Thursday, 6 July 2017

एक एक पल


आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो
ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो

राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत
सामना कर हर बाधा का सफर  जारी रखो

कौन भला क्या छीन सकता है तुमसे तुम्हारा
खुद पर भरोसा रखकर मौत से यारी रखो

न बनाओ ईमान को हल्का सब उड़ा ही देगे
अपने कर्म पर सच्चाई का पत्थर भारी रखो

गुजरते लम्हे न लौटेगे कभी ये ध्यान रहे
एक एक पल को जीने की पूरी तैयारी रखो

6 comments:

  1. बहुत बेहतरीन ग़ज़ल

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

      Delete
  2. वाह ! क्या कहने हैं ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सर।

      Delete
  3. बहुत ख़ूब ! क्या लिखा है सुन्दर रचना
    आभार "एकलव्य"

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बहुत.बहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव जी।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...