Thursday 25 November 2021

जो मिल न सका



साँसों की लय पर
चल रही हूँ ज़िंदगी की रगो में
पर किसी की साँसें न हो सकी।

किसी के मन की 
ख़्वाहिशों की ढेर में शामिल
अपनी बारी की प्रतीक्षा में ख़ुद से बिछड़ गयी।

समय की डाल पर खिली
किसी पल पर मर मिटने को बेताब कली
मौसम की रूखाई से दरख़्त पर ही सूख गयी।

जिसकी गज़ल का
दिलकश रुमानी मिसरा होने की चाह थी
उसकी किताब में सवालों का पन्ना बन गयी।

इच्छाओं की बाबड़ी, 
सतह पर तैरते अतृप्ति के दानों के दुख में
तल में भरी अनगिन खुशियों से अंजान रही। 

जो मिल न सका
उसको छूने की तड़प नदी में बहाकर
अब चिड़िया हो जाना चाहती हूँ।

चाँद से कूदकर
अंधेरे में गुम होते सपनों से बेपरवाह
अब दिल के किवाड़ पर चिटकनी चढ़ाकर 
गहरी नींद सोना चाहती हूँ।

#श्वेता सिन्हा
२५ नवंबर २०२१


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