Saturday 1 July 2017

मैं तुमसे मिलने आऊँगी

हरपल मुझको महसूस करो
मैं तुमसे मिलने आऊँगी

भोर लाली के रंग चुरा
पलकों पे तेरे सजाऊँगी
तुम मीठे से मुस्काओगे
प्रथम रश्मि की गरमाहट
मैं उजास भर जाऊँगी

पंखुड़ियाँ कोमल नाजुक
अपने हाथों में भर भर के
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
मलकर महक गुलाब की
चुन सारे काँटे ले जाऊँगी

न कुम्हलाओ  धूप मे तुम
मैं आँचल सा बिछ जाऊँगी
बनकर लहराती इक बदरी
बारिश रिमझिम रिमझिम
तन को शीतल कर जाऊँगी

चाँद हाथ में लेकर रात को
चुनरी झिलमिल तारों की
गलियारें में आसमां के
बिन बोले खामोशी से
बस तेरी मैं हो जाऊँगी

मैं न समझूँ कुछ न समझूँ
क्या जाने मैं क्या पाऊँगी
तुमको ही दिल ने जाना है
इक डोर नेह के बाँध के मैं
सारे एहसास जगाऊँगी

तेरे मौन का कोई गीत बनूँ
तेरी तन्हाई में चुपके से फिर
मैं तुमसे मिलने आऊँगी


#श्वेता🍁



Friday 30 June 2017

बचपन

बचपन का ज़माना बहुत याद आता है
लौटके न आये वो पल आँखों नहीं जाता है

न दुनिया की फिक्र न ग़म का कहीं जिक्र
यादों में अल्हड़ नादानी रह रहके सताता है

बेवज़ह खिलखिलाना बेबाक नाच गाना
मासूम मुस्कान को वक्त तड़प के रह जाता है

परियों की कहानी सुनाती थी दादी नानी
माँ के आंचल का बिछौना नहीं मिल पाता है

हर बात पे झगड़ना पल भर में मान जाना
मेरे दोस्तो का याराना बहुत याद आता है

माटी में लोट जाना बारिश मे खिलखिलाना
धूप दोपहरी के ठहकों से मन भर आता है

अनगिनत याद में लिपटे असंख्य हीरे मोती
मुझे अनमोल ख़जाना बहुत याद आता है

क्यूँ बड़े हो गये दुनिया की भीड़ में खो गये
मुखौटे लगे मुखड़े कोई पहचान नहीं पाता है

लाख मशरूफ रहे जरूरत की आपाधापी में
बचपना वो निश्छलता दिल भूल नहीं पाता है

      #श्वेता🍁



Thursday 29 June 2017

यादों में तुम

यादों में तुम बहुत अच्छे लगते हो
याद तेरी जैसे गुलाब महकते है
अलसायी जैसे सुबह होती है
नरम श्वेत हल्के बादलों के
बाहों में झूलते हुये,
रात उतरती है धीमे से
साँझ के तांबई मुखड़े को
पहाड़ो के ओट में छुपाकर
और फैल जाती है घाटियों तक
गुमसुम यादें कहीं गहरे
तुम्हें मेरे भीतर
हृदय में भर देती है
दूर तक फैली हुयी तन्हाई
तेरी यादों की रोशनी से मूँदे
पलकों को ख्वाब की नज़र देती है
तुम ओझल हो मेरी आँखों से
पर यादों में चाँदनी
मखमली सुकून के पल देती है
भटकते तेरे संग तेरी यादों मे
वनों,सरिताओं के एकान्त में
स्वप्निल आकाश की असीम शांति में
हंसते मुस्कुराते तुम्हें जीते है,
फिर करवट लेते है लम्हें
मंज़र बदलते है पलक झपकते
मुस्कुराते धड़कनों से
एक लहर कसक की उठकर
आँखों के कोरो को
स्याह मेघों से भर देती है
कुछ बूँदें टूटी हसरतों की
अधूरी कहानियों को भिंगों देती है
जाने ये कैसी बारिश है
जिसमें भींगकर यादें संदली हो जाती है।
   
         #श्वेता🍁

Wednesday 28 June 2017

सौगात

मुद्दतों बाद रूबरू हुए आईने से
खुद को न पहचान सके
जाने किन ख्यालों में गुम हुए थे
जिंदगी तेरी सूरत भूल गये

ख्वाब इतने भर लिए आँखों में
हकीकत सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझ बैठे
न प्यास बुझी तड़पा ही किये

एक टुकड़ा आसमान की ख्वाहिश में
जमीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच खुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये

सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
कुछ तो सौगात मिला तुमसे
ऐ जिंदगी चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा

             #श्वेता🍁


Tuesday 27 June 2017

खिड़कियाँ ज्यादा रखो

दीवारें कम खिड़कियाँ ज्यादा रखो
शोर क्यों करो चुप्पियाँ ज्यादा रखो

न बोझ हो सीने में कोई न मलाल हो
बिना उम्मीद के नेकियाँ ज्यादा रखो

दिखावे का जमाना है पिछड़ जाओगे
मेहमां कम सही कुर्सियाँ ज्यादा रखो

चल रहे हो भीड़ में चीखना बेमानी है
बँधे हुये हाथों में तख्तियाँ ज्यादा रखो

सुख दुख की लहरों से लड़ना हो गर
हौसलों से भरी कश्तियाँ ज्यादा रखो

दौड़ती हाँफती ज़िदगी के लम्हों से
परे हटा गम़ो को मस्तियाँ ज्यादा रखो

       #श्वेता🍁

Sunday 25 June 2017

उम्मीदों की फेहरिश्त

आज के ख्वाहिशें इंतज़ार में पड़ी होती है
कल की उम्मीदों की फेहरिश्त बड़ी होती है

बहते है वक्त की मुट्ठियों से फिसलते लम्हें
कम होती ज़िदगी के हाथों में घड़ी होती है

क्यों गिरबां में अपने कोई झाँकता नहीं है
निगाहें ज़माने की झिर्रियों में खड़ी होती है

टूटना ही हश्र रात के ख्वाबों का फिर भी
नहीं मानती नींदें भी ज़िद में अड़ी होती है

श्वेत श्याम रंगीन तस्वीरें बंद किताबों में
मृत हो चुकी यादों की जिंदा कड़ी होती है

          #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...