मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
मंद मंद सुलगा रहा मन
अतृप्त प्रेम का ताप हो
वीणा मधुर आलाप हो
मंद मंद सुलगा रहा मन
अतृप्त प्रेम का ताप हो
नैन दर्पण आ बसे तुम
स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे
प्रीत भरे हृदय घट के
सकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो
स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे
प्रीत भरे हृदय घट के
सकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो
तेरे नयन आलोक से
सजता मेरा रंग रूप है
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है
साँसों में जपकर न थकूँ
प्रभु मंत्र सा तुम जाप हो
सजता मेरा रंग रूप है
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है
साँसों में जपकर न थकूँ
प्रभु मंत्र सा तुम जाप हो
रंग लिया हिय रंग में तेरे
कुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलक छवि तेरे डेरे
अश्रुजल से न मिट सके
वो अमिट अनंत संताप हो
कुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलक छवि तेरे डेरे
अश्रुजल से न मिट सके
वो अमिट अनंत संताप हो
मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
वीणा मधुर आलाप हो
#श्वेता🍁
चित्र साभार गूगल
बहुत सुंदर रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार लोकेश जी।
Deleteमौन हो तुम गुनगुनाते
ReplyDeleteवीणा मधुर आलाप हो
बहुत ही सुन्दर...
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है....
लाजवाब...
वाह !!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी सुंद उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।
ReplyDeleteआदरणीय श्वेता जी ---- मन के सूक्ष्म महीन भावों को रचना के रूप में ढालने में आपका कोई सानी नहीं है | चमत्कृत कर देती है आपकी असीम प्रतिभा | माँ सरस्वती आपकी रचनात्मकता बनाये रखे | बहुत लाजवाब लगी ये रचना ------ शुभकामना सहित ------
ReplyDeleteबहुत आभार आपका आदरणीय रेणु जी।
Deleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया एवं हार्दिक शुभकामनाओं से हृदय गदगद हुआ।
तहेदिल से आपका शुक्रिया।
वाह ! बहुत ख़ूब श्वेता जी सुन्दर पंक्तियाँ आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत आभार शुक्रिया बहुत बहुत आपका ध्रुव जी।
Deleteसमर्पण को उकेरती अभिव्यक्ति ह्रदय में उतरकर टटोलती है अपना-अपना आसमान ,अपने-अपने अरमान। भावों को शब्दों में पिरोने और व्यंजना उत्पन्न करते हुए वाचक को रसानुभूति कराने में सफल रचनाओं का सृजन श्वेता जी के रचना संसार में समाहित है।
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति श्वेता जी।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया सदैव मन आहृलादित कर जाती है।बहुत आभारी है तहे दिल से आपकी शुभकामनाओं के लिए।कृपया अपने आशीर्वचनों से सिक्त करते रहे मुझे।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी।
Deleteब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सूक्ष्म मन के भावों को समर्पण की ओर ले जाते हुए प्रेम के मधुर क्षणों का सृजन है ये रचना ....
ReplyDeleteजी बहुत आभार एवं तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका नासवा जी।
Deleteरंग लिया हिय रंग में तेरे
ReplyDeleteकुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलक छवि तेरे डेरे
अश्रुजल से न मिट सके
लाजबाब प्रस्तुति, स्वेता।
बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी। कृपया,नेहाशीष बनाये रखे।
Deleteवाह ! क्या बात है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका सर।
Deleteप्रीत भरे हृदय घट के
ReplyDeleteसकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो !
अति आभार आपका सस्नेह शुक्रिया आपका मीना जी।आपने दो मान दिया उसके लिए हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद.
Deleteमौन हो तुम गुनगुनाते, वीणा मधुर आलाप हो
ReplyDeleteमंद मंद सुलगा रहा मन अतृप्त प्रेम का ताप हो...
बहुत ही सुंदर रचना,,,,
बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया
DeleteP.k ji
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का सदैव हृदय से स्वागत है।