धर्म के नाम पर
कराह रही इंसानियत
राम,अल्लाह मौन है
शोर मचाये हैवानियत
धर्म के नाम पर
इंसानों का बहिष्कार है
मज़हबी नारों के आगे
मनुष्यता बीमार है
खून को पानी बना के
बुझ सकेगी प्यास क्या?
चीत्कार को लोरी बना
कट सकेगी रात क्या?
न बनो कठपुतलियाँ
ज़रा विवेक से काम लो,
राम-रहीम के आदर्श को
न छ्द्म धर्म का नाम दो।
धर्म के नाम पर
मत बाँटो इन्सानों को,
अपने भीतर उग आये
काटो ईष्यालु शैतानों को
लफ़्जों की लकीर खींच
न नफरतों के कहर ढाओ
मार कर विष टहनियों को
सौहार्द्र का एक घर बनाओ
मज़हब़ी पिंज़रों से उड़कर
मानवता का गीत गाओ
दिल से दिल को जोड़कर
राष्ट्रधर्म का संकल्प उठाओ
-श्वेता सिन्हा
वाह...
ReplyDeleteसाधुवाद
सादर
आभार दी:)
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपके आशीष का।
बहुत उम्दा
ReplyDeleteखूबसूरत भाव से महकती रचना
जी,बहुत आभार लोकेश जी।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया।
आपका संकल्प सही है ...
ReplyDeleteराष्ट्रधर्म का पालन होना चाहिए न की अपने अपने स्वार्थ के लिए धर्म का प्रयोग ... पहले देश फिर कुछ भी दूसरा होना चाहिए ... लाजवाब रचना है ...
जी सही कहा आपने नासवा जी।
Deleteधर्म के नाम पर हो रही अराजकता ने मन दुखी कर रखा है।
अति आभार आपका नासवा जी।
बहुत सुंदर ! जागृति का संदेश देती,देशप्रेम को जगाने व भेदभाव मिटाने को प्रेरित करती हुई रचना !!!
ReplyDeleteअति आभार आपका मीना जी। सस्नेह शुक्रिया आपका।नेह बनाये रखे।
Delete
ReplyDeleteधर्म के नाम पर
इंसानों का बहिष्कार है
मज़हबी नारों के आगे
मनुष्यता बीमार है
एकदम सटीक ....धर्म के नाम पर देश में अराजकता फैलायी जा रही है
बहुत ही सुन्दर ...
लाजवाब...
आपकी प्रतिक्रिया ने उत्साह से भर दिया सुधा जी। सही कहा आपने धर्म के नाम पर फैली अराजकता में निर्दोष मासूमों का दर्द कौन समझता है सब अपनी दुकान चलाने में लग जाते है।
Deleteअति आभार आपका सुधा जी।
नेह बनाये रखे।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
अति आभार आपका नीतू जी।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया।
आदरणीय श्वेता जी ,
ReplyDeleteबेहद असरदार कविता..... धर्म कोइ भी हो हमारा ही होता है और धर्म जोड़ना सिखाता है तोडना नहीं।
सादर
सही कहा आपने अपर्णा जी,धर्म को जोड़-तोड़ कर कुछ लोग बेबसोंं का फायदा उठाते है।
Deleteअति आभार आपका हृदयतल से शुक्रिया जी।
वाह!!बहुत खूबसूरत रचना !!सही है श्वेता ,मानवता का गीत गाना ही होगा ..।
ReplyDeleteअति आभार शुभा दी। काश कि सब ये बातें समझ पाते, स्नेह बनाये रखे।
Deleteवाह श्वेता राष्ट्र धर्म पर बहुत सुंदरता से रचना के माध्यम से आपने बताया बहुत सुंदर भावों का समन्वय ।
ReplyDeleteसाधुवाद।
ढेर सा स्नेह
अति आभार दी हृदयतल से शुक्रिया आपका।
Deleteसबसे बड़ा धर्म तो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन है न।
आपका स्नेह सदैव.अपेक्षित है।
अति आभार दी।
मज़हब़ी पिंज़रों से उड़कर
ReplyDeleteमानवता का गीत गाओ
दिल से दिल को जोड़कर
राष्ट्रधर्म का संकल्प उठाओ
वाव्व...स्वेता, राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति।
अति आभार ज्योति दी।
Deleteआपने रचना पसंद की बहुत अच्छा लगा।
सस्नेह.शुक्रिया दी।
वाह दीदी जी उत्क्रष्ट रचना है ये
ReplyDeleteआजकल जो माहौल बना है वो निराशाजनक है सबके आँखों पर पट्टी बंध गयी है आपकी ये रचना लोगों के आँख से पट्टी हटाने में पूर्ण सहयोग करेगी लोगों को सत्य से अवगत करायेगी आपकी ये रचना आज के समय की माँग है
नमन है आपकी इस रचना को 👌👌👏👏
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/63.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह श्वेताजी! बिलकुल सामयिक सन्दर्भ में धर्मान्धों के कलुषित अंतस को झकझोरती और दायित्व बोध की स्वर-सुधा से प्रक्षालित करती एक सार्थक, सटीक एवं उत्कृष्ट आवाहन गीत!!! बधाई!!!
ReplyDeletevery beautiful. your stories are very realistic,it force us to think a lot. it requires lots of concentration and coolness. Appreciating.
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ReplyDeletevery beautiful. your stories are very realistic,it force us to think a lot. it requires lots of concentration and coolness. Appreciating