(१)
जीवन के बेढबकैनवास पर
भावों की कूची से
उम्रभर उकेरे गये
चेहरों के ढेर में
ढूँढ़ती रही
एहसास की खुशबू
धूप ,हवा ,पानी,
जैेसा निराकार
और ईश की तरह
अलौकिक,अदृश्य
तृप्ति की बूँद,
देह के भीतर
स्पंदित श्वास
सूक्ष्म रंध्रों से
मन की तरंगों का
चेतना के तटों से
टकराकर लौटने का
अनहद नाद
भ्रम ,माया,मरीचिका के
मिथ्य दरकने के उपरांत
उकताया,विरक्त
सुप्त-जागृत मन ने जाना
एहसास का कोई चेहरा नहीं होता
(२)
प्राकृत भाषा में लिखी
अबूझ पहेलियाँ
पक्षियों के कलरव की भाँति
मधुर किंतु गूढ़
मन की अवश
कल्पनाओं के
खोल के भीतर ही भीतर
गीले कागज़ पर
प्रेम की एक बूँद
टपकते ही
धमनियों की महीन वाहिनियों में
फैल जाती है।
(३)
मन का ज़ंग लगा
चरमराता दरवाज़ा
दस्तक से चिंहुककर
ज़िद में अड़कर बंद
रहना चाहता है
आगंतुक से भयभीत
जानता है
यथोचित
आतिथ्य सत्कार के
अभाव में
जब लौटेगा वो,
तब टाँग देगा
स्मृतियों का गट्ठर
दरवाज़े की
कमज़ोर कुंड़ी पर।
#श्वेता सिन्हा
मनुष्य की सुप्त-प्राय आत्मा को इतना झकझोरोगी तो वह जाग ही जाएगी. और फिर आत्मा की परमात्मा में लीन हो जाने की यात्रा प्रारंभ होगी. सत्य, शिव और सुन्दर की प्रतिष्ठा होगी.
ReplyDeleteआभारी हूँ सर..आपके अनुपम आशीष से अनुगृहीत...एक वैचारिक मंथन है।
Deleteबेहद शुक्रिया सर।
गीले कागज़ पर
ReplyDeleteप्रेम की एक बूँद
टपकते ही
धमनियों की महीन वाहिनियों में
फैल जाती है।
बहुत सुंदर ,सादर स्नेह श्वेता जी
आभारी हूँँ कामिनी जी...बहुत शुक्रिया,हृदयतल से।
Deleteवाह दर्शन की पराकाष्ठा
ReplyDeleteआभारी हूँ अभिलाषा जी...बहुत शुक्रिया।
Deleteवाह बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब प्रिय श्वेता -- तीनों दार्शनिक स्थितियां और अध्यात्म के शिखर की ओर अग्रसर | सराहनीय रचना जो मन को शून्य से समाधि की ओर ले जाने को आतुर है | हार्दिक शुभकामनायें और प्यार |
ReplyDeleteप्रेम का एहसास बूँद में मिल के शरीर में उतरना तो स्वाभाविक है ...
ReplyDeleteगहरे प्रेम भाव लिए सुन्दर पल ...
मन की परतों को खोलती सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं ... बधाई श्वेता जी
ReplyDeleteवाह गहरे दर्शन से भीगा अनुपम सृजन।
ReplyDeleteअप्रतिम।
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत
ReplyDeleteबेहद उम्दा 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏शब्द कम पड़ गये तालियाँ ही बजा सकते हैं 👌सादर नमन