Tuesday, 4 July 2017

कभी तो नज़र डालिए

कभी तो नज़र डालिए अपने गिरेबान में
ज़माना ही क्यों रहता बस आपके ध्यान में

कुछ ख्वाब रोज गिरते है पलकों से टूटकर
फिर भोर को मिलते है हसरत की दुकान में

मरता नहीं कोई किसी से बिछड़े भी तो
यही बात तो खास है हम अदना इंसान में

दूरियों से मिटती नहीं गर एहसास सच्चे हो
दूर नज़र से होके रहे कोई दिल के मकान में

दावा न कीजिए साथ उम्रभर निभाने का
जाने वक्त क्या कह जाये चुपके से कान में

        #श्वेता🍁

10 comments:

  1. वाहः बहुत सुंदर ग़ज़ल

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  2. बहुत बढ़िया गजल ----------

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    1. जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका रेणु जी।

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  3. दूरियों से मिटती नहीं गर एहसास सच्चे हो
    दूर नज़र से होके रहे कोई दिल के मकान में

    सधी लेखनी उत्तम विचार ,सुन्दर ! आभार। "एकलव्य"

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    1. जी, बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका ध्रुव जी।
      प्रतिक्रिया सदैव प्रोत्साहित करती अच्छा लिखने को।
      अनेको धन्यवाद ।

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  4. बहुत खूब ... गहरे शेर .. कोई नहीं मस्त किसी की खातिर ... क्या बात ..
    और अपने गिरेबान में भी कोई नहीं झांकता ... कमाल की बातें कह दी आपने ...

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका नासवा जी।आपके सराहनीय शब्दों के लिए हृदय से धन्यवाद।

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  5. अदभुत लेखनी उम्दा लफ़्ज़ों का चयन! प्रशंशनिये रचना

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    1. संजय जी,आपने सदा सराहा ही है मेरे लेखन को आपकी शुभकामनाएँ और प्रशंसनीय शब्दों के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया और हृदय से धन्यवाद।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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