Saturday, 25 November 2017

रात


सर्द रात के 
नम आँचल पर
धुँध में लिपटा
 तन्हा चाँद
जाने किस
ख़्याल में गुम है
झीनी चादर
बिखरी चाँदनी
लगता है 
किसी की तलाश है
नन्हा जुगनू 
छूकर पलकों को
देने लगा 
हसीं कोई ख़्वाब है
ठंडी हवाएँ भी
पगलाई कैसे
चूमकर  आयीं  
लगता तेरा हाथ हैं 
सिहरनें  तन की 
भली लग रहीं 
गरम दुशाला लिए 
कोई याद है
असर मौसम का 
या दिल मुस्काया
लगता है फिर 
चढ़ा ख़ुमार है
सितारे आज 
बिखरने को आतुर
आग़ोश  में आज 
मदहोश रात है

 #श्वेता🍁

41 comments:

  1. असर मौसम का या दिल मुस्काया
    लगता है फिर चढ़ा ख़ुमार है
    सितारे आज बिखरने को आतुर
    आग़ोश में आज मदहोश रात है....
    एक संवेदनशील प्रकृति प्रेमी हृदय के ये स्वतःस्फूर्थ उच्छवास हैं या सिर्फ एक कविता, कहना कठिन है मेरे लिए।
    सुंदर पंक्तियों में मैं खो चुका हूँ। बहुत बहुत बधाई। सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी खुले मन से की गयी सराहना मुदित कर गयी। आपकी ऐसी प्रतिक्रिया पर कैसे आभार कहे समझ नहीं पा रहे।
      कृपया अपनी शुभेच्छाओं का बहुमूल्य साथ बनाये रखियेगा।
      तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  2. वाह ! क्या ख़ूब लिखा है !
    प्रकृति और हमारे जीवन के बीच अटूट सम्बन्ध है। इन दोनों के बीच क्या कुछ चुपचाप घट रहा होता है हमें सामान्यतः भान ही नहीं होता है लेकिन एक संवेदनशील प्रकृति प्रेमी रचनाकार का अवलोकन इसमें से बहुत कुछ ऐसा आविष्कृत करता है कि हम चकित होकर भाव विभोर हो उठते हैं।
    ऐसी सुन्दर रचनाओं से भरा हुआ है आदरणीया श्वेता जी का ब्लॉग। लिखते रहिये ऐसी ही अप्रतिम रचनाऐं जो हमारे मन-मस्तिष्क में जलते सवालों के ज्वालामुखी पर सर्द फुहार का एहसास कराती हैं। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, रवींद्र जी,
      आभार आभार आभार बहुत शुक्रिया आपका तहेदिल से,सदैव उत्साह और ऊर्जा से भरी सकारात्मक सरिता प्रवाहित करके मुझे सहयोग करते रहे है आप आपको जितना भी आभार कहे कम होगा।
      कृपया अपनी शुभकामनाओं का अनमोल साथ सदैव बनाये रखिएगा।

      Delete
  3. बेहद खूबसूरत भाव सृजन श्वेता जी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत.बहुत आभार आपका मीना जी तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

      Delete
  4. बहुत खूबसूरत एहसास लिये कवितामय रात की झीनी चादर ने मन मोह लिया. इतने शान्त शबनमी शब्दों की फुहार दिल पर बरस रही है और दिल वाह!वाह! कहने के लिये मचल रहा है.
    आप सुंदर एहसासों की सरिता यूं की प्रवाहित करती रहें यही शुभकामना है.
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपर्णा जी आपकी ऐसी प्रतिक्रिया मन में प्रसन्नता भर गयी,आपका नेह छलक रहा है।कृपया अपनी शुभकायनाओं का साथ बनाये रखें।
      हृदततल से अति आभार आपका।

      Delete
  5. इन सर्द रातों की बातों को तो रहने ही दे 'ऐ देव'
    उनकी यादों की सहरन, सोने नहीं देती मुझे

    ReplyDelete
    Replies
    1. देव जी आपका हार्दिक अभिनंदन है।
      आपने बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी है👌
      बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।

      Delete
  6. कितनी रुमानियत समेटे हर लफ्ज़ बंया कर रही है.बाते चांद की..मानो सरगोशियां करता रहा चांद की पहलु में थी चांदनी ।।।
    हम चौराहों में उन्हें ढुंढते रहे और वो बस उपर से मुंस्कुराता रहा।
    कितना खुबसूरत लिखती हैं आप,हर लाईन में प्यारी
    सी कशिश है।...ठंडी हवाएं भी
    पगलाई कैसे..गर्म दुशाला लिए कोई याद है,
    सारा कुछ पिरो दिया इस खुबसूरत रचना में ,👌बधाई एवं शुभकामनाएं...!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनु जी आपकी प्रतिक्रिया ने मनमोह लिया।
      आपकी सुंदर पंक्तियों ने रचना में चार चाँद लगा दिया है।बहुत बहुत आभार अनु जी तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
      कृपया मनोबल बढ़ाते रहे।

