Monday 8 April 2019

मन


(१)
जीवन के बेढब
कैनवास पर
भावों की कूची से
उम्रभर उकेरे गये
चेहरों के ढेर में
ढूँढ़ती रही 
एहसास की खुशबू 
धूप ,हवा ,पानी,
जैेसा निराकार
और ईश की तरह
अलौकिक,अदृश्य
तृप्ति की बूँद,
देह के भीतर
स्पंदित श्वास
सूक्ष्म रंध्रों से
मन की तरंगों का
चेतना के तटों से
टकराकर लौटने का
अनहद नाद 
भ्रम ,माया,मरीचिका के 
मिथ्य दरकने के उपरांत
उकताया,विरक्त
सुप्त-जागृत मन ने जाना 
एहसास का कोई चेहरा नहीं होता

(२)
प्राकृत भाषा में लिखी
अबूझ पहेलियाँ
पक्षियों के कलरव की भाँति
मधुर किंतु गूढ़
मन की अवश
कल्पनाओं के
खोल के भीतर ही भीतर
गीले कागज़ पर
प्रेम की एक बूँद
टपकते ही
धमनियों की महीन वाहिनियों में
फैल जाती है।

(३)
मन का ज़ंग लगा 
चरमराता दरवाज़ा
दस्तक से चिंहुककर
ज़िद में अड़कर बंद 
रहना चाहता है
आगंतुक से भयभीत
जानता है 
यथोचित 
आतिथ्य सत्कार के 
अभाव में
जब लौटेगा वो,
तब टाँग देगा
स्मृतियों का गट्ठर
दरवाज़े की
कमज़ोर कुंड़ी पर।

#श्वेता सिन्हा


14 comments:

  1. मनुष्य की सुप्त-प्राय आत्मा को इतना झकझोरोगी तो वह जाग ही जाएगी. और फिर आत्मा की परमात्मा में लीन हो जाने की यात्रा प्रारंभ होगी. सत्य, शिव और सुन्दर की प्रतिष्ठा होगी.

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    1. आभारी हूँ सर..आपके अनुपम आशीष से अनुगृहीत...एक वैचारिक मंथन है।
      बेहद शुक्रिया सर।

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  2. गीले कागज़ पर
    प्रेम की एक बूँद
    टपकते ही
    धमनियों की महीन वाहिनियों में
    फैल जाती है।

    बहुत सुंदर ,सादर स्नेह श्वेता जी

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    1. आभारी हूँँ कामिनी जी...बहुत शुक्रिया,हृदयतल से।

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  3. वाह दर्शन की पराकाष्ठा

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    1. आभारी हूँ अभिलाषा जी...बहुत शुक्रिया।

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  4. वाह बहुत ही बेहतरीन

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  5. बहुत खूब प्रिय श्वेता -- तीनों दार्शनिक स्थितियां और अध्यात्म के शिखर की ओर अग्रसर | सराहनीय रचना जो मन को शून्य से समाधि की ओर ले जाने को आतुर है | हार्दिक शुभकामनायें और प्यार |

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  6. प्रेम का एहसास बूँद में मिल के शरीर में उतरना तो स्वाभाविक है ...
    गहरे प्रेम भाव लिए सुन्दर पल ...

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  7. विरक्त
    सुप्त-जागृत मन ने जाना
    एहसास का कोई चेहरा नहीं होता
    .
    कल्पनाओं के
    खोल के भीतर ही भीतर
    गीले कागज़ पर
    प्रेम की एक बूँद
    टपकते ही
    .
    तब टाँग देगा
    स्मृतियों का गट्ठर
    दरवाज़े की
    कमज़ोर कुंड़ी पर।
    उत्कृष्ट लेखन शैली और विचारों का परिपक्व विचरण अंतःकरण को अनायास ही आकर्षित होने के लिए विवश कर देता है। ऐसी रचनाएँ आने वाले वक्त में हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर बनेंगीं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  8. मन की परतों को खोलती सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं ... बधाई श्वेता जी

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  9. वाह गहरे दर्शन से भीगा अनुपम सृजन।
    अप्रतिम।

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  10. सुंदर प्रस्तुति

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  11. वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत
    बेहद उम्दा 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏शब्द कम पड़ गये तालियाँ ही बजा सकते हैं 👌सादर नमन

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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