Sunday 2 July 2017

रात के तीसरे पहर

सुरमई रात के उदास चेहरे पे
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर
मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सोये
अलसाये है या डरे किसको खबर
झोंका पवन का ले आया नमी
छू रहा जुल्फों को हौले हौले
चूमकर चेहरे को सिहराये है तन
पूछता हाल दिल का रह रह के
सिलवटें करवटों की बेचैनी में
बीते है  रात की तीसरी पहर

    #श्वेता🍁

14 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

      Delete
  2. प्रस्तुत रचना से खुबसूरत रचना कभी क्या हो सकती है। हर पँक्ति के साथ सांसों का उतार चढाव शुरू हो जाता है।
    पीपल में दुबके होंगे परिंदे, कल्पना की बहुत सशक्त उड़ान है । बार बार पढ़ने को मन करता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बहुत आभार शुक्रिया आपका।

      Delete
  3. शुभ प्रभात..
    झोंका पवन का ले आया नमी
    छू रहा जुल्फों को हौले हौले
    उम्दा पंक्तियाँ...
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया दी आपका।

      Delete
  4. आपके शब्द प्रभावशाली हैं , लिखते रहें

    जाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
    बरसों के बाद मिले यारो,इतने निशब्द,नहीं मिलते ! -सतीश सक्सेना
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बहुत आभार शुक्रिया सर आपका।

      Delete
  5. मिचमिचाती पीली रोशनी में
    थिकरती बरखा घुँघरू सी
    वाह !!!
    बहुत ही सुन्दर.... सार्थक...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी।

      Delete
  6. रात के तीसरे पहर का चित्र बोलता हुआ प्रतीत हो रहा है। भावप्रवण अभिव्यक्ति। एक प्रभावशाली एवं संवेदनशील रचना। बधाई श्वेता जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।

      Delete
  7. सिलवटें करवटों की बेचैनी में
    बीते है रात की तीसरी पहर
    यादें जैसे सिमट कर एक वजूद बना देती हैं .... लगता है हर खूशबू में बस उसिकी की महक बसी है ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, संजय जी, शुक्रिया आभार आपका।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...