Thursday 14 February 2019

बदसूरत लड़की


वो नहीं सँवरती
प्रतिबिंब आईने में 
बार-बार निहारकर
बालों को नहीं छेड़ती
लाली पाउडर 
ड्रेसिंग टेबल के दराजों में
सूख जाते हैं
उसे पता है 
कोई फर्क नहीं पड़ेगा
गज़रा,बिंदी लाली लगाकर
वो जानती है
कोई गज़ल नहीं बन सकती
उसकी आँखों,अधरों पर
तन के उतार-चढ़ाव पर
किसी की कल्पना की परी नहीं वो
सबकी नज़रों से
ख़ुद को छुपाती
भीड़ से आँख चुराती
खिलखिलाहटों को भाँपती
चुन्नियों से चेहरे को झाँपती
पानी पर बनी अपनी छवि को
अपने पाँवों से तोड़ती है
प्रेम कहानियाँ
सबसे छुप-छुपकर पढ़ती 
सहानुभुति,दया,बेचारगी भरी
आँखों में एक क़तरा प्रेम
तलाश कर थक चुकी
प्रेम की अनुभूतियों से
जबरन मुँह मोड़ती है
भावहीन,स्पंदनहीन
निर्विकार होने का
ढोंग करती है
क्योंकि वो जानती है
उसके देह पर उगे 
बदसूरती के काँटों से
छिल जाते है 
प्रेम के कोमल मन
बदसूरत लड़की का 
सिर्फ़ तन होता है
मन नहीं।

#श्वेता सिन्हा



14 comments:

  1. बदसूरत लड़की का
    सिर्फ़ तन होता है
    मन नहीं। बहुत ही भावपूर्ण रचना श्वेता जी

    ReplyDelete
  2. प्रेम के कोमल मन
    बदसूरत लड़की का
    सिर्फ़ तन होता है
    मन नहीं।
    निःशब्द करती लाइन.....मनोभावों
    को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है...

    ReplyDelete
  3. रचना मर्मस्पर्शी और भावना प्रधान है और अवगूंठन शानदार है।
    एक विचार है मेरा बस सौन्दर्य का मान दंड सिर्फ बाहरी सुंदरता से प्रायः बस एक नजर से होता है।
    आतंरिक सुंदरता बाहरी सौन्दर्य को गौण कर देते हैं कितने मेधावी चरित्र होते हैं जो सुंदर नही होते पर जगत उनकी कदम बोसी करता है अनुशरण करता है कितने ऐसे चरित्र होते हैं जो अपने सुंदर मन से सभी को मोहित कर लेते हैं।
    बस मन में कुंठा ना पनपे तो
    अगर खुद पर विश्वास होतो
    दृढ मनोबल हो तो
    गर खुद को साबित करने की चाह हो तो
    बदसूरती भी खूबसूरती में बदल जाती है।
    बस हीन भावना से सदा दूर रहना चाहिए।
    तन सुंदर न भी हो ये तो ईश्वर प्रदत्त हैं मन तो सुंदर बनाना अपने हाथ है।
    तो मन तो होता है उसे कैसा बनाएं वो खुद के आत्म विश्वास पर निर्भर है।

    ReplyDelete
  4. अति सुंदर अभिव्यक्ति। अभिनंदन श्वेता जी ।

    ReplyDelete
  5. प्रेम की अनुभूतियों से
    जबरन मुँह मोड़ती है
    भावहीन,स्पंदनहीन
    निर्विकार होने का
    ढोंग करती है...बहुत ही सुन्दर सखी |आदरणीय कुसुम दी की बहुत ही सराहनीय टिप्णी | बहुत ही सुन्दर रचना| यही विषय मेरे मन में भी काफ़ी दिनों से अखर रहा है | क्या एक औरत सजावटी सामान है | की उस को सुन्दरता से आका जाता है |
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सखी
    सादर

    ReplyDelete
  6. lajwab rachna....

    mujhe apni kavita ki kuch lines yad aagai

    maine mana ki mai khoobsurat nahi
    aap ke dil ko meri jaroorat nahi
    fir bhi ek bat kahni hai tumse mujhe
    mai bhi insan hu koi moorat nahi

    ReplyDelete
  7. क्योंकि वो जानती है
    उसके देह पर उगे
    बदसूरती के काँटों से
    छिल जाते है
    प्रेम के कोमल मन
    बहुत ही हृदयस्पर्शी कटु सत्य... ऐसा ही होता आया है सौन्दर्य प्रधानता रही है हमारे समाज में....वरना लड़की को एक नजर भर देखकर रिश्ते न बनाये जाते... बदसूरत लड़की के भावों को उकेरा है आपने...तभी कहती हूँ श्वेता जी जाने कितने हृदयों को जिया है आपने...

    ReplyDelete
  8. अंधे समाज का अंधा दृष्टिकोण लाकर प्रस्तुत कर दिया आपने आदरणीया दीदी जी
    बिल्कुल ठीक कहा आपने इस रूप के आकर्षण में भटकी भीड़ में दया,सहानुभूति दिख सकती है पर प्रेम.........
    सुंदर सटीक प्रस्तुति दीदी जी सादर नमन

    ReplyDelete
  9. सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  10. मर्म को छूती है ये रचना ...
    ये रचना प्रतिनिधित्व करती है उन सबका जो समाज में सिर्फ इसी बात से उपेक्षित रह जाती हैं की उनका चेहरा खूबसूरत नहीं ... लाजवाब रचना ...

    ReplyDelete
  11. भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  12. आँखों में अश्रु लाती रचना।

    ReplyDelete
  13. बदसूरत लड़की का
    सिर्फ़ तन होता है
    मन नहीं।.......नहीं मानता मन!

    ReplyDelete
  14. प्रिय श्वेता तुम्हारी ये रचना ना सिर्फ एक कथित ' बदसूरत ' लडकी का मार्मिक आत्मकथ्य है बल्कि समाज की दोहरी मानसिकता पर एक प्रश्न चिन्ह भी है | गुणों की दुहाई देने वाले समाज को अपनी मानसिक संतुष्टि और दिखावे के लिए हर घर में एक सर्वगुण सम्पन्न बहु चाहिए तो एक पति को सौन्दर्य सम्पन्न पत्नी | सौन्दर्य के महिमामंडन के बीच ये प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि किसी के सुंदर होने में उसका अपना योगदान कितना है ? और समाज और व्यक्ति को सुन्दरता से सिवाय नेत्र सुख के कौन सा सुख मिलता है ? एक लडकी जो देखने में अच्छी नहीं उसे सिर्फ देहरूप में ही क्यों देखा जाता है ? क्यों सिर्फ उसे तन रूप में ही स्वीकार गया - उसके मन को क्यों नहीं समझा गया कि वह भी सुंदर लडकी की ही तरह सपने बुनती होगी और उनमें रंग भरने की आंकाक्षा रखती होगी | मन को बेधते प्रश्न उठाती रचना के लिए तुम्हे साधुवाद लिखूंगी क्योकि ऐसे विषय को रचना में तुम्ही ढाल सकती हो | मेरा प्यार इस मर्मस्पर्शी सृजन के लिए |

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...