी रचना,बहुत ही सुंदर अभीव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार,बधाई
कविता की सच्चाई दिल को छू गई । सीधे सरल शब्दों में गरीबी का विश्लेषण बहुत खूब किया है ।
ReplyDeleteकहने को कुछ नहीं है श्वेता.मात्र इसके कि लाजवाब है.बहुत बुरा लगता है कि कितनी ही बेहतरीन कविताएँ मेरे सामने निकल जाती हैं और मैं रचनाएँ पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल पाती.
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