Saturday, 6 February 2021

उत्तरदायी


शताब्दियों से
विश्व की तमाम सभ्यताओं के
आत्ममुग्ध शासकों के द्वारा
प्रजा के लिए बनाये नियम
और निर्गत विशेषाधिकार के 
समीकरणों से असंतुष्ट,
असहमति जीभ पर उठाये
उद्धारक एवं प्रणेता...
शोषित एव शासकों,
छोटे-बड़े का वर्गीकरण करते
 समाजिक चेतना की
महीन रेखाओं की
 गूढ शब्दावली को
 परिभाषित करने के लिए 
भेदकारी छन्ना-पात्र 
धारण किये उत्पन्न हुये।

बौद्धिकता के
चुंबकीय आभा से
सम्मोहित अनुसरणकर्ताओं को
आत्मोत्सर्ग के लिए 
उकसाया गया 
अलग-अलग प्रकार से
कभी स्वप्नों की थैली तो कभी
जीवन मूल्य तत्वों के रक्षा का
हवाला देकर
समानता के लिए
प्रज्जवलित यज्ञाग्नि में
हर बार आहुति में डाली गयी
स्वार्थों के घी में लपेटी गयी
सूखी लाचार जीवित देह की समिधा।

सत्ता और सामर्थ्य पर
आधिपत्य के लिए
नेतृत्वकर्ताओं ने
स्वघोषित उद्देश्यों की पूर्ति 
के लिए स्थितियों को
बदलने का इंद्रजाल बुनकर
वर्तमान की धरातल से खींचकर
भविष्य के पिंजरें में
कैद कर दिया।

रंगीन दीवारों पर
पोतकर काले रंग
बुझाकर मशाल
मात्र विरोध के लिए 
खिड़कियों के परदे गिराकर
बाँधकर पट्टियाँ आँखों पर
एकत्रित भीड़ के संग
अंधेरों के विरुद्ध
नारे लगाना 
साहसिक माना।

हर उस कोंपल को
जो बन सकते हैं नये वृक्ष
उन्हें उपेक्षितकर
 कूड़ों से पाटकर
 भ्रम फैलाकर कि
 इसमें खिलेंगे
 विषैले फल
 नष्ट कर दी गयी
 संभावनाएं।

असहमति, विरोध और
आलोचनाओं से विलग
आदर्शों, उसूलों, बड़े-बड़े सपनों,
कमज़ोरों के आँसू,दर्द और हक़ की
हिमायत करते नारे बदलकर
लक्षित व्यंग्यबाणों में छलनी करने लगे
मानवीय मूल्य,
व्यक्तिगत भर्त्सना के धधकते स्वर
झुलसाने लगी व्यवहार की 
नरम कोमल टहनियों को,
अपने समाज और देश को
सम्मान और उपलब्धियों
से गौरवान्वित करने वालों के लिए
चारित्रिक प्रमाणपत्र बाँटते
अनुसरणकर्ताओं की
आचरण और प्रवृतियाँ
क्रमशः
उनके पंथ,वाद,दल की
स्तर और मानसिकता का दर्पण है
भले ही यह नकार दिया जाए
किंतु इतिहास में अंकित हो रहे
काल-खंड के पृष्ठों में 
पूर्वाग्रही उद्धरणों से उठे
प्रश्नों के उत्तर में
रिक्त स्थानों की पूर्ति में
अगर आनेवाली पीढ़ियां
समाज और देश से पूर्व
स्व,
 स्वार्थ और अवसरवादिता
भरेगी तो 
इसका उत्तरदायी 
किसे माना जायेगा?
-------///------
#श्वेता सिन्हा
६ फरवरी २०२१

10 comments:

  1. अत्यंत ही संवेदनशील, प्रभावशाली व तथ्यपरक रचना। साधुवाद व शुभकामनाएं आदरणीया श्वेता जी।

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 07 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. Very sensitive, effective, Realistic and factual creation. Keep it up and keep the good writing.

    ReplyDelete
  4. प्रभावशाली लेखन- - साधुवाद.

    ReplyDelete
  5. अनगिनत तथ्यों का खाका खींचती एवं नए प्रश्नों का उत्तर ढूँढती नायाब रचना..

    ReplyDelete
  6. विडम्बनाओं के इस दौर में जो हो रहा है
    वह शायद किसी काल में नहीं हुआ
    हम जिस न्याय की तलाश में भटक रहे हैं
    वह बहुत मार्मिक है.
    आपने जिस संवेदनशीलता से सच को उजागर किया है वह मन को आंदोलित करता है.
    समय को साधती महत्वपूर्ण औऱ प्रभावी रचना है
    बधाई

    ReplyDelete
  7. बहुत बहुत सुन्दर हृदयग्राही रचना

    ReplyDelete
  8. अत्यंत सशक्त सृजन ।

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...