Monday, 22 February 2021

दौर नहीं है



कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।
अर्थहीन शब्द मात्र,भावों के छोर नहीं हैं।

उम्मीद के धागों से भविष्य की चादर बुन लेते हैं
विविध रंगों से भ्रमित कोई चटक चित्र चुन लेते हैं
समय की दीर्घा में बैठे गुज़रती नदी की धार गिनते
बेआवाज़ तड़पती मीनों को नियति की मार लिखते

भेड़ों में हालात बदलने की होड़ नहीं है।
कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।

चौहद्दी में बंद संवेदना,छद्म चीख़ का राज हुआ
शेर डटे हैं सरहद पर ,जंगल का राज़ा बाज़ हुआ 
कबतक प्रश्न टोकरी ढोये ,उत्तर ढूँढें बोझिल आँखें
कबतक बंधक दर्द को रखे,उड़ पायेंगी चोटिल पाँखें?

मौन की कोठरी,मात्र एक खोल नहीं है।
कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।

हर बहस उन्मादित,चैतन्यता का दहन हुआ
स्वार्थी उद्दीपनों में नैतिकता का क्षरण हुआ
पूर्णता के मिथकीय दृश्य, मधुर स्वप्न टूटते रहे
दिशाहीन मरूभूमि में भटककर साथ छूटते रहे

बौद्धिक परिपक्वता में तृप्ति के बौर नहीं है।
कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं है।

@श्वेता सिन्हा
 २२ फरवरी २०२१

25 comments:


  1. मौन की कोठरी,मात्र एक खोल नहीं है।
    कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।,,,,,,,,,बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना ।

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  2. प्रिय श्वेता,सम सामयिक बौद्धिक सृजन। वाचालता के दौर में सही आवाज़ सुनाई दे भी तो कैसे?? नैतिकता के गिरते स्तर और सत्ता लोलुपता में लिप्त स्वार्थी तत्वों से स्तब्ध भावों से भरी लेखनी थम ना जाए तो क्या करे! उद्विग्नता में डूबे मन की इस सहज अभिव्यक्ति पर बधाई और शुभकामनाएं। सस्नेह ❤🌹

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    1. आप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी

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  3. चौहद्दी में बंद संवेदना,छद्म चीख़ का राज हुआ
    शेर डटे हैं सरहद पर ,जंगल का राज़ा बाज़ हुआ👌👌👌👌👌
    बौद्धिक परिपक्वता में तृप्ति के बौर नहीं है।
    कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं है।👌👌👌👌👌


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  4. समसामयिक विषयों को रूपांतरित करती यथार्थ पूर्ण रचना..

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    1. आप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को     "नयन बहुत मतवाले हैं"  (चर्चा अंक-3987)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी

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  6. आपके द्वारा वर्णित तथ्य मान्य हैं स्वाति जी लेकिन बौद्धिक परिपक्वता से युक्त लोगों के लिखने-कहने का दौर तो यही है । ऐसे लोगों की आवाज़ चाहे नक्कारखाने में तूती के बोल-सी ही है पर उसका मोल सामान्य समय की तुलना में आज कहीं अधिक है । इसलिए - बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे ।

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  7. संवेदना ही चौहद्दी में बंद हो जब, तो यही परिणाम होता है.

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  8. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी

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  9. बौद्धिक परिपक्वता में तृप्ति के बौर नहीं है।
    कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं है।----यथार्थ

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  10. अति सुंदर रचना

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  11. बहुत ही सुन्दर मुग्ध करती कविता - - साधुवाद सह।

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  12. आज के समय को कहती सुंदर प्रस्तुति।

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  13. वर्तमान हालातों के प्रति सजग करती प्रभावशाली रचना

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  14. बहुत सुंदर रचना।

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  15. आदरणीया मैम ,
    एक सामयिक और अत्यंत सशक्त रचना। सदा की तरह अंतर-आत्मा को झकझोरती हुई। सच स्वार्थ और अहंकार के भाव एवं सत्ता की लौलुपता ने कुछ लिकने या कहने का दौर खत्म कर दिया है।
    हार्दिक आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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  16. हर बहस उन्मादित,चैतन्यता का दहन हुआ
    स्वार्थी उद्दीपनों में नैतिकता का क्षरण हुआ
    बिल्कुल समसामयिक हालातों का सटीक चित्रण करती रचना। शब्दों का चुनाव और बुनाव दोनों कमाल हैं !

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  17. Very very well said कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं, Your compositions explains every thing. great .. waah waah

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  18. समसामयिक हालातों का सटीक चित्रण करती रचना।

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  19. बहुत सुंदर

    ......छद्म चीख़ का राज हुआ .......

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  20. कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं।
    अर्थहीन शब्द मात्र,भावों के छोर नहीं हैं।
    समाज में व्याप्त संवेदनहीनता में भावों का छोर कहाँ...
    अब तो दादुर बोलि हैं हमें पूछि हैं कौन...
    मौन में ही बुद्धिमत्ता है...
    लाजवाब सृजन।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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