पल पल तुझको खो जीकर
बूँद बूँद तुम्हें हृदय से पीकर
एहसास तुम्हारा अंजुरी में भर
अनकहे तुम्हारी पीड़ा को छूकर
इन अदृश्य हवाओं में घुले
तुम्हारें श्वासों के मध्म स्पंदन को
महसूस कर सकती हूँ।
निर्विकार , निर्निमेष कृत्रिम
आवरण में लिपटकर हंसते
कागज के पुष्प सदृश चमकीले
हिमशिला का कवच पहन
अन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ।
कर्म की तन्मता में रत दिन रात
इच्छाओं के भँवर में उलझे मन
यंत्रचालित तन पे ओढ़कर कर
एक परत गाढ़ी तृप्ति का लबादा,
अपनों की सुख के साज पर
रूँधे गीतों के टूटते तार बाँधकर,
कर्णप्रिय रागों को सुनाकर
मिथ्या में झूमते उदासी को तुम्हारी
महसूस कर सकती हूँ।
#श्वेता🍁
बूँद बूँद तुम्हें हृदय से पीकर
एहसास तुम्हारा अंजुरी में भर
अनकहे तुम्हारी पीड़ा को छूकर
इन अदृश्य हवाओं में घुले
तुम्हारें श्वासों के मध्म स्पंदन को
महसूस कर सकती हूँ।
निर्विकार , निर्निमेष कृत्रिम
आवरण में लिपटकर हंसते
कागज के पुष्प सदृश चमकीले
हिमशिला का कवच पहन
अन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ।
कर्म की तन्मता में रत दिन रात
इच्छाओं के भँवर में उलझे मन
यंत्रचालित तन पे ओढ़कर कर
एक परत गाढ़ी तृप्ति का लबादा,
अपनों की सुख के साज पर
रूँधे गीतों के टूटते तार बाँधकर,
कर्णप्रिय रागों को सुनाकर
मिथ्या में झूमते उदासी को तुम्हारी
महसूस कर सकती हूँ।
#श्वेता🍁
शुभ संध्या..
ReplyDeleteबेहतरीन...
सादर
आपका बहुत बहुत आभार दी।😊
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका
Deleteलोकेश जी।
बहुत सुंदर भावों की अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ !
बहुत बहुत आभार मीना जी,स्वागत है आपका।
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