व्यर्थ क़लम का रोना-धोना
न चीख़ का कोई अर्थ हू्ँ मैं
दर्द उनका महसूस करूँ
कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं
न हृदय लगा के रो पाई
न चूम पाँव को धो पाई
तन के टुकड़े कैसे चुनती
आँचल छलनी असमर्थ हूँ मैं
माँ के आँखों का गंगाजल
पापा के कंधे का वो बल
घर-आँगन का दीप बुझा
न जला सकूँ असमर्थ हूँ मैं
भरी माँग सिंदूर की पोंछ
वो बैठी सब श्रृंगार को नोंच
उजड़ी बगिया सहमी चिड़िया
क्या समझाऊँ असमर्थ हूँ मैं
सब आक्रोशित है रोये सारे
गूँजित दिगंत जय हिंद नारे
वह दृश्य रह-रह झकझोर रहा
उद्विग्न किंतु असमर्थ हूँ मैं
क़लम मेरी मुझे व्यर्थ लगे
व्याकुलता का न अर्थ लगे
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं
मात्र नमन ,अश्रुपूरित नमन
तुम्हें शत-शत नमन कोटिश
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
यही कहने में समर्थ हूँ मैं
#श्वेता सिन्हा
निशब्द हूँ... असमर्थ हूँ 😔😥
ReplyDeleteनिशब्द और असमर्थ ही हैं श्वेता जी
ReplyDeleteप्रिय श्वेता आज सचमुच उस वेदना के समक्ष हर कलम व्यर्थ है -- हर है | निरीह और निर्दोष वीरों की शहादत मन को विकल कर रहीं है | शब्द मौन हुए जा रहे हैं जब उन परिवारों की पीड़ा समंदर लहराता है तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं
ReplyDeleteओजस्वी कवि हरी ओम पवार जी की दो पंक्तियाँ स्मरण हो आयीं --
'' उन दो आँखों से सातों सागर हारे होंगे -- जब मेंहदी रचे हाथों ने मंगल सूत्र उतारे होंगे !!!!!!!!!!!''
| आपकी रचना हूबहू उस पीड़ा को लिख पाने में समर्थ है | वीर जवानों को अश्रुपूरित नमन |
आक्रोश से भरी प्रस्तुति। शहीद जवानों को सादर श्रद्धाँजलि।
ReplyDeleteजय हिन्द
ReplyDeleteमात्र नमन ,अश्रुपूरित नमन
ReplyDeleteतुम्हें शत-शत नमन कोटिश
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
यही कहने में समर्थ हूँ मैं
बहुत सही कहा, श्वेता दी। हम सिर्फ़ ऐसा ही कह सकते हैं।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि 🙏🙏
ReplyDeleteक़लम मेरी मुझे व्यर्थ लगे
ReplyDeleteव्याकुलता का न अर्थ लगे
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
कुछ करने में असमर्थ हूँ
सही कहा श्वेता जी.... आज सारा देश यही कह रहा है.... क्याकरें असमर्थ हैं....वीरों की शहादत को कोटि कोटि नमन....
क़लम मेरी मुझे व्यर्थ लगे
ReplyDeleteव्याकुलता का न अर्थ लगे
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं
मात्र नमन ,अश्रुपूरित नमन
तुम्हें शत-शत नमन कोटिश
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
यही कहने में समर्थ हूँ मैं
सबकी यही दशा है स्वेता जी ,बहुत ही दुःख भरा समय है ,आप की रचना पढ़ अश्रु रुक नहीं पाए। भगवान उनके परिवार वालो को सब्र दे ,उन वीर सपूतो को बस अश्रु रुपी श्र्द्धांजलि ही दे सकते है हम ,जय हिन्द
बहुत ही संवेदनशील, मन की वेदना को शब्दों में पियोया है ...
ReplyDeleteजब शब्द इतना कुछ कह रहे हैं तो जिन पे गुजरी है उनका हाल सोच सोच के मन विचलित हुआ जाता है ...
इश्वर उन्हें क्षमता दे दुःख सहनी की ...
शहीद जवानों को सादर श्रद्धाँजलि।
ReplyDeleteसादर
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/109.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteनमन।
ReplyDeleteमात्र नमन ,अश्रुपूरित नमन
ReplyDeleteतुम्हें शत-शत नमन कोटिश
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
यही कहने में समर्थ हूँ मैं.... मार्मिक , नमन
Waah waah,,, Your words are not Asamarth, but tells full realistic story.
ReplyDeleteभरी माँग सिंदूर की पोंछ
ReplyDeleteवो बैठी सब श्रृंगार को नोंच
उजड़ी बगिया सहमी चिड़िया
क्या समझाऊँ असमर्थ हूँ मैं
निशब्द और स्तब्ध।
आक्रोश भाव लिए उत्क्रष्ट रचना आदरणीया दीदी जी सादर नमन
ReplyDeleteसब कोई को बाॅर्डर पर जाने का मौका नहीं मिलता लेकिन हम अपने स्तर पर शहीद हुए सैनिकों के सम्मान बढाने के लिए कार्य करते है।
ReplyDeleteअंतरात्मा के क्रोध को शब्दों में बांधकर लिख दिया है आपने।
श्रद्धा नमन!
ReplyDeleteसच में असमर्थ ही हैं हम। सादर।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति, निशब्द, सब कुछ कह दिया दर्द के बिखरते शीला खंड।
ReplyDeleteअभिनव, अनुपम अद्वितीय।