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Monday, 20 November 2017

पत्थर के शहर में


पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं।
मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढ़ते हैं।।

हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों से,
उड़ सकें कुछ पल सुकूं के वो आसमां ढूँढ़ते हैं।

बार-बार हक़ीक़त का आईना क्या दिखाते हो,
ज़माने के सारे ग़म भुला दे जो वो परिस्तां ढूँढ़ते हैं।

जीना तो होगा ही जिस हाल में भी जी लो,
चंद ख़ुशियों की चाह लिए पत्थर में जान ढूँढ़ते हैं।

ठोकरों में रखते हैं हरेक ख़्वाहिश इस दिल की,
उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूँढ़ते हैं।


    #श्वेता🍁

Friday, 15 September 2017

तुम ही तुम


तुम ही तुम छाये हो ख़्वाबों ख़्यालों में
दिल के शजर के पत्तों में और डालों में

लबों पे खिली मुस्कान तेरी जानलेवा है
चाहती हूँ दिल टाँक दूँ मैं तुम्हारे गालों में

लकीरों के फ़सानें मुहब्बत की कहानी
न जाने क्यूँ उलझी हूँ बेकार सवालों में

है गुम न जाने इस दिल को हुआ क्या है
सुकूं मिलता नहीं अब मंदिर शिवालों में

तेरे एहसास में कशिश ही कुछ ऐसी है 
भरम टूट नहीं पाता हक़ीक़त के छालों में


      #श्वेता🍁

Sunday, 10 September 2017

ज़िदगी

हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी

लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी

दाखिल हुये जज़ीरे में एहसास है नये
पीकर के आब-ए-इश्क है मचलती ज़िदगी

मीठी नहीं हैं उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों की दरारों से आ छलकती ज़िदगी

करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों की साँस सी तड़पती ज़िदगी

बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी

आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ाँ
सूखे शजर की साँस-साँस ढलती ज़िंदगी

       #श्वेता🍁

Thursday, 7 September 2017

मोहब्बत की रस्में

*चित्र साभार गूगल*

मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम

इबादत में कुछ और दिखता नहीं है

सज़दे में उन को ख़ुदा कर चुके हम

ये  कैसी  ख़ु
मारी  में  भूले  ज़माना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम

बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम

शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम

जाता नहीं दर्द दिल का है भारी

हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम


      #श्वेता🍁

Wednesday, 30 August 2017

उनकी याद

*चित्र साभार गूगल*
तन्हाई में छा रही है उनकी याद
देर तक तड़पा रही है उनकी याद

काश कि उनको एहसास होता
कितना सता रही है उनकी याद

एक कतरा धूप की आस में बैठी
मौन कपकपा रही है उनकी याद

रख लूँ लाख मशरूफ खुद को
जे़हन में छा रही है उनकी याद

साथ घूमने ख्वाब की गलियों में
बार बार ले जा रही है उनकी याद

रूला कर ज़ार ज़ार सौ बार देखो
बेशरम मुस्कुरा रही है उसकी याद

बना लूँ दिल भी पत्थर का मगर
मोम सा पिघला रही है उनकी याद

   #श्वेता🍁

Wednesday, 16 August 2017

सोये ख्वाबों को


सोये ख्वाबों को जगाकर चल दिए
आग मोहब्बत की जलाकर चल दिए

खुशबू से भर गयी गलियाँ दिल की
एक खत सिरहाने दबाकर चल दिये

रात भर चाँद करता रहा पहरेदारी
चुपके से आके नींद चुराकर चल दिये

चिकनी दीवारों पे कोई रंग न चढ़ा
वो अपनी तस्वीर लगाकर चल दिये

उन निगाहों की आवारगी क्या कहे
दिल धड़का के चैन चुराकर चल दिये

बनके मेहमां ठहरे पल दो पल ही
उम्रभर की याद थमाकर  चल दिये

   #श्वेता🍁


Wednesday, 2 August 2017

भरा है दिल

भरा है दिल,पलकों से बह जायेगा
भीगा सा कतरा,दामन में रह जायेगा

न बनाओ समन्दर के किनारे घरौंदा
आती है लहर, ठोकरों में ढह जायेगा

रतजगे ख्वाबों के दर्द जगा जाते है
खामोश है दिल, सारे गम़ सह जायेगा

अनजाने रस्ते है जीवन के सफर में
काफिला यादों का, साथ रह जायेगा

गैर नहीं दिल का हिस्सा है तुम्हारे
तुम भी समझोगे, वक्त सब कह जायेगा

          #श्वेता🍁

दिल पे तुम्हारे

दिल पे तुम्हारे कुछ तो हक हमारा होगा
कोई लम्हा तो याद का तुमको प्यारा होगा

कब तलक भटकेगा इश्क की तलाश में
दिली ख्वाहिश का कोई तो किनारा होगा

रात तो कट जाएगी बिन चाँदनी के भी
न हो सूरज तो दिन का कैसे गुजारा होगा

पूछती है उम्मीद भरी आँखें बागवान की
लुटती बहार मे कौन फूलों का सहारा होगा

तोड़ आते रस्मों की जंजीर तेरी खातिर
यकीन ही नहीं तुमने दिल से पुकारा होगा

     #श्वेता🍁



Saturday, 29 July 2017

किस गुमान में है

आप अब तक किस गुमान में है
बुलंदी भी वक्त की ढलान में  है

कदम बेजान हो गये ठोकरों से
सफर ज़िदगी का थकान में  है

घूँट घूँट पीकर कंठ भर आया
सब्र  गम़ का इम्तिहान  में  है

डरना नही तीरगी से मुझको
भोर का सूरज दरम्यान में है

नीम  सी लगी  वो बातें   सारी
कड़वाहट अब भी ज़बान में है


  #श्वेता🍁

Thursday, 13 July 2017

छू गया नज़र से

चित्र साभार गूगल
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छू गया नज़र से वो मुझको जगमगा गया
बनके हसीन ख्वाब निगाहों में कोई छा गया

देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी
चाँद देखो आज खुद ही मेरे छत पे आ गया

चुप बहुत उदास रही राह की वीरानियाँ
वो दीप प्रेम के लिए हर मोड़ को सजा गया

खिले लबों का राज़ क्या लोग पूछने लगे
धड़कनों के गीत वो सरगम कोई सुना गया

डरी डरी सी चाँदनी थी बादलों के शोर से
तोड़ कर के चाँद वो दामन में सब लगा गया

      #श्वेता🍁

Wednesday, 12 July 2017

न तोड़ो आईना

न तोड़ो आईना यूँ राह का पत्थर बनकर
खनकने दो न हसी प्यार का मंज़र बनकर

चुपचाप सोये है जो रेत के सफीने है
साथ बह जायेगे लहरों के समन्दर बनकर

न समझो धूल हिकारत से हमको देखो न
आँधी आने दो उड़ा देगे बबंडर बनकर

दिल कौन जीत पाया है शमशीर के बल
मैदान मार लो चाहो तो सिकंदर बनकर

क्या कम है किसी से तेरे जीवन के सफर
हलाहल रोज ही पीते तो हो शंकर बनकर

छुपा लूँ खींच के हाथों में लकीरों की तरह
साँसों सा साथ रहे मेेरा मुकद्दर बनकर

    #श्वेता🍁

Tuesday, 11 July 2017

आराम कमाने निकलते है

आराम कमाने निकलते है आराम छोड़कर
जेब में रखते है मुट्ठीभर ख्वाहिश मोड़कर
दो निवाले भी मुश्किल हो जाते है सुकून से
कल की चिंता रख दे हर कदम झकझोर कर
टूटी गुल्लकों के साथ उम्मीद भरी आँखें मासूम
पापा हमें भी ला दो खिलौने और मिठाई मोलकर
रुपयों का मोल हर बार ज्यादा लगा दुकान पर
हर खुशी कम लगी जब देखी जेबे टटोलकर
कहते है सब खरीदा नही जा सकता है दाम देकर
कुछ भी न मिला भरे बाज़ार मे मीठे से बोलकर
अजीब है जिंंदगी ऊसूल भी गज़ब से लगते है
सिलसिला साँसों का टूट जायेगा यूँ ही भागदौड़ कर



Friday, 7 July 2017

बुझ गयी शाम

बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी
जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी

दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी

कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी

खामोशियों में बिखरा ये गीत है तुम्हारा
लफ़्ज़ बह रहे हैं चल रही पुरवाईयाँ भी

बेचैनी की पलकों से गिरने लगी है यादें
दर्द ही सुनाए है रात की शहनाईयाँ भी

      #श्वेता🍁

ज़िदगी तेरी राह में



जिंदगी तेरे राह में हर रंग का नज़ारा मिला
कभी खुशी तो कभी गम बहुत सारा मिला

जो गुजरा लम्हा खुशी की पनाह से होकर
बहुत ढ़ूँढ़ा वो पल फिर न कभी दोबारा मिला

तय करना है मंजिल सफर में चलते रहना है
वो खुशनसीब रहे जिन्हें हमसफर प्यारा मिला

हथेलियों से ढका कब तलक दीप रौशन रहता
पल भर मे बुझा जब हवाओं का सहारा मिला

जिसने जीता हो ज़िदगी को हर मुकाम पर
अक्सर ही अपनों के बीच वो हमें हारा मिला
           #श्वेता🍁



