Sunday 2 July 2017

चुप है

बड़ी खामोशी है फैली ये हवाएँ चुप है
तेरे दर होके लौटी आज सदाएँ चुप है

तक रहे राह तेरी अब सुबह से शाम हुई
तेरीे आहट नहीं मिलती ये दिशाएँ चुप है

भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है

हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है

सिवा तुम्हारे न कुछ और रब से चाहा है
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है

    #श्वेता🍁

14 comments:

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका P.Kji

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  2. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
    भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
    बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है
    शानदार शेर

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    1. बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  3. बेहतरीन..
    हर श़ेर में दम है
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।

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  4. तक रहे राह तेरीअब सुबह से शाम हुई
    तेरी आहट नहीं मिलती ये दिशाएं चुप हैं
    बहुत ही सुन्दर....
    बेहतरीन....

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    1. बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी , सस्नेह अभिनंदन

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  5. हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
    मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है.....

    हर शेर अपनी अलग पहचान लिए। बेहतरीन ग़ज़ल। बधाई श्वेता जी।

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    1. बहुत आभार शुक्रिया रवींद्र जी।
      आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से आभार।

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  6. बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है
    ग़जब ... इन पंक्तियों का कौन क्या मुकाबला करेगा श्वेता जी
    दर्द को छुपाकर आख़िरकार उसी को बयाँ करती एक बेहतरीन पोस्ट :)

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    1. जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी, आपकी प्रतिक्रिया सदैव अच्ता लिखने को प्रोत्साहित करती है।

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  7. Replies
    1. जी, बहुत आभार विश्वमोहन जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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