अक्सर गली के उस मुहाने पर आकर
थम जाते है मेरे पैर
जहाँ मुहल्लेभर का कचरा
बजबजाते कूड़ेदान के आस-पास बिखरा होता है
आवारा कुत्तों की छीना-झपटी के बीच
चीकट,मटमैली
फटी कमीज, गंदला निकर पहने
वो साँवले मासूम बच्चेे
बात-बात पर
ऊँची आवाज़ में भद्दी गालियाँ देते
ठहाके लगाते
पीली आँखें मिचमिचाते
बिखरे भूरे जटा-जूट बाल,
मरियल कुपोषित तन लिए
कचरे के ढेर से
अपने सपने बीनते है
गंदी प्लास्टिक की बोतल,
टीन,गत्ते के डब्बे, टूटे खिलौने
और भी न जाने क्या-क्या
आवारा चौपायों
के बीच से चुनकर
किसी बेशकीमती मोती-सा
प्लास्टिक के बदबूदारे बोरे में भरते
पीठ पर स्कूल बैग की जगह
कचरे का बोझ लादे नौनिहाल
जन्मते ही यकायक जिम्मेदार हो जाते हैं
पेट की आग बुझाने को
बेचते हैं कचरा,
फुटपाथ, मंदिर की सीढ़ियों,
गंदे नालों के किनारे
फटे,मैले टाट ओढ़े निढाल
सिकुड़े बेसुध सो जाते हैं
डेंडराइट के नशे में चूर।
किसी भी फोटोग्राफी प्रतियोगिता के लिए
सर्वश्रेष्ठ चेहरे बनते
अखबार और टेलीविजन पर
दिए जाने वाले
"बचपन बचाओ" के नारों से बेख़बर,
कचरे में अपनी ज़िंदगी तलाशते
मासूमों को देखकर,
बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से
गंदगी की परत चढ़ी
इनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
काश! किसी दिन बना पाऊँ मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर।
--श्वेता सिन्हा
़
वाह!!श्वेता ,, बहुत ही सच्चा चित्रण !!जिस दिन इन नौनिहालों की खूबसूरत तस्वीर बनेगी ....वो दिन कितना खुशगवार होगा ।
ReplyDeleteअति आभार आपका दी।
Deleteआपने सही कहा किसी दिन तो इनकी तस्वीर बदलेगी ही।
प्रिय श्वेता,आपने जिस दृश्य को आँखों के सामने से एक भयावह चलचित्र की तरह गुजार दिया है,उस दृश्य को हम सभी हर दिन में एक ना एक बार देखते ही हैं...ना जाने क्यों इन बच्चों के बचपन की चिंता किसी को नहीं है। एक तरफ तो हमारा देश विकास के नए क्षितिज छू रहा है, दूसरी ओर ये नन्हे फूल खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं। कुछ विकसित होते भी हैं तो समाजकंटक बन जाते हैं, अपराधों में संलग्न होकर !!! आज ना कल इनके प्रति होते अन्याय का दंड सारे समाज को भुगतना ही पड़ता है और समाज का एक हिस्सा हम भी हैं।
ReplyDeleteआभार आपका दी।
Deleteमेरी रचना को सार्थक करती आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हम तहेदिल से बहुत आभारी हैं।
स्नेह बनाये रखें दी।
वाह बहुत बढ़िया श्वेता जी सुन्दर रचना
ReplyDeleteइनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
एक दिन बनाऊँगी मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर
अति आभार आपका अनुराधा जी।
Deleteतहेदिल से बहुत शुक्रिया।
बहुत परोपकारी और आद्र भाव लिये प्रवाह मान विचार श्वेता यथार्थं पर कटु चित्रण है पर एक और पहलू भी है तस्वीर का ऐसा नही है कि इनके लिये कुछ नही हो रहा कुछ प संस्थाऐं इनको नहला धुला कर नये वस्त्र और खाने सहित पढ़ने की व्यवस्थाै भी करती है पर थोडे ही दिनों मे इनके खुद के मां बाप इनके हाथों मे फिर वही बोरा और वही मैले कपड़े पहना कर उन्हे फिर वहीं धकेल देते है चार पैसे के जुगाड़ मे और अपनी दारु की भेट चढा देते हैं इनका बचपन।
ReplyDeleteरचना की तारीफ मे शब्द नही है पर भावों पर कुछ तंज था लिख दिया और आपकी शुभ्र भावनाओं मे जल्दी प्रवाह आये और कुछ की ही बनो रंगीन तस्वीर बन जाये
साधुवाद।
सस्नेह
जी दी आपने सही कहा...ऐसा भी होता है।
Deleteमानते है आपकी बात पर कुछ तो परिवर्तन की राह होगी न..।
सादर आभार दी।
आपका स्नेह और आशीष सदैव अपेक्षित है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपके आशीष का बहुत आभार सर।
Delete👏👏👏👏👏👏👏यतार्थ का सटीक चित्रण ...मन को सालता भी है और धिक्कारता भी है प्रिय श्वेता कुछ सत्य कुछ असत्य का मिला जुला प्रारूप है इन कचरा बिन्नी वाले बच्चों का जीवन ...गिजबिजाते कीड़ों सा बचपन जिसका जिम्मेदार सिर्फ सरकार नहीं हम और ये समाज ....इनके माता पिता सभी का हाथ निहित है ...
