जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
आसमान के तोड़ सितारे, ख़ूब संजोये आँगन में
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बरसों बाद है देखा शीशा, खुद को न पहचान सके
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
#श्वेता🍁
बहुत बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमन की पीड़ा को दर्शाती पंक्तियां
अति आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी आप सदैव मेरा उत्साह बढ़ाते,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबेहतरीन......, लाजवाब .....,जीवन के यथार्थ को खूबसूरती से शब्दों मे ढाला है श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी।आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से अति आभार।
Deleteसुंदर शब्द रचना... भावों को तूल देती हुई...
ReplyDeleteआपका तहेदिल से स्वागत है रंगराज जी,बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteमन की देहरी पर ठिठके पड़े हों कई छुए अनछुए भाव,,,हम सब के जीवन में,,,यही कुछ घट रहा होता है,,,,यथार्थ का चित्रण,,, सुलझे और सबेदनशील प्रयास से,,, बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया।आपकी सुंदर प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाने में सहायक है।
Deleteजीवन में कई बार अवसाद के पल आते हैं तो मन बेचैन हो जाता है ...
ReplyDeleteऐसे में कुछ अधूरेपन और कुछ न होने का कारण खोजती रचना ... बहुत ही यथार्थ चित्रण है ...
अति आभार आपका नासवा जी,आपकी उत्साहवर्धक सराहना से मन प्रसन्न हुआ। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteगिनते रहे राह के काँटे ,फूल मिले जो भूल गये
ReplyDeleteमधु भरे थे ढेरों प्याले,लेकिन पीना भूल गये
वाह !!!
कमियों की पूर्ति करते करते हम इतना खो जाते हैं कि जो अपने पास है उसका सुख भी नहीं ले पाते...
लाजवाब प्रस्तुति...
बहुत बहुत आभार सुधा जी सदैव मेरा उत्साहवर्धन करने एवं मनोबल बढ़ाने के लिए हृदयतल से अति आभार एवः शुक्रिया जी।
Deleteवाह, लाज़वाब रचना श्वेता जी. आपके उदगार सीधे दिल पर असर करते हैं.
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया अपर्णा जी।
Deleteजीवन एक जद्दोजहद ही है और मन की व्याकुलता मन ही जाने | जिस चीज के पीछे भागता है उसको प्राप्त कर भोगता नहीं किसी दूसरी चीज की तरफ भागने लगता है |
ReplyDeleteलाजवाब रचना स्वेता जी
आपका तहेदिल आभार एवं सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteवाह ! क्या कहने हैं ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीया । बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteस्वेता, जिंदगी की कड़वी सच्चाई बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त की हैं आपने!
ReplyDeleteअत्यंत आभार तहेदिल से बहुत शुक्रिया ज्योति जी आपका।
Deleteआदरणीय श्वेता जी -- आपकी रचना में अभिव्यक्ति की महीनता पर प्रतिक्रिया के लिए मेरे शब्द जवाब दे जाते है | यही कन्हुंगी वाह - वाह और सिर्फ वाह !!!!!!!!!!!!!! सस्नेह हार्दिक शुभकामना आपको ----
ReplyDeleteआदरणीय रेणु जी,आपने सब कुछ तो कह दिया,आपकी इतनी सराहना पाकर मन प्रसन्न हुआ।आभार आभार आभार हृदय तल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteयथार्थ चित्रण लाज़वाब रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका संजय जी।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अनिता जी।आपका सदैव स्वागत है जी।बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteउद्देश्यपूर्ण प्रेरक रचना।
ReplyDeleteपरिस्थितियों के मकड़जाल में उलझकर हमें वह सब नहीं खोना चाहिए जो समय ने उपलब्ध कराया है।
बाद में पछतावा ही हाथ लगता है अतः सामंजस्य स्थापित करने के यत्न किये जाएँ।
अंतिम बंद में यथार्थ की फाँसें चुभती हुई व्यापक संदेश छोड़तीं हैं।
वाह ! सुन्दर ,समाजोपयोगी सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाऐं श्वेता जी।
रवींद्र जी,आपकी विस्तृत विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया सदैव विशेष होती है।आपके उत्साहवर्धन करते शब्द और भी सुंदर लिखने को प्रेरित करते है।
Deleteतहेदिल से बहुत सारा आभार एवं शुक्रिया आपका।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
ReplyDeleteमधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
....हृदय में कसक सी उठाता मधुर शब्दों का लाजवाब गुंफन !
आपकी सुंंदर नेहयुक्त प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से अति आभार मीना जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/09/34.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteअति आभार आपका राकेश जी तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteवाह।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका सर।
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