Thursday, 6 July 2017

एक एक पल


आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो
ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो

राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत
सामना कर हर बाधा का सफर  जारी रखो

कौन भला क्या छीन सकता है तुमसे तुम्हारा
खुद पर भरोसा रखकर मौत से यारी रखो

न बनाओ ईमान को हल्का सब उड़ा ही देगे
अपने कर्म पर सच्चाई का पत्थर भारी रखो

गुजरते लम्हे न लौटेगे कभी ये ध्यान रहे
एक एक पल को जीने की पूरी तैयारी रखो

Sunday, 2 July 2017

चुप है

बड़ी खामोशी है फैली ये हवाएँ चुप है
तेरे दर होके लौटी आज सदाएँ चुप है

तक रहे राह तेरी अब सुबह से शाम हुई
तेरीे आहट नहीं मिलती ये दिशाएँ चुप है

भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है

हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है

सिवा तुम्हारे न कुछ और रब से चाहा है
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है

    #श्वेता🍁

Tuesday, 27 June 2017

खिड़कियाँ ज्यादा रखो

दीवारें कम खिड़कियाँ ज्यादा रखो
शोर क्यों करो चुप्पियाँ ज्यादा रखो

न बोझ हो सीने में कोई न मलाल हो
बिना उम्मीद के नेकियाँ ज्यादा रखो

दिखावे का जमाना है पिछड़ जाओगे
मेहमां कम सही कुर्सियाँ ज्यादा रखो

चल रहे हो भीड़ में चीखना बेमानी है
बँधे हुये हाथों में तख्तियाँ ज्यादा रखो

सुख दुख की लहरों से लड़ना हो गर
हौसलों से भरी कश्तियाँ ज्यादा रखो

दौड़ती हाँफती ज़िदगी के लम्हों से
परे हटा गम़ो को मस्तियाँ ज्यादा रखो

       #श्वेता🍁

Sunday, 25 June 2017

उम्मीदों की फेहरिश्त

आज के ख्वाहिशें इंतज़ार में पड़ी होती है
कल की उम्मीदों की फेहरिश्त बड़ी होती है

बहते है वक्त की मुट्ठियों से फिसलते लम्हें
कम होती ज़िदगी के हाथों में घड़ी होती है

क्यों गिरबां में अपने कोई झाँकता नहीं है
निगाहें ज़माने की झिर्रियों में खड़ी होती है

टूटना ही हश्र रात के ख्वाबों का फिर भी
नहीं मानती नींदें भी ज़िद में अड़ी होती है

श्वेत श्याम रंगीन तस्वीरें बंद किताबों में
मृत हो चुकी यादों की जिंदा कड़ी होती है

          #श्वेता🍁

Tuesday, 20 June 2017

चुपके से

चुपके से उतरे दिल में हंसी लम्हात दे गये
पलकें अभी भी है भरी वो  बरसात दे गये

भर लिए ख्वाब आँखों मे न पूछा तुमसे
चंद यादों के बदले दर्द  की सौगात दे गये

एक नज़र प्यार की चाहत ज्यादा तो न थी
खामोश रहे  तुम उलझे से ख्यालात दे गये

दिल मे गहरे चढ गये रंग तेरे  एहसासों के
मिटाए से न मिटे महकते से जज़्बात दे गये

हसरते दिल की अधूरी है न पूरी होगी कभी
गर्म आहों में लिपटी तन्हा सर्द  रात दे गये

    #श्वेता🍁

Wednesday, 14 June 2017

तेरी तलबदार

तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है
दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है

तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो
आँख़े तुम्हारी मुस्कां की तरफदार है

बिन बहार महकी है बगिया दिल की
तेरी रूह की तासीर ही खुशबूदार है

जी नहीं पायेगे तेरी आहटों के बिन
पलभर का साथ तेरा इतना असरदार है

जो भी दिया तुमने रहमत लगी खुदा की
हर एक पल के एहसास तेरे कर्जदार है

       #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...