तपती प्यासी धरा की
देख व्यथित अकुलाहट
भर भर आये नयन मेघ के
बूँद बूद कर टपके नभ से
थिरके डाल , पात शाखों पे
टप टप टिप टिप पट पट
राग मल्हार झूम कर गाये है
पवन के झोंकें से उड़कर
कली फूल संग खिलखिलाए
चूम धरा का प्यासा आँचल
माटी के कण कण महकाये है
उदास सरित के प्रांगण में
बूँदों की गूँजें किलकारी
मौसम ने ली अंगड़ाई अब तो
मनमोहक बरखा ऋतु आयी है।
कुसुम पातों में रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अन्नपूर्णा धरा को करने को
खुशियाँ बूँदों में बाँध के लायी है
पनीले नभ के रोआँसें मुखड़े
कारे बादल के लहराते केशों में
कौंधे तड़कती कटीली मुस्कान
पर्वतशिख का आलिंगन करते घन
घाटी में रसधार बन बहने को
देने को नवजीवन जग को
संजीवनी बूटी ले आयी है
बाँह पसारें पलकें मूँदे कर
मदिर रस का आस्वादन कर लो
भर कर अंजुरी में मधुरस
भींगो लो तन मन पावन कर लो
छप छप छुम छुम रागिनी पग में
रूनझुन पाजेब पहनाने को
बूँदों का श्रृंगार ले आयी है
जल तरंग के मादक सप्तक से
झंकृत प्रकृति को करने को
जीवनदायी बरखा ऋतु आयी है।
#श्वेता🍁
देख व्यथित अकुलाहट
भर भर आये नयन मेघ के
बूँद बूद कर टपके नभ से
थिरके डाल , पात शाखों पे
टप टप टिप टिप पट पट
राग मल्हार झूम कर गाये है
पवन के झोंकें से उड़कर
कली फूल संग खिलखिलाए
चूम धरा का प्यासा आँचल
माटी के कण कण महकाये है
उदास सरित के प्रांगण में
बूँदों की गूँजें किलकारी
मौसम ने ली अंगड़ाई अब तो
मनमोहक बरखा ऋतु आयी है।
कुसुम पातों में रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अन्नपूर्णा धरा को करने को
खुशियाँ बूँदों में बाँध के लायी है
पनीले नभ के रोआँसें मुखड़े
कारे बादल के लहराते केशों में
कौंधे तड़कती कटीली मुस्कान
पर्वतशिख का आलिंगन करते घन
घाटी में रसधार बन बहने को
देने को नवजीवन जग को
संजीवनी बूटी ले आयी है
बाँह पसारें पलकें मूँदे कर
मदिर रस का आस्वादन कर लो
भर कर अंजुरी में मधुरस
भींगो लो तन मन पावन कर लो
छप छप छुम छुम रागिनी पग में
रूनझुन पाजेब पहनाने को
बूँदों का श्रृंगार ले आयी है
जल तरंग के मादक सप्तक से
झंकृत प्रकृति को करने को
जीवनदायी बरखा ऋतु आयी है।
#श्वेता🍁
बहुत खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ,कोमल विचार ,हृदय को स्पर्श करती आभार। "एकलव्य "
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका।।
Deleteबहुत सुन्दर वर्षा ऋतु वर्णन....
ReplyDeleteवाह!!
लाजवाब...
बहुत बहुत आभार सुधा जी।
Deleteवर्षा ऋतु का खूबसूरत चित्र पेश करती मनभावन रचना। बारिश के विविध रूप भाव सौंदर्य के साथ उभारे हैं श्वेता जी ने।
ReplyDeleteजी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।।
Deleteखूबसूरत ! बेहद खूबसूरत रचना ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteजी, बहुत बहुत शुक्रिया आपका आभार सर।।
Deleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।
ReplyDeleteवर्षा को नया केनवास देती रचना ... बहुत उत्तम ...
ReplyDeleteजी आभार शुक्रिया आपका नासवा जी।
Deleteबहुत सुंदर रचना, वर्षा ऋतु पर बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका ऋतु जी।
Deleteबहुत सुंदर रचना, वर्षा ऋतु पर बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्षा ऋतु का वर्णन।
ReplyDelete