सारी दुनिया से छुप- छुपकर वो ख़ुद से बातें करती थी
नीले नभ में चिड़ियों के संग बहुत दूर उड़ जाती थी
बना के मेघों का घरौंदा हवा में ही वो फिरती थी
रंग-बिरंगे सुमनों के गाँव एक तन्हा लड़की रहती थी।
एक दिन एक मुसाफ़िर आया उसके सूने आँगन में
तितली बन वह उड़ने लगी लाल फूलों के दामन में,
जी भर के वो ख़ूब नहायी नेह के रिमझिम सावन में
सब तन्हाई वह भूल गयी उस राहगीर मनभावन में,
वो हंसता वो हंसती वो चुप हो जाए रोती थी
वो रूठे सब जग सूना वो डाँटे ख़ुश होती थी।
यूँ तो वो बडी़ निडर पर उसको खोने से डरती थी
उसको मिलने की ख़ातिर वो सारी रात न सोती थी,
एक दिन,
उस लड़की को छोड़ कर चुपके से मुँह मोड़ गया,
था तो एक मुसाफ़िर ही, उसको तो वापस जाना होगा,
उसकी दुनिया के लोगों में फिर उसको खो जाना होगा,
कहकर गया 'थामे रहो आस की डोर वापस मैं आऊँगा'
उस लड़की को पगली कहता था वो
आज भी वह पागल लड़की पागल-सी फिरती है
हर फूल से अपने बाग़ों के उसकी बातें करती है
हवा को छू-छूकर उसको महसूस वो करती है
जब सारा जग सो जाता वो चंदा के संग रोती है
भींगी पलकों से राह तके एक आहट को टोहती है,
कोई संदेशा आया होगा पागल बस ये कहती है
जीवन जीने की कोशिश में पल-पल ख़ुद ही से लड़ती है,
हर धड़कन में गुनती है पागल, हर एहसास को पीती है,
नीम अंधेरे तारों की छाँव में आज भी बैठी मिलती है,
साँझ की डूबती किरण-सी वो बहुत उदास-सी रहती है,
न हंसती न मुस्काती है बस उसका रस्ता वो तकती है,
वो पागल आज भी उन यादों को सीने से लगाये जीती है।
सिसक-सिसककर आठ पहर अपने ही आँसू पीती है।
ओह्ह बहुत ही मार्मिक
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अंदाज़-ए-बयां
जी,बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया है।
Deleteवाह !
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक काव्य-कथा जो अंतर्मन को भिगोकर ठंडी साँस लेने का माहौल निर्मित करती है।
आपने जो रचा है तन्मयता से उससे न जाने कितने दिल अपने अतीत की यादों के समुंदर में डूब जायेंगे। रचना में लयबद्धता असरदार है और वाचक को अंत तक ले जाने में सक्षम।
आपके सृजन में नए प्रयोग मौलिकता का परचम लहरा रहे हैं।
लिखते रहिये।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जी,आदरणीय रवींद्र जी,
Deleteरचना पर आपकी विस्तृत विवेचना सदैव सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती है। आपकी सारगर्भित सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया बहुत बहुत आभार आपका।
आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है कृपया बनाये रखे।
गहरे भाव लिए मार्मिक रचना।
ReplyDeleteयूँ क्यूँ खोना है उन सपनों में खुद को,
यूँ आँसू में, क्यूँ भिगोना है खुद को,
ये ही सपनें है, फिर नए देख लेना,
आँखें मूँदकर, उन नभ को देख लेना,
कोई तो होगा, जो बस तुम्हारा होगा,
खो देना उस, तारे में तुम खुद को...
सुंदर रचना.....
वाह्हह्ह... बहुत सुंदर पंक्तियाँ आपकी आदरणीय P.k ji,👌👌👌
Deleteआभार बहुत सारा,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
सुख दुख
ReplyDeleteसंयोग वियोग
मिलन बिछुड़न
हंसना रोना
आना जाना
पाना खोना
यही सत्य है
और मर्म भी है
एक सुन्दर लम्बबबबी कविता
सादर
दी, बहुत अच्छी सारगर्भित पंक्तियाँ लिखी आपने👌👌
Deleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका:))
आदरणीय श्वेता जी,
ReplyDelete"विरहन" इस लेवल पर मेरी भी कुछ रचनाएँ है मेरे ब्लाॅग पॅ्पर उनमे से एक का लिंक भेज रहा हूँ
https://purushottamjeevankalash.blogspot.in/2016/01/blog-post_92.html?m=1
यह कविता लिखते समय मेरी अनुभूति वही थी जो आज पुनः आपकी कविता पढकर हुई है।
जी हमने आपकी रचना पढ़ी,आप ने बहुत बहुत सुंदर सृजन किया है,बहुत पसंद आयी मुझे कविता।
Deleteसुप्रभात,क्या कहुं शब्द नही मिल रहे कहने को...ये तीसरी बार पढ़ रही हुं,और हर बार एक न ई अनुभुति मे डुब जाती हुं,
ReplyDelete"यादे हे,इन यादो का क्या
गुजरती,भागती इन लम्हो का क्या,
रुला तो बस वो पल जाती है..
जब तुम पुछा करते थे,
खाना खाया क्या
बेहतरीन स्वेता जी,
अनु जी आपके इस नेह के लिए क्या कहे आपकी दिल से की गयी सराहना मन हर्षित कर कर गयी।
Deleteप्रतिक्रियास्वरूप कितनी सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने,👌👌बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
ओह...बहुत मार्मिक ...व्यथा कथा .....सुंदर शब्द संयोजन ..वाह!!!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
DeleteBhaut acchi kavita hai
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आपका रिंकी जी।
Deleteहृदयस्पर्शी मनोरम रचना .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर काव्य कथा
ReplyDeleteवाह!!!!
