मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
किसी उजली छाँह की तलाश नहीं है
किसी मीठे झील की अब प्यास नहीं है,
नभ धरा के हाशिये के आस-पास
धडक रही है धीमे-धीमे -साँस,
उस मीत के सत्कार में हूँ।
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
सृष्टि की निभृत पीड़ाओं से मुक्त हो
दिशाओं के स्वर पाश से उन्मुक्त हो,
नक्षत्रों के बियाबान के कहीं उस पार
सूर्य-चंदा रत्नजड़ित अलौकिक शृंगार ,
भावनाओं के विमुग्ध संसार में हूँ
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
अनघ सानिध्य में अनुभूतियों के
तृप्त कामनाओं के दिव्य वीथियों के,
जीवन-मरण के प्रश्न सारे भूलकर
अमर्त्य आत्मा के बाहुपाश में झूलकर,
वीतरागी 'पी' के अधिकार में हूँ।
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ....।
#श्वेता सिन्हा
११फरवरी२०२१
११फरवरी२०२१
प्रकृति के प्यार में ही रहना चाहिए श्वेता जी । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 11 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेह शुक्रिया प्रिय दिबू।
Deleteआभार।
बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीया दी।
ReplyDeleteसादर।
बहुत सुन्दर और लयबद्ध गीत।
ReplyDeleteबक्षुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
आदरणीया मैम,
ReplyDeleteमैं प्रकृति के प्यार में हूँ...... कितना सुंदर कथन है।
आपकी यह कविता प्रकृति की समीपता और उसके विराट आनंद की अनुभूति कराती है जो अपने आप में विचित्र है।
इस अद्भुत अनुभूति के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं।
हार्दिक आभार इस प्यारी सी सुंदर रचना के लिए और आपको प्रणाम।
प्रिय अनंता,
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
बहुत बहुत आभारी हूँ रचनाओं पर तुम्हारा स्नेहसिक्त विश्लेषण उत्साह बढ़ा जाता है।
This composition of yours gives a feeling of the closeness of nature and its immense blessing toward all of living parts of this earth.
ReplyDeleteGreat and beautifully written. Waah.
बहुत शुक्रिया चंद्रा।
Deleteतुम्हारी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।
प्रकृति से प्रेम तो आपकी रचनाओं में छलकता ही है प्रिय श्वेता। आपने इस रचना से बड़ा कीमती संदेश दिया है। क्यों न इस वैलेंटाइन डे हम प्रकृति से, पेड़ों से, फूलों से, पंछियों से प्यार करने की नई रीत का आरंभ करें। क्यों न वैलेंटाइन डे पर एक नया पेड़ या पौधा लगाएँ। इंसानों के प्रेम को तरसती धरती को कहें-
ReplyDeleteHAPPY VALENTINE'S DAY !
खूबसूरत शब्द, सूफी कवियों सी गूढ़ता लिए।
जी दी प्रणाम,
Deleteआपके द्वारा रचना का सटीक विश्लेणात्मक विशेष प्रतिक्रिया पाना रचना का पुरस्कार है,
आपका स्नेह लेखनी में उत्साह भर जाता है।
बहुत बहुत शुक्रिया दी आपके स्नेहिल आशीष का।
सस्नेह
सादर।
सुन्दर शानदार..प्रकृति तथा मानव मन एक दूसरे से कितने जुड़े हुए..सुन्दर अहसासों की खूबसूरत चित्रमाला..
ReplyDeleteजी,आपने बिल्कुल सही कहा।
Deleteबहुत बहुत आभारी हूँ प्रिय जिज्ञासा जी।
सादर।
शानदार सृजन..अप्रतिम रचना..
ReplyDeleteसादर प्रणाम..
बहुत बहुत आभारी हूँ।
Deleteसादर।
सुंदर..सार्थक सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ।
Deleteसादर।
वाह बहुत सुंदर श्वेता सचमुच निशब्द।
ReplyDeleteमैं प्रकृति के प्यार में हूं पहली पंक्ति ही आत्म विभोर कर गई।
एक संवेदनशील कवियत्री की संवेदना से अनुभव की गई अभिनव रचना।
अप्रतिम,सरस।
आपका स्नेह है दी।
Deleteबहुत बहुत आभारी हूँ आपकी उत्सावर्धक प्रतिक्रिया मिली।
सस्नेह शुक्रिया दी।
सादर प्रणाम।
प्रकृति तो आदि काल से मानव की सहचरी रही है |यदि वह अभिन्न मित्र बन जाये तो बहुत से मानसिक तनाव स्वत: ही समाप्त हो जाएँ | बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |
ReplyDeleteजी बिल्कुल सही कहा आपने।
Deleteबहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
सादर।
बढि़या
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँँ आदरणीया।
Deleteसादर।
इतना चमत्कारपूर्ण यह अस्तित्व और प्रकृति है कि भला कौन प्यार में नहीं पड़े । आर्तनाद से आभार ।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने प्रिय अमृता जी,
ReplyDeleteसुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ।
सादर।
प्राकृति के प्रेम से उपजे सुन्दर शब्दों की माला रचना का रूप ले के उतरी है ये रचना ...
ReplyDeleteबेहद लाजवाब रचना ...
प्रकृति का प्यार,निज अस्तित्व का वरदान है
ReplyDeleteसुंदर रचना
प्रकृति नितनवीना सहचरी है कवि का मन उससे दूर कहाँ जा सकता है .
ReplyDeleteअमर्त्य आत्मा के बाहुपाश में झूलकर,
ReplyDeleteवीतरागी 'पी' के अधिकार में हूँ।
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ....।
अद्भुत शब्दों का संयोजन । सुंदर रचना । मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार ।
प्रकृति के बहाने से,वीतरागी 'पी' के अधिकार और आत्मीय अनुराग में रत आत्म मुग्ध मन का सरस, मधुर राग प्रिय श्वेता। मन में मिठास भरती और निशब्द करती अभिनव रचना। सस्नेह शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअनघ सानिध्य में अनुभूतियों के
ReplyDeleteतृप्त कामनाओं के दिव्य वीथियों के,
जीवन-मरण के प्रश्न सारे भूलकर
अमर्त्य आत्मा के बाहुपाश में झूलकर,
वीतरागी 'पी' के अधिकार में हूँ।
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ....',,,,,,,बहुत सुन्दर ।
वाह ..
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