बड़ी खामोशी है फैली ये हवाएँ चुप है
तेरे दर होके लौटी आज सदाएँ चुप है
तक रहे राह तेरी अब सुबह से शाम हुई
तेरीे आहट नहीं मिलती ये दिशाएँ चुप है
भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है
हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है
सिवा तुम्हारे न कुछ और रब से चाहा है
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है
#श्वेता🍁
तेरे दर होके लौटी आज सदाएँ चुप है
तक रहे राह तेरी अब सुबह से शाम हुई
तेरीे आहट नहीं मिलती ये दिशाएँ चुप है
भरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है
हरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
मुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है
सिवा तुम्हारे न कुछ और रब से चाहा है
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है
#श्वेता🍁
सुंदर रचना श्वेता जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका P.Kji
Deleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteभरे है बादल ये आसमां बोझिल सा लगे
बरस भी जाती नही क्यों ये घटाएँ चुप है
शानदार शेर
बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteहर श़ेर में दम है
सादर
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।
Deleteतक रहे राह तेरीअब सुबह से शाम हुई
ReplyDeleteतेरी आहट नहीं मिलती ये दिशाएं चुप हैं
बहुत ही सुन्दर....
बेहतरीन....
बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी , सस्नेह अभिनंदन
Deleteहरे भरे गुलिस्तां में छायी है वीरानी कैसी
ReplyDeleteमुस्कुराने की वजह तुम हो फिजा़एँ चुप है.....
हर शेर अपनी अलग पहचान लिए। बेहतरीन ग़ज़ल। बधाई श्वेता जी।
बहुत आभार शुक्रिया रवींद्र जी।
Deleteआपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से आभार।
बिखरी है आरजू सारी ये दुआएँ चुप है
ReplyDeleteग़जब ... इन पंक्तियों का कौन क्या मुकाबला करेगा श्वेता जी
दर्द को छुपाकर आख़िरकार उसी को बयाँ करती एक बेहतरीन पोस्ट :)
जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी, आपकी प्रतिक्रिया सदैव अच्ता लिखने को प्रोत्साहित करती है।
Deleteसुंदर!
ReplyDeleteजी, बहुत आभार विश्वमोहन जी।
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