हे, कवि!
तुम्हारी संवेदनशील
बुद्धि के तूणीर में
हैं अचूक तीर
साहसी योद्धा,
भावनाओं के
रथ पर सज्ज
साधते हो नित्य
दृश्यमान लक्षित सत्य,
भेद्य,दुर्ग प्राचीर!!
हे,अजेय सिपाही,
तुम सच्चे शूरवीर हो!
यूँ निर्दयी न बनो
लेखनी से अपनी
निकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही
अवरुद्ध कर दो
नोंक से बहते
व्यथाओं के निर्मम गान।
ओ जादुई चितेरे
तुम्हारी बनायी
तूलिका से चित्र
जीवित हो जाते हैं!
अपनी भविष्यद्रष्टा
लेखनी से
बदल डालो न
संसार की विसंगतियों को,
अपने अमोघास्त्र से
तुम क्यों नहीं
लिखते हो...
निरीह,बेबस,दुखियों,
निर्धनों के लिए
खिलखिलाते,
फलते-फूलते,सुखद
आनंददायक स्वप्न।
©श्वेता सिन्हा
लेखनी से अपनी
ReplyDeleteनिकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही
बहुत मुश्किल है :)
सुन्दर रचना।
मुश्किल है नामुमकिन नहीं है न सर:)
Deleteबहुत बहुत आभारी हूँ सर।
प्रणाम सर
सादर
@सुशील कुमार जोशी
Deleteतो कम से कम अपनी दवात में
भर लो
सकारात्मकता की स्याही!😀
जी,सादर प्रणाम विश्वमोहन जी।
Deleteआपकी उपस्थिति के लिए आभारी हूँ।
सादर।
जी श्वेता जी है तो मुमकिन है तो है ना आशावाद जिंदाबाद।
Deleteविश्वमोहन जी आभार पर आप भी फूटी दवात वालों को राय दे रहे हैं :) :)
जी सर बहुत बहुत आभार।
Deleteसादर।
" साधते हो नित्य
ReplyDeleteदृश्यमान लक्षित सत्य " -
ये वाला वर्ग जो निर्धनों की पीड़ा उकेरता है और एक कुशल चितेरा का भान लिए अपनी गर्दन अकड़ाता है और आपकी नसीहत की भाषा में कहे तो उसे -
" लेखनी से अपनी
निकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही " -
इस तरह की नकारात्मक चित्र नहीं उकेरने चाहिए, बल्कि उन्हें -
" तुम क्यों नहीं
लिखते हो... "
वाली नसीहत के अनुसार -
"खिलखिलाते,
फलते-फूलते,सुखद
आनंददायक स्वप्न " - बुनने चाहिए।
पर मेरा मानना है कि हालात, वक्त के मारे या अपने वर्त्तमान कर्मों या फिर तथाकथित ब्राह्मणों की माने तो अपने पूर्व जन्म की कर्म-कमाई भोगने वाले बेचारे "निरीह,बेबस,दुखियों,निर्धनों के लिए" तो ये दोनों ही छल है।
ना तो उन चितेरों की नकारात्मता की शोर उन तक पहुँच पाती है और ना ही किसी सकारात्मकता के सपने।
दोनों ही उनके भविष्य को "सुखद और आनन्ददायक" नहीं बना पाते शायद ... इसीलिए मेरा मानना है कि -
हे कवि !
निकलो अपने ही शहर में,
कम से कम अपने मुहल्लों में
भर दो पेट एक भी मजबूर परिवार का
जो तुम्हारी हजार सकारात्मक
या नकारात्मक लेखनी से
लाख गुणा बेहतर है ..
तो उठो ना कवि !
पटको अपनी लेखनी
उठा लो बस चन्द रोटियों की पोटली
निकल पड़ो और कहीं दूर नहीं तो
अपने ही आस-पड़ोस में, मोहल्ले में ...
कब तक भला लेखनी के भुलावे
परोसते रहोगे निरीह,बेबस,दुखियों,निर्धनों के लिए ...
जरुरत नहीं उन्हें तुम्हारी कोरी शब्दों वाली सहानुभूति की
बस .. एक बार समानुभूति में तो भींजो
बस एक बार .. आज , अभी ही भींजो
आज, अभी ही भींजोगे ना कवि ?
