Wednesday, 28 June 2017

सौगात

मुद्दतों बाद रूबरू हुए आईने से
खुद को न पहचान सके
जाने किन ख्यालों में गुम हुए थे
जिंदगी तेरी सूरत भूल गये

ख्वाब इतने भर लिए आँखों में
हकीकत सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझ बैठे
न प्यास बुझी तड़पा ही किये

एक टुकड़ा आसमान की ख्वाहिश में
जमीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच खुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये

सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
कुछ तो सौगात मिला तुमसे
ऐ जिंदगी चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा

             #श्वेता🍁


6 comments:

  1. मुद्दतों बाद रूबरू हुए आईने से
    खुद को न पहचान सके
    क्या बात है...
    वाह....
    सादर..

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया दी आपका।
      धन्यवाद😊

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  2. Replies
    1. बहुत शुक्रिया आभार आपका विश्वमोहन जी।

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  3. सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
    कमाल के शब्द संजोये हैं दिल को दस्तक देती खूबसूरत रचनाश हमेशा की तरह

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आभार संजय जी। आपके सुंदर सराहना भरे शब्द हमेशा की तरह।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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