समझदारी का पाठ पढ़
हम अघा गये भगवान
थोड़ी सी मूरखता का
अब तुमसे माँगे वरदान
अदब,कायदे,ढ़ंग,तरतीब
सब झगड़े बुद्धिमानों के
प्रेम,परोपकार,भाईचारा
श्रृंगार कहाये मतिमारों के
इंसानों को इंसा मैं समझूँ
न धर्म-अधर्म का ध्यान रहे
मानवता का दीप जलाऊँ
मन मूढ़ मति अज्ञान रहे
मूरख ही चतुरों के मन के
करते कार्य अनुकूल
माँ लक्ष्मी भी करे सवारी
सभा की रौनक "फूल"
मूर्खदिवस पर एक-दूजे के
अकल नाप मुस्काते है
कौन है कितना बड़ा चतुर
तोल-बोल इतराते है
मूर्ख चालीसा गाइये हंसके
है मूरखता अनमोल खरा
सरल हृदय स्नेह भावयुक्त
निर्मल,निर्झर हिय नेह भरा
ना चाहूँ मैं विद्वान कहाना
हे प्रभु,इतनी कृपा करिये
हर कर मेरी सारी ज्ञानता
हृदय में दया,करुणा भरिये।
-श्वेता सिन्हा
अर्चना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला,
ReplyDeleteमूढ़ मन मर्मज्ञ मति मढ़ और अन्तस् सदा खिला।...
वाह! श्वेता जी, बहुत सुंदर सोच और अप्रतिम अर्चना! आभार!!!
वाह्ह्ह....अति सुंदर पंक्तियाँ,मन मोह गयी👌👌👌
Deleteआपके स्नेह और आशीष भरी सराहना सदैव सकारात्मक ऊर्जा भरकर और भी अच्छा लिखने को प्रेरित करते है।
अति आभार विश्वमोहन जी। कृपया आशीष बनाये रखे।
अरे वाहःह
ReplyDeleteबहुत उम्दा
राधे राधे
अति आभार आपका लोकेश जी।
Deleteराधे-राधे जी।
👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteवाह प्रिय श्वेता जी वाह 👍👍👍
जो मूरखता का मांगी वरदान
उससे सयाना कोई ना जान !
हा हा हा,जी प्रिय इन्दिरा जी आपके स्नेह का अति आभार। आपकी सुंदर प्रतिक्रिया पढ़ मन प्रसन्न हुआ।
Deleteआपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदयतल से अति आभार आपका दी:)
Deleteपाँच लिंकों में स्थान पाना सदैव गौरवान्वित करता है।
प्रिय श्वेता ----- मुर्खता की सुंदर अभ्यर्थना !!!!!! और कथित 'मूर्खों 'को सम्मान !! इस मनमोहक चातुर्य के क्या कहने !!!!सचमुच ऐसी अज्ञानता और सौ गुना भली ये किसी को हानि
ReplyDeleteनहीं पहुंचाती और निर्मलता और सरलता से आच्छादित होती है | एक बार फिर एक दुर्लभ विषय को अपनी प्रखर लेखनी से बहुत रोचक और सरस बना दिया आपने | मेरी प्यार भरी शुभकामनायें |
+Renu
Deleteमेरी प्यारी रेणु दी,
आपके द्वारा की गयी सुंदर विवेचना और नेह भरी सराहना ने मनोबल बढ़ा दिया है।
अति आभार आपका,हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
मूढ मूढ काको कहे
ReplyDeleteतू स्वयं जडमति गूढ
छल भरे चतुर संसार मे
तूं मूढ ते मूढ।
प्रिय श्वेता एक दृष्टि मे आपकी रचना के विपरीत सी पंक्तियाँ है पर ये आपके भावों का व्यंगात्मक समर्थन है कभी यूं ही बैठे बैठे लिख दी आज आपकी पोस्ट के समानांतर सी लगी तो प्रतिक्रिया स्वरूप लिख रही हूं।
आपकी रचना पर प्रतिक्रिया के लिये तो हर बार बस शब्दों की कमी रहती है।
सार्थक सत्य व्यंग्य और अद्भुत।
सस्नेह।
मेरी प्यारी दी,
Deleteआपकी लिखी पंक्तियाँ सदैव सारगर्भित होती है। इतना गहन चिंतन और दुर्लभ दर्शन ही आपकी खास पहचान है।
बहुत अच्छी लगी पंक्तियाँ दी👌👌👌
आपका आशीष और स्नेह सदैव मेरे लिए अमूल्य है। हृदयतल से अति आभार आपका दी सदैव:)
बहुत सुंदर सोच .....अप्रतिम
ReplyDeleteक्या ही सटीक बात कहीं है श्वेता जी
ReplyDeleteबुद्धिमानों की जमात में क्या रखा अब
मात्र तर्क वितर्क और कुतर्क
मूढ़ मगज के भोलेपन में ही नजर आता अब
असली जीवन का अर्क.....
नई सोच को मेरा नमन
मूर्खदिवस पर एक-दूजे के
ReplyDeleteअकल नाप मुस्काते है
कौन है कितना बड़ा चतुर
तोल-बोल इतराते है
ऐसी विद्वता और चतुरता किस काम की जो अहंकारी बना दे और हम दूसरों की हँसी उडा़ये
इससे तो बेहतर हो हम मूर्ख और मूढ़ रहे ....
बहुत ही सुन्दर प्रार्थना... भगवान भी ऐसे ही सहृदय को ही वरदान देते आये हैं....
लाजवाब भाव....
वाह!!!!
श्वेता जी हास-परिहास से चलकर आप तो पते की बात तक पहुँच गईं.
ReplyDeleteप्रिय श्वेता जी,
ReplyDeleteबेहतरीन ।
प्रार्थिनी के रूप में एक नाम मेरा भी शामिल कीजिये ।
सादर ।
वाह वाही को शब्द नहीं मिल रहे श्वेता दीदी क्या कमाल की रचना है 👌👌👏👏
ReplyDeleteजो पहन मुखौटा ज्ञानी का
जग को मूर्ख बनाने आए
भूल गये की खो के खुद को
वो जग में बड़ मूर्ख कहाए
वाह!!वाह!!श्वेता ..क्या खूब लिखा है ....प्रशंसा के लिए शब्द कम पड रहे है ...
ReplyDeleteहास्य व्यंग के माध्यम से गंभीर सवालों की ओर इंगित करती सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं श्वेता जी।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय 'विश्वमोहन' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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व्वाह..
ReplyDeleteमूर्ख चालीसा गाइये हंसके
है मूरखता अनमोल खरा
सरल हृदय स्नेह भावयुक्त
निर्मल,निर्झर हिय नेह भरा
मूर्ख बना लेना खुशी का गुमान है
ReplyDeleteमृदुल स्मित संग खुशी देना मान है
उम्दा रचना