ReplyDeleteकटु सत्य यही है श्वेता ....प्रथम सोच बदलनी होगी हमारी और समाज की ....
जी आपने सही कहा प्रिय इन्दिरा जी।
Deleteकाश कि हम समाज में एक छोटा सा बदलाव.ला पाये तकि इन मजबूरों को कुछ मदद मिल सके।
सादर आभार आपका।
सस्नेह शुक्रिया बहुत सारा।
सार्थक रचना
ReplyDeleteअति आभार आपका। तहेदिल से बहुत शुक्रिया।
Deleteकाश हर कोई ख़ुद से ये वादा करे उर उसे पूरा भी करे ...
ReplyDeleteये बचपन नहि तो यूँ ही रह जाएगा मानवता के नाम लार हँसी उड़ाता ।।।
अच्छाईयों रचना है ...
जी आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ा जाती है।
Deleteसादर आभार आपका नासवा जी।
कचरे में अपनी ज़िंदगी तलाशते
ReplyDeleteमासूमों को देखकर,
बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से
गंदगी की परत चढ़ी
इनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
एक दिन बनाऊँगी मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर
श्वेता, काश हर कोई ऐसा सोचे और सिर्फ सोचे ही नहीं, इस दिशा मे कार्य भी करे तो वो दिन दूर नहीं जब ये तस्वीर बदलेंगी।
अति आभार आपका ज्योति दी।
Deleteसही कहा आपने बस सोचना ही काफी नहीं इस दिशा में कुछ सार्थक क़दम ही इनकी जीवन की रुप रेखा में.बदलाव ला सकता है।
हृदयतल से बहुत शुक्रिया आपका।
यथार्थ कटु चित्रण ...बहुत सुन्दर...👏👏👏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव संजोये उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteवाह दी बहुत ही सच्चा और अच्छा चित्रण
ReplyDeleteसमाज का कटु और घृणित यथार्थ आपकी रचना में
ReplyDeleteअभिव्यक्त हुआ है। बेहद मर्मस्पर्शी रचना 🙏
बहुत मार्मिक कविता श्वेता जी , एक बार कहें पढ़ा था कि अगर आप को लगता है कि आपके माँ -बाप ने आपके लिए कुछ नहीं किया तो जरा उन बच्चों को देखिये जो सुबह -सुबह बसते की जगह कचरे के थैले ले कर निकलते हैं | विडम्बना है कि बाल श्रम के इतने कानूनों के बाद भी आज भी ये बच्चे ऐसी जिन्दगी जीने को अभिशप्त हैं | जरूरत है हम सब को इनके लिए साथक कदम उठाने की |
ReplyDeleteश्वेता जी, इतने शब्दों में आपने समाज के सारे ''विकसित चरित्रों'' का सच उजागर कर दिया,क्या गजब लिखा है। निश्चित ही जिस दिन आप ऐसा चित्र बनायेंगी तो उस कैनवास में हम आपके साथ होंगे। परंतु मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे बच्चों को सफाई और पढ़ाई का महत्व बताने में लगी हूं, सफल हुई या नहीं ,ये कुछ समय बाद पता चल पाएगा।
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति ! लाजवाब !!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteलाजवाब :) सी सी टी वी
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर लेख
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