सुरमई रात के उदास चेहरे पे
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर
मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सोये
अलसाये है या डरे किसको खबर
झोंका पवन का ले आया नमी
छू रहा जुल्फों को हौले हौले
चूमकर चेहरे को सिहराये है तन
पूछता हाल दिल का रह रह के
सिलवटें करवटों की बेचैनी में
बीते है रात की तीसरी पहर
#श्वेता🍁
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर
मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सोये
अलसाये है या डरे किसको खबर
झोंका पवन का ले आया नमी
छू रहा जुल्फों को हौले हौले
चूमकर चेहरे को सिहराये है तन
पूछता हाल दिल का रह रह के
सिलवटें करवटों की बेचैनी में
बीते है रात की तीसरी पहर
#श्वेता🍁
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteप्रस्तुत रचना से खुबसूरत रचना कभी क्या हो सकती है। हर पँक्ति के साथ सांसों का उतार चढाव शुरू हो जाता है।
ReplyDeleteपीपल में दुबके होंगे परिंदे, कल्पना की बहुत सशक्त उड़ान है । बार बार पढ़ने को मन करता है।
जी, बहुत आभार शुक्रिया आपका।
Deleteशुभ प्रभात..
ReplyDeleteझोंका पवन का ले आया नमी
छू रहा जुल्फों को हौले हौले
उम्दा पंक्तियाँ...
सादर
बहुत बहुत आभार शुक्रिया दी आपका।
Deleteआपके शब्द प्रभावशाली हैं , लिखते रहें
ReplyDeleteजाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
बरसों के बाद मिले यारो,इतने निशब्द,नहीं मिलते ! -सतीश सक्सेना
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जी, बहुत आभार शुक्रिया सर आपका।
Deleteमिचमिचाती पीली रोशनी में
ReplyDeleteथिकरती बरखा घुँघरू सी
वाह !!!
बहुत ही सुन्दर.... सार्थक...
बहुत बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी।
Deleteरात के तीसरे पहर का चित्र बोलता हुआ प्रतीत हो रहा है। भावप्रवण अभिव्यक्ति। एक प्रभावशाली एवं संवेदनशील रचना। बधाई श्वेता जी।
ReplyDeleteजी, आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।
Deleteसिलवटें करवटों की बेचैनी में
ReplyDeleteबीते है रात की तीसरी पहर
यादें जैसे सिमट कर एक वजूद बना देती हैं .... लगता है हर खूशबू में बस उसिकी की महक बसी है ..
जी, संजय जी, शुक्रिया आभार आपका।
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