लाल-किला ने हवाओं में
प्रदूषण का बढ़ता ज़हर
यमुना का विषैला झाग
सब कुछ स्वीकार किया
हर टोपी-कुरता-झंडा
बहलाना फुसलाना
कुछ गप्प,कुछ सनसनी
लोकतंत्र की साजिशों को
इसने कभी नहीं इनकार किया
उत्साहित, जिज्ञासु
इतिहास की गंध आत्मसात
करने के लिए आते
हॅंसते,मुस्कुराते,खिलखिलाते
पर्यटकों के पदचापों के लिए....
एक धमाका...
आज रौंद रही है सड़कें
एंबुलेंस,दमकल गाड़ियां
सायरन की दमघोंटू आवाजें,
वाहनों और मानवों के
अस्थि -पंजर से लिथड़े
रक्त की छींटों से रंजित
लाल-किले तक जाने वाली सड़क
दहशत में डूबे चेहरे,
रोते -बिसूरते चंद अपने,
बहुत उदास और ख़ामोश है
लाल किला...
परिसर में दीवान-ए-आम के पीछे
संगमरमर की इक दीवार पर
उकेरे गये फूल-पौधे और चिड़िया
जो हर सुबह जीवित हो उठते थे
आगंतुकों की स्नेहिल दृष्टि से
आज सोच रहे हैं...
क्या अब वे
चिरप्रतीक्षारत, अस्पृश्य
इतिहास का अभिशप्त पृष्ठ हो जायेंगे?
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-श्वेता
१०नवंबर २०१५

कल जो कुछ लालक़िले के निकट हुआ, वह निंदनीय, घृणित और अफ़सोसजनक है, लेकिन हिंसा और आतंक फैलाने वाले चाहे कितने भी प्रयत्न कर लें, विजय सदा शांति चाहने वालों की होगी। जिन निर्दोष लोगों ने अपनी जान गँवायी और जो घायल हैं उनके प्रति हर देशवासी के मन में संवेदना है
ReplyDeleteउफ्फ़..
ReplyDeleteदर्दनाक
अंतिम कीलें ठोक रहा है
पाकिस्तान