Monday, 4 September 2017

मधु भरे थे

जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

आसमान के तोड़ सितारे, ख़ूब संजोये आँगन में
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बरसों बाद है देखा शीशा, खुद को न पहचान सके
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
                                             #श्वेता🍁

34 comments:

  1. बहुत बेहतरीन रचना
    मन की पीड़ा को दर्शाती पंक्तियां

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    1. अति आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी आप सदैव मेरा उत्साह बढ़ाते,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  2. बेहतरीन......, लाजवाब .....,जीवन के यथार्थ‎ को खूबसूरती से शब्दों मे ढाला है श्वेता जी .

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी।आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से अति आभार।

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  3. सुंदर शब्द रचना... भावों को तूल देती हुई...

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    1. आपका तहेदिल से स्वागत है रंगराज जी,बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया के लिए।

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  4. मन की देहरी पर ठिठके पड़े हों कई छुए अनछुए भाव,,,हम सब के जीवन में,,,यही कुछ घट रहा होता है,,,,यथार्थ का चित्रण,,, सुलझे और सबेदनशील प्रयास से,,, बहुत खूब ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया।आपकी सुंदर प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाने में सहायक है।

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  5. जीवन में कई बार अवसाद के पल आते हैं तो मन बेचैन हो जाता है ...
    ऐसे में कुछ अधूरेपन और कुछ न होने का कारण खोजती रचना ... बहुत ही यथार्थ चित्रण है ...

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    1. अति आभार आपका नासवा जी,आपकी उत्साहवर्धक सराहना से मन प्रसन्न हुआ। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  6. गिनते रहे राह के काँटे ,फूल मिले जो भूल गये
    मधु भरे थे ढेरों प्याले,लेकिन पीना भूल गये
    वाह !!!
    कमियों की पूर्ति करते करते हम इतना खो जाते हैं कि जो अपने पास है उसका सुख भी नहीं ले पाते...
    लाजवाब प्रस्तुति...

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    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी सदैव मेरा उत्साहवर्धन करने एवं मनोबल बढ़ाने के लिए हृदयतल से अति आभार एवः शुक्रिया जी।

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  7. वाह, लाज़वाब रचना श्वेता जी. आपके उदगार सीधे दिल पर असर करते हैं.

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    1. जी बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया अपर्णा जी।

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  8. जीवन एक जद्दोजहद ही है और मन की व्याकुलता मन ही जाने | जिस चीज के पीछे भागता है उसको प्राप्त कर भोगता नहीं किसी दूसरी चीज की तरफ भागने लगता है |
    लाजवाब रचना स्वेता जी

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    1. आपका तहेदिल आभार एवं सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

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  9. वाह ! क्या कहने हैं ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीया । बहुत खूब ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सर,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।

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  10. स्वेता, जिंदगी की कड़वी सच्चाई बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त की हैं आपने!

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    1. अत्यंत आभार तहेदिल से बहुत शुक्रिया ज्योति जी आपका।

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  11. आदरणीय श्वेता जी -- आपकी रचना में अभिव्यक्ति की महीनता पर प्रतिक्रिया के लिए मेरे शब्द जवाब दे जाते है | यही कन्हुंगी वाह - वाह और सिर्फ वाह !!!!!!!!!!!!!! सस्नेह हार्दिक शुभकामना आपको ----

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    1. आदरणीय रेणु जी,आपने सब कुछ तो कह दिया,आपकी इतनी सराहना पाकर मन प्रसन्न हुआ।आभार आभार आभार हृदय तल से बहुत शुक्रिया आपका।

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  12. यथार्थ चित्रण लाज़वाब रचना श्वेता जी

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    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका संजय जी।

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  13. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता..

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    1. बहुत बहुत आभार अनिता जी।आपका सदैव स्वागत है जी।बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

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  14. उद्देश्यपूर्ण प्रेरक रचना।
    परिस्थितियों के मकड़जाल में उलझकर हमें वह सब नहीं खोना चाहिए जो समय ने उपलब्ध कराया है।
    बाद में पछतावा ही हाथ लगता है अतः सामंजस्य स्थापित करने के यत्न किये जाएँ।
    अंतिम बंद में यथार्थ की फाँसें चुभती हुई व्यापक संदेश छोड़तीं हैं।
    वाह ! सुन्दर ,समाजोपयोगी सृजन।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं श्वेता जी।

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    1. रवींद्र जी,आपकी विस्तृत विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया सदैव विशेष होती है।आपके उत्साहवर्धन करते शब्द और भी सुंदर लिखने को प्रेरित करते है।
      तहेदिल से बहुत सारा आभार एवं शुक्रिया आपका।

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  15. ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
    मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
    ....हृदय में कसक सी उठाता मधुर शब्दों का लाजवाब गुंफन !

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    1. आपकी सुंंदर नेहयुक्त प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से अति आभार मीना जी।

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  16. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/09/34.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. अति आभार आपका राकेश जी तहेदिल से शुक्रिया।

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  17. Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आपका सर।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...