बोलो ना कवि ...
( एक ऊटपटाँग प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थी 🙏 ...)
जी नमस्कार,
Deleteआपके विचारों का स्वागत है।
प्रतिक्रिया.स्वरूप बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने।
अलग-अलग भाव और विचारों से युक्त लेखनी से सृजन करना क़लम के चितरों की रचनात्मकता है।
माना समय और परिस्थितियों के अनुरूप हम सुविधासंपन्न हैं अपने जीवन में,
उन निरीह बेबस दुखियों निर्धनों की तरह नहीं जी रहे हैं, हम जिनके लिए लिख रहे हैं वो लोग पढ़ते भी नहीं, तो क्या करें सारी सुविधाओं को त्यागकर उनके साथ जाकर रहें तभी लिखना सार्थक होगा क्या??
क़लम जो उनकी बेबसी की अनुभूति को रच रही है वह निरर्थक है ??
समाज तो हमसे हैं न हमारे शरीर के आँख,नाक,कान,
पेट की तरह ही तो अगर शरीर के किसी अंग में पीड़ा हो तो उसके इलाज़ का यथाशक्ति करते हैं किंतु दूसरा स्वस्थ अंग भी उसके साथ बीमार हो जाये क्या?
ऐसा तो नहीं न कि उस अंग की पीड़ा शरीर को नहीं महसूस हो रही है। उस पीड़ा के साथ जीना पड़ता है यही असमानता सृष्टि एवं जीवन का आधार है।
मेरा कहना मात्र इतना है कि हर बात में नकारात्मकता बाँचना आसान है परंतु सकारात्मकता का संचार ही पीड़ाओं से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है।
स्वस्थ विमर्श में क्षमा जैसे शब्दों का प्रयोग कृपया न करें।
आपका बहुत शुक्रिया।
साथ रहने की चर्चा तो हमने एक बार भी नहीं किया है महोदया।
Deleteकृपया ध्यान से पढ़ें। मैंने कहा है कि हम उनकी मदद करें धरातल पर उतर कर। शब्दों में नहीं।
अलग से मदद करना और साथ रहना एक ही होता है क्या ???
किसी को कोई भी सन्देश देने के पहले स्वयं उपमा बनने की कोशिश करनी चाहिए। बस इतना भर ही कहा मैंने।
जैसे आपको नकारात्मक लेखनी नागवार गुजर रही, वैसे ही किसी को नागवार गुजर समति है ये .. सकारात्मक ही सही पर हवाई और शाब्दिक सपने .. बेचारे "निरीह,बेबस,दुखियों,निर्धनों के लिए" ...
सबके अपने विचार, सबकी अपनी-अपनी धारणा है, तभी तो दुनिया रंगीन है ...
तभी तो दुनियाँ रंंगीन है। सहमत।
Deleteजी सुबोध सर जी आपके विचारों का स्वागत है।
Deleteमेरी रचना का आशय स्पष्ट हुआ या नहीं मुझे नहीं ज्ञात किंतु अपनी समझ के अनुरूप संदेश देते रहना ही मेरी लेखनी की सार्थकता है।
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से मेरी रचना का सम्मान मिला और मेरे विचारों को संबल।
बहुत आभारी हूँ।
जी महोदया ! बेशक़ आपकी रचना को सम्मान मिला होगा और आपके विचारों को सम्बल पर ... बेचारे "निरीह,बेबस,दुखियों,निर्धनों के लिए" ...अन्ततः जीरो बटा सन्नाटा ...😃😃😃
Deleteजी,
Deleteसहमत हैं मेरे लिखने से उनकी तक़लीफ़ कम या ज्यादा नहीं हो सकती है।
हम लेखनी से ऊर्जा का संचार करने का और संवेदना जगाने का प्रयास भर ही कर सकते हैं।
चर्चा म़े सार्थक विचार मंथन को प्रेरित करने हेतु।
बहुत शुक्रिया आपका।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteआपका अतुल्य स्नेह और आशीष बहुमूल्य है।
सादर।
क्यों नहीं लिखते लाचारों के लिए सुखद ,फलते -फूलते स्वप्न ..भई वाह!!श्वेता ..अद्भुत!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
सादर।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसभी कलम के सिपाहियों को प्रणाम।
जी आभारी हूँ सर।
Deleteसादर प्रणाम।
सकारात्मकता की और सार्थक कदम,माना कवि या साहित्यकार का लिखा किसा की भूख नहीं मिटा सकता,माना वो पढ़ता भी नहीं,पर रचनाकार एक पीड़ा को कम करती उर्जा बांटने का प्रयासज्ञतो कर सकता है पढ़ने वालों को तो संकेत दे सकता है कि उनका भी दायित्व है उस वर्ग को कुछ खुशियां बांट आए।
ReplyDeleteश्वेता बहुत सार्थक लेखन ।
एक कवि की अपनी दृष्टि होती है उसके पीछे करता करता भाव होते हैं ये सदा पढ़ने वाला पूरा समझ लें संभव नहीं, फिर भी आपके भावों को मैंने महसूस किया है, इस लिए लेखन को सार्थक मानती हूं ।
जी दी प्रणाम।
Deleteआपकी सार्थक विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया पाकर मनोबल को संबल मिला।
सादर आभार।
सस्नेह
शुक्रिया दी।
काश शब्दों के चितेरे समय बदल पाते ... पर हर किसी को ये सुख नहीं मिलता ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी लेखनी ...
