Friday, 23 June 2017

एक दिन

खुद को दिल में तेरे छोड़ के चले जायेगे एक दिन
तुम न चाहो तो भी  बेसबब याद आयेगे एक दिन

जब भी कोई तेरे खुशियों की दुआ माँगेगा रब से
फूल मन्नत के हो तेरे दामन में मुसकायेगे एक दिन

अंधेरी रातों में जब तेरा साया भी दिखलाई न देगा
बनके  इल्मे ए चिरां ठोकरों से बचायेगे एक दिन

तू न देखना चाहे मिरी ओर कोई बात नहीं,मेरे सनम
आईने दिल अक्स तेरा बनके नज़र आयेगे एक दिन

तेरी जिद तेरी बेरूखी इश्क में जो मिला,मंजूर मुझे
मेरी तड़पती आहें तुझको बहुत रूलायेगे एक दिन

आज तुम जा रहे हो मुँह मोड़कर राहों से मेरे घर के
दोगे सदा फिर कभी खाली ही लौटके आयेगे एक दिन

      #श्वेता🍁


8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार दी आपका।

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  2. विरह रस को कितनी खूबसूरती से बयाँ किया है आपने!
    बहुत ही सुन्दर श्वेता जी !

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुरेन्द्र जी।

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  3. ग़ज़ल की ख़ूबसूरती इसी में है कि इसे करीने से गढ़ा जाय। श्वेता जी की यह ग़ज़ल नए रूप रंग से सजी -संवरी है। ह्रदय तल तक पहुंचे कोई बात वो बात मिलेगी इसमें। बधाई। शुभकामनाऐं!

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  4. ग़ज़ल की ख़ूबसूरती इसी में है कि इसे करीने से गढ़ा जाय। श्वेता जी की यह ग़ज़ल नए रूप रंग से सजी -संवरी है। ह्रदय तल तक पहुंचे कोई बात वो बात मिलेगी इसमें। बधाई। शुभकामनाऐं!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आभार रवींद्र जी।आप सदैव अपनी सुंदतम प्रतिक्रिया से उत्साहित करते है।
      आभरी है.आपके बहुत।धन्यवाद बहुत सारा आपकी शुभकामनाओं के लिए।

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  5. बहुत ही सुन्दर सार्थक गजल...
    लाजवाब...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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