राह के कंटकों से हार मानूँ मैं,संभव नहीं।
बिना लड़े जीवन भार मानूँ मैं,संभव नहीं।
हंसकर,रोकर ,ख्वाहिश बोकर,भूल गम
खुशियों पे अधिकार मानूँ मैं, संभव नहीं।
खुशियों पे अधिकार मानूँ मैं, संभव नहीं।
रात है तो ख्वाब है,पलकों पे नव संसार है
स्वप्न को जीवन आधार मानूँ मैं,संभव नहीं।
स्वप्न को जीवन आधार मानूँ मैं,संभव नहीं।
तुम न करो मैं न करूँ,ऐसे न होते नेह डोर
प्रेम को लेन देन व्यापार मानूँ मैं,संभव नहीं।
प्रेम को लेन देन व्यापार मानूँ मैं,संभव नहीं।
तम उजाला मन भरा,और कुछ है धरा नहीं
बुरा देख जग को बेकार मानूँ मैं,संभव नहीं।
बुरा देख जग को बेकार मानूँ मैं,संभव नहीं।
बहुत सुंदर एहसास से भरी अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत सुंदर दिल के जज्बात पिरोए हें आपने अपनी कविता में हर शब्द जैसे दिल से निकल रहा हो !सुंदर भाव ...
ReplyDeleteजी, बहुत शुक्रिया आपका हृदय से आभार संजय जी।
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