      Delete
  7. सितारे आज
    बिखरने को आतुर
    आग़ोश में आज
    मदहोश रात है
    बेहतरीन..
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. दी बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा:)
      आपकी सराहना मतलब रचना ठीक ठाक बन गयी है।

      Delete
  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" सशक्त महिला रचनाकार विशेषांक के लिए चुनी गई है एवं सोमवार २७ नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया इस मान के लिए।

      Delete
  9. सितारे आज
    बिखरने को आतुर
    आग़ोश में आज
    मदहोश रात है...
    बहुत खूबसूरत एहसास लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति, स्वेता!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका ज्योति जी।

      Delete
  10. सर्द रात का नम आँचल
    धुंध में लिपटा तन्हा चाँद
    ठंडी हवाओं का पगलाना
    गरम दुशाले में यादों का आना
    बहुत सुन्दर....अद्भुत ....बेहतरीन....
    लाजवाब....
    वाह!!!!
    कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवः तहेदिल से शुक्रिया आपका सुधा जी। आपके सराहना से भरे शब्द नयी ऊर्जा से भर जाते है।

      Delete
  11. Beautiful and spellbinding words..:)

    ReplyDelete
  12. प्रिय श्वेता जी -----हमेशा की तरह आपकी रचना में चाँद और सितारों के बहाने से इतनी सुंदर प्रेमासिक्त भावनाओं का उदय हुआ है | दाद के लिए नए शब्द भी नहीं मिलते | बस यही कन्हुगी माँ सरस्वती आपकी लेखनी को बुरी नजर से बचाए | सस्नेह ------

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका प्रिय रेणु जी।तहेदिल से बेहद शुक्रिया आपका।स्नेह बना रहे आपका।

      Delete
  13. बहुत सुंदर कविता श्वेता जी लिखते रहे.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी तहेदिल से शुक्रिया।

      Delete
  14. ठंडी हवाएँ भी
    पगलाई कैसे
    चूमकर आयीं
    लगता तेरा हाथ हैं
    लाजवाब....
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका
      नीतू जी।

      Delete
  15. बहुत ही सुंदर वर्णन रात का.... रहस्यमयी रात शीत ऋतु में तो और रहस्यमयी हो जाती है। आपकी तरह ही मुझे भी प्रकृति की गूढ़ता सदैव आकर्षित करती रही है...एक विकलता से भरा हुआ, अपने ही भावविश्व में डूबा मन प्रकृति की गोद में ही विश्राम पाता है....आपकी रचनाओं का शब्द सौंदर्य माला में गूँथे हुए सुंदर मोतियों का स्मरण कराता है । लिखते रहिए श्वेता जी। सादर बधाई स्वीकारें सुंदर रचना के लिए ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय मीना जी आपकी सराहना सदैल मुझे विशेष लगती है।प्रकृति मेरे प्राणों में बसती है,मुझमें सकारात्मकता प्रवाहित करती है,इसलिए शायद हम प्रकृति को शब्द दज पाते है।
      आपका तहेदिल से बहुत सारा शुक्रिया आपने बहुत सुंदर प्रतिक्रिया लिखी।
      स्नेह बनाये रखे कृपया।

      Delete
  16. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सर।

      Delete
  17. कवितामय रात का झीना आवरण कितना कुछ कह गया है ...
    भावों का समुन्दर है रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से बेहद शुक्रिया आपका नासवा जी।

      Delete
  18. ठंडी हवाएँ भी
    पगलाई कैसे
    चूमकर आयीं
    लगता तेरा हाथ हैं
    सिहरनें तन की
    भली लग रहीं
    गरम दुशाला लिए
    कोई याद है
    💐💐
    बहुत सुंदर
    मनोभावों को व्यक्त करती उम्दा रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,आज पहली बार किसी भी रचना में आपकी इतनी लंबी प्रतिक्रिया पढ़ने का सौभाग्य मिला।
      तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।

      Delete
  19. आप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
    हमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
    तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके सराहनीय प्रयास के लिए आपको बहुत सारी शुभकामनाएँ आदरणीय ध्रुव जी।
      आप निश्चय ही ब्लॉग जगत में सकारात्मक और क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है।
      बहुत बहुत आभार और धन्यवाद आपके इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए।

      Delete
  20. सुंदर वर्णन रात का...कमाल की अभिव्यक्ति है....श्वेता जी

    ReplyDelete
  21. बहुत ही सुंदर रचना श्वेता जी।

    ReplyDelete
  22. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...