Friday, 7 July 2017

बुझ गयी शाम

बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी
जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी

दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी

कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी

खामोशियों में बिखरा ये गीत है तुम्हारा
लफ़्ज़ बह रहे हैं चल रही पुरवाईयाँ भी

बेचैनी की पलकों से गिरने लगी है यादें
दर्द ही सुनाए है रात की शहनाईयाँ भी

      #श्वेता🍁

16 comments:

  1. दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
    हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी
    बहुत ख़ूब ! सुन्दर रचना श्वेता जी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, आभार आपका ध्रुव जी।

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  2. बहुत खूब
    सुंदर ग़ज़ल

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।

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  4. वाह ! क्या बात है ! लाजवाब प्रस्तुति । हर शेर कुछ कहता हुआ । बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. बहुत शुक्रिया आभार सर। आपका आशीष मिला।

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  5. कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
    चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी.....

    ग़ज़ल लेखन तलवार की धार पर चलना होता है।शेर ,रदीफ़ ,काफ़िया ,मिसरे, मख़ता ,मतला ,बहर, वज़्न और मात्राओं का संतुलन आदि का समायोजन और कसौटी किसी ग़ज़लकार को उम्दा ग़ज़लकारी में ढाल देता है। श्वेता जी अब सिद्धहस्त हो चलीं हैं ग़ज़ल के वज़्नी शेर लिखने में। हरेक शेर मुक़म्मल और हमारे एहसासों से गुज़रता हुआ। वाह ... बधाई।

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    1. रवींद्र जी, सही कहा आपने गज़ल को गज़ल बनने के लिए बहुत सारे नियम से गुजरना होता है,वरना वो सिर्फ एक साधारण रचना रह जाती है।
      आपने बहुत मान दिया इतने उत्साहवर्धक शब्दों में परंतु मेरी लिखी गज़ल मे अब भी कमी है ।बहर नहीं बन पाता ठीक से।कोशिश जारी है आशा है आगे की रचनाओं में शायद त्रुटियों में सुधार कर पाये।
      बहुत आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी कृपया अपने शुभकामनाओं का साथ बनाये रखे।
      धन्यवाद।।

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    1. बहुत आभार आपका सर।

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  7. खामोशी का गीत ले के जब पुरवाइयां चलती हैं तो उनकी महक गूँज उठती है वादियों में ... अच्छे हैं सभी शेर ... खयालातों को जिन्दा रखिये ... नवीन रखिये ... शिल्प धीरे धीरे आ जाता है ...

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    1. जी, नासवा जी, आपका बहुत आभार शुक्रिया आप सब के सानिध्य में सीख ही लेगे।
      बहुत शुक्रिया आपका।

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  8. कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
    चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी
    ....बहुत सुन्दर मानवीकरण

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  9. बहुत खूब, हार्दिक मंगलकामनाएं

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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