Monday, 20 November 2017

पत्थर के शहर में


पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं।
मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढ़ते हैं।।

हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों से,
उड़ सकें कुछ पल सुकूं के वो आसमां ढूँढ़ते हैं।

बार-बार हक़ीक़त का आईना क्या दिखाते हो,
ज़माने के सारे ग़म भुला दे जो वो परिस्तां ढूँढ़ते हैं।

जीना तो होगा ही जिस हाल में भी जी लो,
चंद ख़ुशियों की चाह लिए पत्थर में जान ढूँढ़ते हैं।

ठोकरों में रखते हैं हरेक ख़्वाहिश इस दिल की,
उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूँढ़ते हैं।


    #श्वेता🍁

34 comments:

  1. पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं।
    मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढते हैं।।

    बहुत ही सुंदर रचना।।।।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका P.k ji.
      आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया है।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 21 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।

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  3. बहुत सुन्दर गज़ल श्वेता जी .

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  4. जमीं हक़ीक़त है इसे मान लीजिए
    आसमाँ चाहो तो उड़ने की ठान लीजिए
    सवालों से बच कर जवाब तो न मिलेंगे
    कोशिशों गर हैं हथेलियों में सूरज खिलेंगे

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    1. वाह्ह्ह बहुत सुंदर सकारात्मक लिखा आपने।
      जी,बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  5. वाह !
    बहुत ख़ूब !
    ख़ूबसूरत अंदाज़-ए-बयां।
    सभी शेर एक से बढ़कर एक।
    रब ऐसे तलाशकर्ता की तलाश मुकम्मल भी करता है कभी-कभी ...
    श्वेता जी का कल्पनालोक नए भाव और कलात्मक शब्दावली से भरा हुआ है।
    लिखते रहिये।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होती है।
      आदरणीय रवींद्र जी कृपया अपनी शुभकामनाओं का आशीष बनाये रखिये।
      बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया ।

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  6. ठोकरों में रखते हैं हरेक ख़्वाहिश इस दिल की,
    उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूँढ़ते हैं--------
    बहुत खूब !! क्या कहने इस अनोखे अंदाजे बयां के ----- बहुत ही सराहनीय श्वेता बहन !!!!!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका। आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया का सदैव इंतजार रहता है।

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  7. क्या बात है बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  8. लाजवाब गजल.....!!!
    वाह!!!
    उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूढते हैं....

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  9. लाजवाब शेर ...
    एक से बढ़ कर एक ... अपनी बात को बाखूबी रखते हुए ...

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    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका नासवा जी,आपकी सराहना मायने रखती है।

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  10. एक से बढ़कर एक शेर
    बहुत खूब बात को कहने का अनोखा अंदाज है आपका स्वेता जी

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    1. बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा,आपकी सराहना सदैव उल्लासित कर जाती है।

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  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति स्वेता!

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    1. बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका ज्योति जी।

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  12. वाह बेहतरीन शब्दो के तरणताल मे गोते लगाती...आपकी मनभावो से उपजी बेहतरीन गजल....बधाई हो स्वेता जी आपको....!!!

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    1. इतने सुंदर शब्दों म़े आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हो गया अनु जी।अति आभार,तहेदिल से.शुक्रिया बहुत सारा।

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  13. Replies
    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका सर।

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  14. shabd nahi milte jo bayan kare
    aap ke shabdon ki gaherai
    bahut sunder

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  15. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका नीतू जी।
    आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है।

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  16. हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों से,
    उड़ सकें कुछ पल सुकूं के वो आसमां ढूँढ़ते हैं।

    वाह वाह। बहुत संजीदा औऱ असरदार ग़ज़ल। लाज़वाब। हर एक शेर शानदार।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अमित जी तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।

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  17. बहुत सुन्दर श्वेता जी, लाजवाब.

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  18. My God..U write so beautiful..I wish I could write like this..
    Hats off ma'am:)

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  19. बहुत खूबसूरत पंक्तियां

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  20. द ख़ुशियों की चाह लिए पत्थर में जान ढूँढ़ते हैं।

    kadwaa magr sach


    saarthak rchnaa ke liye dbhaayi

    achhi gazal hui he

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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