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Sunday, 10 September 2017

ज़िदगी

हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी

लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी

दाखिल हुये जज़ीरे में एहसास है नये
पीकर के आब-ए-इश्क है मचलती ज़िदगी

मीठी नहीं हैं उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों की दरारों से आ छलकती ज़िदगी

करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों की साँस सी तड़पती ज़िदगी

बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी

आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ाँ
सूखे शजर की साँस-साँस ढलती ज़िंदगी

       #श्वेता🍁

Monday, 4 September 2017

मधु भरे थे

जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

आसमान के तोड़ सितारे, ख़ूब संजोये आँगन में
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बरसों बाद है देखा शीशा, खुद को न पहचान सके
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
                                             #श्वेता🍁

Thursday, 31 August 2017

क्षणिकाएँ

ख्वाहिशें
रक्तबीज सी
पनपती रहती है
जीवनभर,
मन अतृप्ति में कराहता
बिसूरता रहता है
अंतिम श्वास तक।

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मौन
ब्रह्मांड के कण कण
में निहित।
अभिव्यक्ति
होठों से कानों तक
सीमित नहीं,
अंतर्मन के
विचारों के चिरस्थायी शोर में
मौन कोई नहीं हो सकता है।

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दुख
मानव मन का
स्थायी निवासी है
रह रह कर सताता है
परिस्थितियों को
मनमुताबिक
न देखकर।

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बंधन
हृदय को जोड़ता
अदृश्य मर्यादा की डोर है।
प्रकृति के नियम को
संतुलित और संयमित
रखने के लिए।

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दर्पण
छलावा है
सिवाय स्वयं के
कोई नहीं जानता
अपने मन के
शीशे में उभरे
श्वेत श्याम मनोभावों को।

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श्वेता🍁



Friday, 10 March 2017

आँख में पानी रखो


आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो
ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो

राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत
सामना कर हर बाधा का सफर  जारी रखो

कौन भला क्या छीन सकता है तुमसे तुम्हारा
खुद पर भरोसा रखकर मौत से यारी रखो

न बनाओ ईमान को हल्का सब उड़ा ही देगे
अपने कर्म पर सच्चाई का पत्थर भारी रखो

गुजरते वक्त फिर न लौटेगे कभी ये ध्यान रहे
एक एक पल को जीने की पूरी तैयारी रखो

      #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...