बहुत बहुत आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
प्रिय श्वेता , सार्थक रचना जो चिंतन को प्रेरित करती है। रचना के समानांतर विषय वस्तु पर विचार विमर्श रचना की सार्थकता बढ़ा रहा है। मुझे लगता है , कवि कुछ भी बदलने में शायद सक्षम नही , पर मानव मन में सुप्त संवेदनाएं जगाने में वह अहंम भूमिका निभा सकता है । सार्थक रचना के लिए शुभकामनायें।
ReplyDeleteआभारी हूँँ दी आपके विमर्श से
Delete"कवि कुछ भी बदलने में शायद सक्षम नही , पर मानव मन में सुप्त संवेदनाएं जगाने में वह अहंम भूमिका निभा सकता है ।"
रचना के दृष्टिकोण और सकारात्मकता का समर्थन
मिला।
सस्नेह शुक्रिया दी।
सादर।
हाँ प्रिय रेणु, पर अब तो ऐसा लग रहा है जैसे संवेदनाएँ सो नहीं, मर गई हैं।
Deleteबहुत ही सकारात्मक सोच इसी सोच को कायम रखना है भले ही हमारी कलम वर्तमान परिस्थितियों के सामने चूक जाएं... लेकिन दिल दिमाग के अंदर तिरोहित हो रहे चिंतन को यूंही जाया नहीं कर सकते हैं... एक कवि कहूं या लेखक उसके पास ही तो उसकी ताकत उसकी लेखनी होती है अगर वही सूस्त पड़ जाए तो समाज में हो रहे बदलाव.. कौन लिखेगा और आने वाली पीढ़ियां हमारे आज के वर्तमान के सच को शायद कभी जान ही नहीं पाएगी...।
ReplyDeleteआप हमेशा अनदेखी किए जा रहे विषयों पर भी बहुत गंभीर लिखती हैं ..यह आप की लेखनी की बहुत बड़ी खासियत है लिखते रहा कीजिए दी..। और ढेर सारी शुभकामनाएं..।
सही कहा अनु आने वालवाली पीढ़ियाँ जब इस दौर को पढ़ेगी तो कुछ सार्थक ऊर्जात्मक अनुभूति कर पायें कदाचित्।
Deleteतुम्हारे स्नेहिल प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार अन्नू।
शुक्रिया
सस्नेह।
हे, कवि!
ReplyDeleteतुम्हारी संवेदनशील
बुद्धि के तरकश में
हैं अचूक तूणीर
साहसी योद्धा,
भावनाओं के
रथ पर सज्ज
साधते हो नित्य
दृश्यमान लक्षित सत्य,
भेद्य,दुर्ग प्राचीर!!
शुद्ध परिष्कृत हिन्दी एवं ुचित स्थान पर संस्कृत के भी तत्सम शब्दों का प्रयोग करके आपने अपनी रचना को बहुत उत्कृष्ट बना लिया है । बहुत ही सुंदर रचना ।
आपका स्वागत है आदरणीय।
Deleteसुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।
सादर।
लेखनी से अपनी
ReplyDeleteनिकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही !!!
