Wednesday, 13 February 2019

ग़रीबी-रेखा


जीवन रेखा,मस्तिष्क रेखा,
भाग्य रेखा सबकी हथेलियों में होते हैं
ऐसा एक ज्योतिष ने समझाया 
ग़रीबी-रेखा कहाँ होती है?
यह पूछने पर वह गुस्साया
कहने लगा-
ऐसी रेखाओं की माया 
ऊपरवाला ही जाने
तू पैसे निकाल और 
अपनी किस्मत चमका ले

पहुँच प्रभु के दरवाज़े पर
जोड़ विनय से हाथ कहा-
हे प्रभु!कृपा करके 
देकर मेरे कुछ सवालों के उत्तर 
मेरी अज्ञानता का अंत कीजिए
समझाइए हाथ की लकीरों के बारे में
कृपा मुझपर  दयावंत कीजिए
मुझको आप ही
ग़रीबी-रेखा वाली हाथ की 
विशेषता समझाइए
किन कर्मों को करने से
ऐसी रेखाएँ बनती है
जरा विस्तार से बताइये

लाचारी ,भूख से ऐंठती अंतड़ियों पर
हर सुबह एक आशा की लकीर का बनना
ग़रीब के घर जन्मते दुधमुँहों का
बूँदभर दूध को तरसना,
दाने को मोहताज ग़रीब 
नेता,अभिनेता के 
मुनाफ़े के प्रचार का सामान गरीब
अख़बार भी भूखों के मरने की सुर्ख़ियों से
कमा लेते है नाम
अस्थि-पंजरों पर शोधकर 
पढ़नेवाले कहलाते हैं विद्वान,
पाते है डिग्रियाँ और ईनाम

कितनी योजनाएँ बनती हैं
इतनी रगड़-पोंछ के बाद भी
क्यों गरीबों के आंकड़े बढ़ते है?
गहरी होती जाती है गरीबी रेखा
तकदीर शून्य ही गढ़ते हैं

विचारमग्न प्रभु ने तोड़ा मौन
कहने लगे मूर्ख  प्राणी 
मैं बस इंसानों को गढ़ता हूँ
हाथों की लकीर मैं कहाँ पढ़ता हूँ
यह सब तुम मुट्ठीभर इंसानों की
स्वार्थ का कोढ़ है
आडंबर की दुकान चलाने के लिए
इतने सारे जोड़-तोड़ हैं

तुम ही सोचो अगर
हाथ की रेखाओं से तकदीर गढ़े जाते
जीवन की कहानी 
चंद लकीरों में पढ़े जाते
तो बिना हाथ वाले मनुष्य
भला कैसे जीवन पाते?

सच तो यह है 
इन ग़रीबों को ही
जीने का शऊर नहीं,
मुफ्त की बिज़ली,पानी,ऋण माफ़ी,
गैस कनेक्शन,आवास योजना जैसी 
शाही सुविधाओं की कल्पनाओं को
भोगने का लूर नहीं

कोई धर्म,सम्प्रदाय नहीं,
अधिकारों के प्रति असजग ग़रीब
न कोई यूनियन,न कम्पेनियन
न बैनर ढंग का, न आकर्षण
हड़ताल,तोड़-फोड़ न प्रदर्शन,
अयोग्य है हेरा-फेरी में,
जोड़-तोड़,लेन-देन के हिसाब में
फिर कैसे आ पायेंगे भला
ये सम्पन्नता सूची की किताब में?

बित्तेभर हथेली में इस रेखा
को ढूँढना व्यर्थ है
जुगाड़ की तिजोरी में बंद
इस रेखा का गहन अर्थ है।

बच्चे! ग़रीबी रेखा भगवान नहीं
तुम इंसानों का बनाया मंत्र है
जिसके जाप से फल-फूल रहा
इस देश का लोकतंत्र है।

#श्वेता सिन्हा

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर श्वेता !
    कबीर की तरह से खरी-खरी कहना भगवान ने कब से सीख लिया? उन्हें तो केवल 'तथास्तु' कहना आता है.
    अब भगवान बदल रहे हैं तो गरीब के दिन भी बदलेंगे लेकिन इसके लिए उसको अपने हाथों में मशाल लेनी होगी.

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    1. जी सर...अब तो एक भगवान ही हैं जिनसे हम सवाल जवाब कर सकते हैं..तथास्तु तो बस वो तपस्वियों को कहते हैं हम जैसे बेवकूफ से बहुत दूर भागते हैं पर फिर भी जवाब मिल ही गया।
      सादर आभार सर।

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  2. Replies
    1. आभारी हूँ लोकेश जी..सादर शुक्रिया।

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  3. बहुत ख़ूब आदरणीय श्वेता जी |लाजबाब 👌👌
    सादर

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  4. बहुत सच लिखा आपने.
    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  5. धन्य हुवे के भगवान ने जवाब दिया वर्ना वो भी कानों में रूई डाले बैठते हैं आजकल।
    मन की अगणित उधेड़बुन से आखिर अपनी हर जिज्ञासा और अंत द्वंद्व का एक सांगोपांग सटीक जवाब देती असाधारण रचना ।

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  6. वाहहहहहहहहहहहहह अति सुन्दर
    तारीफ नहीं मन की सदा भेज रहा हूँ

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  7. वाह श्वेता जी बेहतरीन रचना

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  8. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 13/02/2019 की बुलेटिन, " मस्त रहने का ... टेंशन नहीं लेने का ... ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  9. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  10. गरीबी घटाओ नहीं गरीबी बढ़ाओ कार्यक्रम चलता है क्योंकि इन पर सरकारें टिकी रहती हैं
    बहुत सही

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  11. भगवान के उपालम्ब में रची बहुत ही गहन, विचारणीय रचना...सटीक व्यंग्यात्मक... लाजवाब प्रस्तुति.....

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  12. बहुत खूब कहा आपने आदरणीया दीदी जी
    वास्तव में...ये गरीबी रेखा भी वोट बटोरने का एक ज़रिया है..
    सादर नमन

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  13. तुम ही सोचो अगर
    हाथ की रेखाओं से तकदीर गढ़े जाते
    जीवन की कहानी
    चंद लकीरों में पढ़े जाते
    तो बिना हाथ वाले मनुष्य
    भला कैसे जीवन पाते?
    ......यथार्थ ....रचना

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  14. समाज की वास्तविकता बयान करती एक मर्मस्पर्शी रचना,बहुत ही सुंदर अभीव्यक्ति।
    आभार,बधाई

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  15. कविता की सच्चाई दिल को छू गई । सीधे सरल शब्दों में गरीबी का विश्लेषण बहुत खूब किया है ।

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  16. कहने को कुछ नहीं है श्वेता.मात्र इसके कि लाजवाब है.बहुत बुरा लगता है कि कितनी ही बेहतरीन कविताएँ मेरे सामने निकल जाती हैं और मैं रचनाएँ पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल पाती.

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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