Saturday 1 April 2017
Friday 31 March 2017
स्मृतियों का ताजमहल
समेटकर नयी पुरानी
नन्ही नन्हीं ख्वाहिशें,
कोमल अनछुए भाव
पाक मासूम एहसास,
कपट के चुभते काँटे
विश्वास के चंद चिथड़़े,
अवहेलना के अगूंज
बेरूखी से रूखे लफ्ज़,
और कुछ रेशमी सतरंगी
तितलियों से उड़ते ख्वाब,
बार बार मन के फूलों
पर बैठने को आतुर,
कोमल नाजुक खुशबू में
लिपटे हसीन लम्हे,
जिसे छूकर महकती है
दिल की बेरंग दिवारे,
जो कुछ भी मिला है
तुम्हारे साथ बिताये,
उन पलों को बाँधकर
वक्त की चादर में लपेट
नम पलकों से छूकर,
दफन कर दिया है
पत्थर के पिटारों में,
और मन के कोरे पन्नों
पर लिखी इबारत को
सजा दिया है भावहीन
खामोश संगमरमर के
स्पंदनविहीन महलों में,
जिसके खाली दीवारों पर
चीखती है उदासियाँ,
चाँदनी रातों में चाँद की
परछाईयों में बिसूरते है
सिसकते हुए जज्बात,
कुछ मौन संवेदनाएँ है
जिसमें तुम होकर भी
कहीं नहीं हो सकते हो,
खामोश वक्त ने बदल दिया
सारी यादों को मज़ार में,
बस कुछ फूल है इबादत के
नम दुआओं में पिरोये
जो हर दिन चढ़ाना नहीं भूलती
स्मृतियों के उस ताजमहल में।
#श्वेता🍁
नीरवता से जीवन की ओर
अभी अंधेरे की चादर
पसरी है बाहर,
अपने कच्चे पक्के छोटे बडे
घरौंदों मे खुद को समेटे
गरम लिहाफों को लपेटे
सुख की नगरी मे विचरते
जहान के झमेले से दूर
सब सुखद नींद मे है,
मेरे छत के पास
उस पीपल मंे हल्की हल्की
सुगबुगाहटें होने लगी,
रात थकी सी चुपचाप
तन्हा राहगीर सी
उजाले के आस में
अपने विश्राम के इंतज़ार में हो,
आसमां का एक कोना
अब स्याह से रक्तिम होने लगा
चिड़ियों की चीं चीं बढ़ने लगी
दूर मंदिर में घंटियों का
मधुर स्वर रस घोल गया
अंतिम तारा भी खो गया,
समन्दर की नीले लहरों में
रतनारी बड़ी सी बिदियाँ
नभ के माथे पे उदित हुई,
सरसराती शीतल पवन
हौले से कलियों को चूमने लगी
बूंदें ओस की दूबों पर
बूटों से झिलमिलाने लगे
झुंड पंक्षियों के झूमने लगे,
फुदक फुदक कर.गौरैया
मे नृत्य दिखाने लगी
एक नयी सुबह ने पलकें
अपनी खोली है फिर से
आपके जीवन में नयी आशा
नवजीवन का संचरण करने
बाहों को पसारे मुस्कुराईये
दिल से स्वागत कीजिए
अपने जीवन के एक नये दिन का।
#श्वेता🍁
पसरी है बाहर,
अपने कच्चे पक्के छोटे बडे
घरौंदों मे खुद को समेटे
गरम लिहाफों को लपेटे
सुख की नगरी मे विचरते
जहान के झमेले से दूर
सब सुखद नींद मे है,
मेरे छत के पास
उस पीपल मंे हल्की हल्की
सुगबुगाहटें होने लगी,
रात थकी सी चुपचाप
तन्हा राहगीर सी
उजाले के आस में
अपने विश्राम के इंतज़ार में हो,
आसमां का एक कोना
अब स्याह से रक्तिम होने लगा
चिड़ियों की चीं चीं बढ़ने लगी
दूर मंदिर में घंटियों का
मधुर स्वर रस घोल गया
अंतिम तारा भी खो गया,
समन्दर की नीले लहरों में
रतनारी बड़ी सी बिदियाँ
नभ के माथे पे उदित हुई,
सरसराती शीतल पवन
हौले से कलियों को चूमने लगी
बूंदें ओस की दूबों पर
बूटों से झिलमिलाने लगे
झुंड पंक्षियों के झूमने लगे,
फुदक फुदक कर.गौरैया
मे नृत्य दिखाने लगी
एक नयी सुबह ने पलकें
अपनी खोली है फिर से
आपके जीवन में नयी आशा
नवजीवन का संचरण करने
बाहों को पसारे मुस्कुराईये
दिल से स्वागत कीजिए
अपने जीवन के एक नये दिन का।
#श्वेता🍁
Thursday 30 March 2017
मेरे दिल को छू गये
मेरे दिल को छू गये हो तुम,
एहसास मेरा चमन हो गया।
एहसास मेरा चमन हो गया।
खुशबू बन गये तुम जेहन के,
गुलाब सा तन बदन हो गया।
गुलाब सा तन बदन हो गया।
पंखुड़ियाँ बिखरी हवाओं में,
चाहत फैला गगन हो गया।
चाहत फैला गगन हो गया।
ज़माने के शोर से अन्जान हूँ,
खुमारी में डूबा ये मन हो गया।
खुमारी में डूबा ये मन हो गया।
महकती साँसे कहने लगी है,
तुझसे मोहब्बत सजन हो गया।
तुझसे मोहब्बत सजन हो गया।
न टूटे कभी नेह का ये बंधन,
दिल से दिल का लगन है गया।
दिल से दिल का लगन है गया।
#श्वेता
रिश्ता अन्जाना हो गया
तुमसे बिछड़े तो इक ज़माना हो गया,
जख्म दिल का कुछ पुराना हो गया।
टीसती है रह रहकर यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।
नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।
लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।
रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।
#श्वेता🍁
जख्म दिल का कुछ पुराना हो गया।
टीसती है रह रहकर यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।
नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।
लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।
रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।
#श्वेता🍁
Tuesday 28 March 2017
ढलती शाम
बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा
हो जाएँगे आकाश के कोर सुनहरे लाल
परिंदों की खामोशी शाम का इशारा रहेगा
ढले सूरज की परछाई में चिराग रौशन होगे
दिनभर के इंतज़ार का हिसाब सारा रहेगा
मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा
अँधेरों की वादियों में तन्हाईयाँ महकती है
सितारों की गाँव में चेहरा बस तुम्हारा रहेगा
#श्वेता🍁
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा
हो जाएँगे आकाश के कोर सुनहरे लाल
परिंदों की खामोशी शाम का इशारा रहेगा
ढले सूरज की परछाई में चिराग रौशन होगे
दिनभर के इंतज़ार का हिसाब सारा रहेगा
मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा
अँधेरों की वादियों में तन्हाईयाँ महकती है
सितारों की गाँव में चेहरा बस तुम्हारा रहेगा
#श्वेता🍁
चूड़ियाँ
छुम छुम छन छन करती
कानों में मधुर रस घोलती
बहुत प्यारी लगी थी मुझको
पहली बार देखी जब मैंने
माँ की हाथों में लाल चूूड़ियाँ
टुकुर टुकुर ताकती मैं
सदा के लिए भा गयी
अबोध मन को लाल चूड़ियाँ
अपनी नन्ही कलाईयों में
कई बार पहनकर देखा था
माँ की उतारी हुई नयी पुरानी
खूब सारी काँच की चूड़ियाँ
वक्त के साथ समझ आयी बात
कलाई पर सजी सुंदर चुड़ियाँ
सिर्फ एक श्रृंगारभर नहीं है
नारीत्व का प्रतीक है ये
सुकोमल अस्तित्व को
परिभाषित करती हुई
खनकती काँच की चूड़ियाँ
जिस पुरुष को रिझाती है
सतरंगी चुड़ियों की खनक से
उसी के बल के सामने
निरीह का तमगा पहनाती
ये खनकती छनकती चूड़ियाँ
ब्याह के बाद सजने लगती है
सुहाग के नाम की चूड़ियाँ
चूड़ियों से बँध जाते है
साँसों के आजन्म बंधन
चुड़ियों की मर्यादा करवाती
एक दायित्व का एहसास
घरभर में खनकती है चुड़ियाँ
सबकी जरूरतों को पूरा करती
एक स्वप्निल संसार सजाती
रंग बिरंगी काँच की चूड़ियाँ
चूड़ियों की परिधि में घूमती सी
अन्तहीन ख्वाहिशें और सपनें
टूटते,फीके पड़ते,नये गढ़ते
चुड़ियों की तरह ही रिश्ते भी
हँसकर रोकर सुख दुख झेलते
पर फिर भी जीते है सभी
एक नये स्वप्न की उम्मीद लिए
कलाईयों में सजती हुई
नयी काँच चूड़ियों की तरह
जीवन भी लुभाता है पल पल
जैसे खनकती काँच की चूड़ियाँ
#श्वेता🍁
कानों में मधुर रस घोलती
बहुत प्यारी लगी थी मुझको
पहली बार देखी जब मैंने
माँ की हाथों में लाल चूूड़ियाँ
टुकुर टुकुर ताकती मैं
सदा के लिए भा गयी
अबोध मन को लाल चूड़ियाँ
अपनी नन्ही कलाईयों में
कई बार पहनकर देखा था
माँ की उतारी हुई नयी पुरानी
खूब सारी काँच की चूड़ियाँ
वक्त के साथ समझ आयी बात
कलाई पर सजी सुंदर चुड़ियाँ
सिर्फ एक श्रृंगारभर नहीं है
नारीत्व का प्रतीक है ये
सुकोमल अस्तित्व को
परिभाषित करती हुई
खनकती काँच की चूड़ियाँ
जिस पुरुष को रिझाती है
सतरंगी चुड़ियों की खनक से
उसी के बल के सामने
निरीह का तमगा पहनाती
ये खनकती छनकती चूड़ियाँ
ब्याह के बाद सजने लगती है
सुहाग के नाम की चूड़ियाँ
चूड़ियों से बँध जाते है
साँसों के आजन्म बंधन
चुड़ियों की मर्यादा करवाती
एक दायित्व का एहसास
घरभर में खनकती है चुड़ियाँ
सबकी जरूरतों को पूरा करती
एक स्वप्निल संसार सजाती
रंग बिरंगी काँच की चूड़ियाँ
चूड़ियों की परिधि में घूमती सी
अन्तहीन ख्वाहिशें और सपनें
टूटते,फीके पड़ते,नये गढ़ते
चुड़ियों की तरह ही रिश्ते भी
हँसकर रोकर सुख दुख झेलते
पर फिर भी जीते है सभी
एक नये स्वप्न की उम्मीद लिए
कलाईयों में सजती हुई
नयी काँच चूड़ियों की तरह
जीवन भी लुभाता है पल पल
जैसे खनकती काँच की चूड़ियाँ
#श्वेता🍁
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मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...