प्रिय श्वेता,
आपका आह्वान उचित है,आपकी रचना बहुत उत्कृष्ट है पर मेरे जैसे लोग क्या करें, कैसे लिखें? आज जो माहौल अपने चारों ओर देख रही हूँ उसमें मेरी लेखनी धर्मसंकट में पड़ जाती है। नकारात्मक लिखना नहीं है, सकारात्मक क्या लिखूँ,कैसे लिखूँ ? कृत्रिम लगेगा,असत्य लगेगा,अवास्तविक लगेगा इस माहौल में !!! शायद इसी स्थिति को किंकर्तव्यविमूढ़ कहते हैं!!!
जी दी,
Deleteवर्तमान परिस्थितिजन्य माहौल से व्यथित मन के भाव निराशा से भरे हैं सहमत हूँ किंतु दी जब अंधकार घना होता है तभी एक नन्ही सी किरण की आवश्यकता होती है ऐसा मेरा मानना है।
इस दौर का सत्य उकेरना क़लमकारों का कर्त्तव्य है तो क्या इस किंकर्तव्यविमूढ़ परिस्थितियों से जूझने के लिए राह बनाने के लिए जो हिम्मत चाहिए उसके लिए सकारात्मकता भरना हम छोड़ दें दी??
आपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है दी।
सस्नेह शुक्रिया बेहद आभार आपका।
सादर
कवि से आह्वान करती विचारशील रचना जो सकारात्मक विचारों के सृजन को प्रधानता देती है. नकारात्मक सोच स्वतः विकसित होती जबकि सकारात्मक सोच के लिए चिंतन-मनन की लंबी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन है आपका प्रिय श्वेता दीदी.
आभारी हूँ प्रिय अनु।
Deleteविषयांतर सकारात्मकता और नकारात्मकता ही किसी भी व्यक्ति को जीवन के प्रति उचित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
सस्नेह शुक्रिया।
नकारात्मक लिखना और सत्य लिखना दोनों में अंतर है।सत्य भी कई बार नकारात्मक लगने लगता है क्योंकि मन को पसंद नहीं आता। किंतु सकारात्मक लिखने के लिए सत्य से भागा नहीं जा सकता। उसका सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteजब बात उठती है संवेदनशीलता की तो आज के परिदृश्य में वह शब्द तकरीबन नदारद सा हो गया है।मानव के भीतर की संवेदना आज अंतिम साँसे गिन रही है । परंतु कवि का सकारात्मक आह्वान अवश्य ही इस मरती संवेदना के लिए अमृत का काम कर सकता है।
प्रिय श्वेता एक उत्कृष्ट रचना के लिए तुम्हें ढेरों बधाइयाँ।
जी दी,
Deleteसत्य और सकारात्मकता का उचित विश्लेषण कर आपने मेरे विचारो़ को दृढ़ता प्रदान की।
किंतु दी संवेदनशीलता की मात्रा भले थोड़ी कम हो गयी हो किंतु पूरी तरह नष्ट नहीं हुई है।
बहुत-बहुत आभारी हूँ।
सस्नेह शुक्रिया।
सादर।
जहाँ तक मैंने अभी तक पढ़ा हैं और जाना हैं - "कवियों की सकारात्मक लेखनी ने कई बार चमत्कार किए "समय समय पर बिपरीत परस्थितियों में लेखनी ने ढाढ़स बढ़ाने का काम किया हैं,नई ऊर्जा का संचार किया हैं और आज भी वो कर सकते हैं। आपकी सकारात्मक आह्वान जरूर अपना असर छोड़ेगी यही कामना हैं। बहुत ही सुंदर विचारणीय सृजन श्वेता जी
ReplyDeleteजी कामिनी जी,
Deleteपूर्ण रुप से सहमत हूँ और अपने दायित्वों के प्रति अपने बुद्धिनुरूप सजग भी रहने का प्रयत्न कर रही हूँ।
आपकी समर्थित प्रतिक्रिया ने मनोबर में अतिशय वृद्धि की।
सस्नेह शुक्रिया।
सादर।
मनुष्य जो सोचता है,वही लेखनी कहती है, अपने चिंतन में किसी की अहित ना हो कर्म से या अविश्वास की भावना से,आपकी रचना बहुत ही सुन्दर खूबसूरत है
ReplyDeleteजी भारती जी,
Deleteबहुत सुंदर बात कही आपने और सहमत हैं हम।
आपका स्वागत है।
बहुत आभार आपका।
शुक्रिया
सादर।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( सामूहिक भाव संस्कार संगम -- सबरंग क्षितिज [ पुस्तक समीक्षा ])पर 13 मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
ReplyDeletehttps://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_12.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
बहुत आभारी हूँ ध्रुव जी।
Deleteआपके मान के लिए शुक्रिया।
सादर।
हे,अजेय सिपाही,
ReplyDeleteतुम सच्चे शूरवीर हो!
