पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं।
मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढ़ते हैं।।
हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों से,
उड़ सकें कुछ पल सुकूं के वो आसमां ढूँढ़ते हैं।
।
बार-बार हक़ीक़त का आईना क्या दिखाते हो,
ज़माने के सारे ग़म भुला दे जो वो परिस्तां ढूँढ़ते हैं।
जीना तो होगा ही जिस हाल में भी जी लो,
चंद ख़ुशियों की चाह लिए पत्थर में जान ढूँढ़ते हैं।
ठोकरों में रखते हैं हरेक ख़्वाहिश इस दिल की,
उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूँढ़ते हैं।
#श्वेता🍁
पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeleteमोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढते हैं।।
बहुत ही सुंदर रचना।।।।
बहुत बहुत आभार आपका P.k ji.
Deleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 21 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।
Deleteबहुत सुन्दर गज़ल श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteजमीं हक़ीक़त है इसे मान लीजिए
ReplyDeleteआसमाँ चाहो तो उड़ने की ठान लीजिए
सवालों से बच कर जवाब तो न मिलेंगे
कोशिशों गर हैं हथेलियों में सूरज खिलेंगे
वाह्ह्ह बहुत सुंदर सकारात्मक लिखा आपने।
Deleteजी,बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका।
वाह !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ख़ूबसूरत अंदाज़-ए-बयां।
सभी शेर एक से बढ़कर एक।
रब ऐसे तलाशकर्ता की तलाश मुकम्मल भी करता है कभी-कभी ...
श्वेता जी का कल्पनालोक नए भाव और कलात्मक शब्दावली से भरा हुआ है।
लिखते रहिये।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होती है।
Deleteआदरणीय रवींद्र जी कृपया अपनी शुभकामनाओं का आशीष बनाये रखिये।
बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया ।
ReplyDeleteठोकरों में रखते हैं हरेक ख़्वाहिश इस दिल की,
उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूँढ़ते हैं--------
बहुत खूब !! क्या कहने इस अनोखे अंदाजे बयां के ----- बहुत ही सराहनीय श्वेता बहन !!!!!!!
बहुत बहुत आभार आपका रेणु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका। आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया का सदैव इंतजार रहता है।
Deleteक्या बात है बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteलाजवाब गजल.....!!!
ReplyDeleteवाह!!!
उनकी चौखट पे अपने मरहम का सामान ढूढते हैं....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteलाजवाब शेर ...
ReplyDeleteएक से बढ़ कर एक ... अपनी बात को बाखूबी रखते हुए ...
बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका नासवा जी,आपकी सराहना मायने रखती है।
Deleteएक से बढ़कर एक शेर
ReplyDeleteबहुत खूब बात को कहने का अनोखा अंदाज है आपका स्वेता जी
बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा,आपकी सराहना सदैव उल्लासित कर जाती है।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति स्वेता!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका ज्योति जी।
Deleteवाह बेहतरीन शब्दो के तरणताल मे गोते लगाती...आपकी मनभावो से उपजी बेहतरीन गजल....बधाई हो स्वेता जी आपको....!!!
ReplyDeleteइतने सुंदर शब्दों म़े आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हो गया अनु जी।अति आभार,तहेदिल से.शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका सर।
Deleteshabd nahi milte jo bayan kare
ReplyDeleteaap ke shabdon ki gaherai
bahut sunder
बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका नीतू जी।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है।
हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों से,
ReplyDeleteउड़ सकें कुछ पल सुकूं के वो आसमां ढूँढ़ते हैं।
वाह वाह। बहुत संजीदा औऱ असरदार ग़ज़ल। लाज़वाब। हर एक शेर शानदार।
बहुत बहुत आभार आपका अमित जी तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteबहुत सुन्दर श्वेता जी, लाजवाब.
ReplyDeleteMy God..U write so beautiful..I wish I could write like this..
ReplyDeleteHats off ma'am:)
बहुत खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteद ख़ुशियों की चाह लिए पत्थर में जान ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeletekadwaa magr sach
saarthak rchnaa ke liye dbhaayi
achhi gazal hui he