बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी
जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी
दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी
कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी
खामोशियों में बिखरा ये गीत है तुम्हारा
लफ़्ज़ बह रहे हैं चल रही पुरवाईयाँ भी
बेचैनी की पलकों से गिरने लगी है यादें
दर्द ही सुनाए है रात की शहनाईयाँ भी
#श्वेता🍁
जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी
दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी
कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी
खामोशियों में बिखरा ये गीत है तुम्हारा
लफ़्ज़ बह रहे हैं चल रही पुरवाईयाँ भी
बेचैनी की पलकों से गिरने लगी है यादें
दर्द ही सुनाए है रात की शहनाईयाँ भी
#श्वेता🍁
दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
ReplyDeleteहो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी
बहुत ख़ूब ! सुन्दर रचना श्वेता जी
बहुत बहुत शुक्रिया, आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल
बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।
Deleteवाह ! क्या बात है ! लाजवाब प्रस्तुति । हर शेर कुछ कहता हुआ । बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आभार सर। आपका आशीष मिला।
Deleteकर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
ReplyDeleteचाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी.....
ग़ज़ल लेखन तलवार की धार पर चलना होता है।शेर ,रदीफ़ ,काफ़िया ,मिसरे, मख़ता ,मतला ,बहर, वज़्न और मात्राओं का संतुलन आदि का समायोजन और कसौटी किसी ग़ज़लकार को उम्दा ग़ज़लकारी में ढाल देता है। श्वेता जी अब सिद्धहस्त हो चलीं हैं ग़ज़ल के वज़्नी शेर लिखने में। हरेक शेर मुक़म्मल और हमारे एहसासों से गुज़रता हुआ। वाह ... बधाई।
रवींद्र जी, सही कहा आपने गज़ल को गज़ल बनने के लिए बहुत सारे नियम से गुजरना होता है,वरना वो सिर्फ एक साधारण रचना रह जाती है।
Deleteआपने बहुत मान दिया इतने उत्साहवर्धक शब्दों में परंतु मेरी लिखी गज़ल मे अब भी कमी है ।बहर नहीं बन पाता ठीक से।कोशिश जारी है आशा है आगे की रचनाओं में शायद त्रुटियों में सुधार कर पाये।
बहुत आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी कृपया अपने शुभकामनाओं का साथ बनाये रखे।
धन्यवाद।।
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका सर।
Deleteखामोशी का गीत ले के जब पुरवाइयां चलती हैं तो उनकी महक गूँज उठती है वादियों में ... अच्छे हैं सभी शेर ... खयालातों को जिन्दा रखिये ... नवीन रखिये ... शिल्प धीरे धीरे आ जाता है ...
ReplyDeleteजी, नासवा जी, आपका बहुत आभार शुक्रिया आप सब के सानिध्य में सीख ही लेगे।
Deleteबहुत शुक्रिया आपका।
कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
ReplyDeleteचाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी
....बहुत सुन्दर मानवीकरण
बहुत खूब, हार्दिक मंगलकामनाएं
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