यूँ निर्दयी न बनो
लेखनी से अपनी
निकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही
अवरुद्ध कर दो
नोंक से बहते
व्यथाओं के निर्मम गान।
वाह!!!!
सकारात्मकता का आवाहन!!!
मैंने बड़ों से सुना है जैसे ध्यायेंगे वैसा पायेंगे यही जग की रीत है ....
नकारात्मकता है जरूर है पर उसी का ध्यान क्यों
सकारात्मकता का ध्यान करेंगें तो सकारात्मकता आयेगी जरूर आयेगी....
हमेशा की तरह बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
बहुत बहुत बधाई आपको।
सहमत है सुधा जी आपने मेरे मन की बात कही नकारात्मक और सकारात्मक में चुनाव हम सकारात्मक का क्यों न करें।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता प्रदान की।
सस्नेह शुक्रिया।
सादर।
तुम क्यों नहीं
ReplyDeleteलिखते हो...
निरीह,बेबस,दुखियों,
निर्धनों के लिए
खिलखिलाते,
फलते-फूलते,सुखद
आनंददायक स्वप्न।
वाह बेहतरीन रचना श्वेता जी
सामाजिक कार्य में व्यवस्था के कारण आजकल कौन क्या लिख रहा है कोई भान नहीं मुझे।
ReplyDeleteअब थोड़ा 4-5 दिनों के लिए खुद के लिए रेस्ट रखा है
तो पढ़ेंगे आपको।
ये रचना पढ़ी है...
एक सिक्के के दोनों पहलू बहुत जरूरी है।
समाज और राजनीति में फैली नकारात्मकता को सकारात्मक बनाकर लिखने में हम किसके दुश्मन बन जाएंगे?
किसका भला कर पाएंगे?
और क्या हमें गन्दगी को मखमली कपड़े से ढक देने से सच्ची सन्तुष्टि मिल सकती है?
सोचे, मनन करें और उत्तर मिले तो उसकी गांठ बांध लीजिएगा।
अब बना कर, सज़ा कर पेश करने की बजाए लोग सचा लिखे
जैसा है वैसा लिखे
ऐसा करने से ही हमारे तीर अचूक हो सकते हैं।
वरना हम चूक कर जाएंगे।
इस रचना में कवि को परमेश्वर से मानवीकरण बिठा दिया जाए तो बात अलग हो जाएगी।
😂
अपना व अपने परिवार का ध्यान रखें।
सुरक्षित रहें।
😂*---->☺️
Deleteजी रोहित जी,
Deleteआपकी सारी बातों से सहमत है किंतु हम तो ये नहीं कह रहे कि सच मत लिखो राजनीति या समाज का कुरूप चेहरा बेनकाब मत करो।
हम बस इतना संदेश दे रहे हैं कि ऐसी भविष्यवाणी न लिखो जो सच हो जाते है। जिस सच से नकारात्मक फैले मनोबल टूट जाये और आस का हर दीप बुझ जाये उसे लिखकर आप या हम समाज का क्या भला कर पायेंगे?
अपनी पीढ़ियों के मन में कटुता के बीज बोकर विषैले वृक्षों की छाँव में कैसे सुकून की छाया
में रह पायेंगे।
नकारात्मकता उतनी ही लिखनी चाहिए न जिसे पढ़कर मन में बदलाव की चाह पैदा हो नफ़रत का स्याह अंधेरा नहीं वरना सकारात्मकता साँस ले सकेगी क्या???
आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे मेरी रचना के भाव.स्पष्ट करने का अवसर दिया।
आपका बहुत आभार।
सादर शुक्रिया।