हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी
लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी
दाखिल हुये जज़ीरे में एहसास है नये
पीकर के आब-ए-इश्क है मचलती ज़िदगी
मीठी नहीं हैं उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों की दरारों से आ छलकती ज़िदगी
करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों की साँस सी तड़पती ज़िदगी
बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी
आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ाँ
सूखे शजर की साँस-साँस ढलती ज़िंदगी
#श्वेता🍁
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी
लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी
दाखिल हुये जज़ीरे में एहसास है नये
पीकर के आब-ए-इश्क है मचलती ज़िदगी
मीठी नहीं हैं उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों की दरारों से आ छलकती ज़िदगी
करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों की साँस सी तड़पती ज़िदगी
बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी
आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ाँ
सूखे शजर की साँस-साँस ढलती ज़िंदगी
#श्वेता🍁