हे, कवि!
तुम्हारी संवेदनशील
बुद्धि के तूणीर में
हैं अचूक तीर
साहसी योद्धा,
भावनाओं के
रथ पर सज्ज
साधते हो नित्य
दृश्यमान लक्षित सत्य,
भेद्य,दुर्ग प्राचीर!!
हे,अजेय सिपाही,
तुम सच्चे शूरवीर हो!
यूँ निर्दयी न बनो
लेखनी से अपनी
निकाल फेंको
नकारात्मकता की स्याही
अवरुद्ध कर दो
नोंक से बहते
व्यथाओं के निर्मम गान।
ओ जादुई चितेरे
तुम्हारी बनायी
तूलिका से चित्र
जीवित हो जाते हैं!
अपनी भविष्यद्रष्टा
लेखनी से
बदल डालो न
संसार की विसंगतियों को,
अपने अमोघास्त्र से
तुम क्यों नहीं
लिखते हो...
निरीह,बेबस,दुखियों,
निर्धनों के लिए
खिलखिलाते,
फलते-फूलते,सुखद
आनंददायक स्वप्न।
©श्वेता सिन्हा