दिल को छूने वाली....लाजवाब....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।कृपया अपना स्नेह बनाये रखे।
Deleteआदरणीय श्वेता जी ------- बहुत मार्मिक प्रणय गाथा को समेटे ये रचना बड़ी हृदयस्पर्शी बन गयी है |
ReplyDeleteकाश ! कोई उस पगली को समझाए तो -
पोंछ दे आसूं उसके कस सीने से उसे लगाये तो ;
वो कैसे लौट कर अब आयेगा
जो था बस एक रात का सपना,
लाख बांधती उसको आँचल से
वो नहीं था कभी भी अपना ;
होगा कहीं किसी राजकुमार सा
जो चढ़ घोड़े पर आयेगा
उसकी सूनी पलकों की तितलियों में
रंग सुनहरी भर जाएगा
बैठ किसी कोने में तनिक सा
सपनों के साज सजाये तो -
अभी बहुत रंग बाक़ी जीवन के -
सोच ज़रा मुस्काए तो !!!!!!!
सस्नेह --------
जी,रेणु जी,
Deleteहम निःशब्द हो गये,आपने कितनी सुंदर रचना गढ़ दी है,बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी लिखी पंक्तियाँ जी,👌👌👌👌
किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ...
बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका।
कृपया यूँ ही अपना स्नेह बनाये रखियेगा।
जी अति आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी,आपके इस मान के लिए बहुत आभारी है।
ReplyDeleteजी,बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, मेरी रचना को स्थान स्थान देने के लिए तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
ReplyDeleteआपकी यह कविता पढकर मुझे ऋषि कपूर और जूही चावला की एक फिल्म याद आ गई, उस फिल्म का क्या नाम है वो तो याद नही...पर ऐसी ही इसमें एक लड़की थी।
ReplyDeleteजब मै यह कविता पढ रहा था तो वही पात्र का दृश्य मन मे चल रहा था।
बेहद खूबसूरत।
जी,हो सकता है,कहीं न कहीं किसी के साथ किसी परिदृश्य में कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है।
Deleteजी मेरे.ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
संवेदनाओं और जज़्बातों से भरा अंतर्मन को छूने वाला काव्य। विरह लिखना कभी आसान नहीं होता। पन्नों पर दर्द बिखेरने के लिये दर्द की अवस्था मे डूबना पड़ता है। आपने कमाल लिखा है। बहुत बहुत ह्रदयस्पर्शी रचना श्वेता जी। दर्द, ख़ुशी, सामाज़िक समस्या, ग़ज़ल, गीत, लेख, कहानियां, हाइकु साहित्य की हर विधा में आप निपुण है। बहुत बधाइयाँ
ReplyDeleteअमित जी आपने सदैव मनोबल बढ़ाया है, सदैव अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा मानसिक संबल प्रदान करती है। आपका बहुत बहुत बहुत आभार तहेदिल से अति शुक्रिया है।
Deleteकृपया स्नेहाशीष बनाये रखें।
क्या लिखू..बहुत हृदयस्पर्शी काव्य कथा
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती है।
पम्मी जी,बहुत बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका तहेदिल से। रचना पर आपकी सराहना पाना बहुत अच्छा लगता है।कृपया स्नेह बनाये रखें।
Deleteहम निःशब्द हो गये,
ReplyDeleteकितनी सुंदर रचना
दिल को छूने वाली....लाजवाब
बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका नीतू जी।
Deleteकृपया अपना स्नेह बनाये रखें।
और कुछ नहीं! बस श्वेत पद्मासना माँ सरस्वती को शत शत नमन, इस ज्ञान सप्तक साम्राज्ञी 'श्वेता' का साक्षात्कार कराने के लिए!
ReplyDeleteजी,विश्वमोहन जी,आपकी इस सराहना पर हम क्या कहे..आपकी निःशब्द कर देते है। हृदय अभिभूत है। आपके आशीर्वचन सदैव संजीवनी से प्रतीत होते है। कृपया स्नेहाषीश बनाये रखें।
Deleteआपका तहेदिल से शुक्रिया अति आभार।
bahut sundr
ReplyDeleteआदरणीय सर आपका हार्दिक अभिनंदन है,बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/45.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमार्मिक कथा कविता...
ReplyDeleteमन भीगा सो भीगा,
ना जाने क्यों भीगीं आँखें !
मन की आदत भावुक होना,
सज़ा भोगती क्यों आँखें ?
मार्मिक लेखन ...
ReplyDeleteजैसे संवेदनाओं का ज्वार उठ रहा हो ... शब्द, लय गेयता रचना को बहुत ही सम्वेदनशील बना रही है ... अपनी बात को रचना बहुत ही प्रभावी तरीके से और पाठक के दिल तक सीढ़ी ले जा रही है ...
भाव की इस सुन्दर अभिव्यक्ति ने मेरे ह्रदय को विरह रूपी आनंदित सागर में डुबो दिया .....कैसी विडंबना में डाल दिया है उर को... कहना बहुत कुछ चाहता है इस अभिव्यक्ति पर परन्तु शब्दहीन है .. अति सुन्दर रचना
ReplyDeleteVery nice .बहुत हृदयस्पर्शी काव्य कथा
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