Thursday 9 April 2020

दायित्व


प्रकृति के कोप के
विस्फोट के फलस्वरूप
नन्हें-नन्हें असंख्य मृत्यु दूत
ब्रह्मांड के अदृश्य पटल से
धरा पर आक्रमण कर
सृष्टि से
मानवों का अस्तित्व मिटाने के लिए
संकल्प रखा हो मानो..
जीवन बचाने के लिए
वचनबद्ध,कर्मठ,
जीवन और मृत्यु के महासमर में
रक्षक बनकर
सेनापति चिकित्सक एवं उनके
असंख्य सहयोगी योद्धा
यथाशक्ति अपनी क्षमता अनुरुप
भूलकर अपना सुख,
घर-परिवार 
मृत्यु से साक्षात्कार कर रहे हैं
अस्पतालों के असुरक्षित रणभूमि में
मानव जाति के प्राणों को
सुरक्षित रखने के लिए संघर्षरत  
अनमयस्क भयभीत
क्षुद्र मानसिकता
मूढ़ मनुष्यों के तिरस्कार,
अमानवीय व्यवहार से चकित 
आहत होकर भी
अपनी कर्मठता के प्रण में अडिग
मृत्यु की बर्बर आँधी से
उजड़ती सभ्यताओं की 
बस्ती में,
सुरक्षा घेरा बनाते
अपने प्राण हथेलियों पर लिये
मानवता के
साँसों को बाँधने का यत्न करते,
जीवन पुंजों के सजग प्रहरियों को
कुछ और न सही
स्नेह,सम्मान और सहयोग देकर
इन चिकित्सक योद्धाओं का
मनोबल दृढ़ करना
प्रत्येक नागरिक का
दायित्व होना चाहिए।

#श्वेता

९अप्रैल२०२०

Wednesday 8 April 2020

शायद....!!!


हो जो पेट भरा तो
दिमाग़ निवाले
गिन सकता है,
भात के दानों से
मसल-मसलकर
खर-कंकड़
बीन सकता है,
पर... भूख का
दिल और दिमाग
रोटी होती है
भात की बाट
जोहती आँतों को 
ताजा है कि बासी
मुँह में जाते निवाले
स्पेशल हैं
कि राजसी
फ़र्क नहीं पड़ता।

भूख की भयावहता
रोटी की गंध,
भात के दाने,
बेबस चेहरे,
सिसकते बच्चे,
बुझे चूल्हे,
ढनमनाते बर्तन,
निर्धनों के
सिकुड़े पेट की
सिलवटें गिनकर
क़लम की नोंक से,
टी.वी पर
अख़बार में
नेता हो या अभिनेता
भूख के एहसास को 
चित्रित कर
रचनात्मक कृतियों में
बदलकर
वाह-वाही, 
तालियाँ और ईनाम 
पाकर गदगद
संवेदनशील हृदय 
उस भूख को
मिटाने का उद्योग
करने में क्यों स्वयं को
सदैव असमर्थ है पाता ?
किसी की भूख परोसना
भूख मिटाने से
ज्यादा आसान है
शायद...!!

#श्वेता

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...