Thursday 16 December 2021

समय का आलाप



शरद में 
अनगिनत फूलों का रंग निचोड़कर
बदन पर नरम शॉल की तरह लपेटकर
ओस में भीगी भोर की 
नशीली धूप सेकती वसुधा,
अपने तन पर फूटी
तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
कोशिश करती तितलियों को 
देख-देखकर गुनगुनाते
भँवरों की मस्ती पर
बलाएँ उतारती है...
खेतों की पगडंडियों पर
अधखिले तिल के गुलाबी फूलों को
हथेलियों में भरकर
पुचकारती बासंती हवाओं की
गंध से लटपटाई वसुधा
सोचती है....
इन फूलों और
गेहूँ की हरी बालियों की
जुगलबंदी बता रही है
खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
बो दिए हैं 
अबकी बरस
गेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
तुम सुन रहे हो न
आने वाले समय का आलाप
उम्मीद का यह गीत
कितना मीठा है न..।

-श्वेता सिन्हा
१६दिसंबर २०२१

13 comments:

  1. इन फूलों और
    धान की हरी बालियों की
    जुगलबंदी बता रही है
    खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
    बो दिए हैं
    अबकी बरस
    धान के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे/
    तुम सुन रहो न/आने वाले समय का आलाप/
    उम्मीद का यह गीत/कितना मीठा है न...।////
    बहुत सुंदर प्रिय श्वेता। ये मौसम इतना शानदार है कि कवियों की कल्पना सरपट दौड़ने लगती है। गेहूं कीबालियों के साथ फूलों की जुगलबंदी अभिनव कल्पना है। ढेरों बधाइयां और प्यार इस मोहक सृजन के लिए ❤️❤️🌷🌷

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    1. आपका स्नेह पाना शरद की नरम धूप सा एहसास है दी।
      आपकी उत्साहवर्धक सराहना के लिए
      बहुत आभारी हूँ दी।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  2. वाक़ई, मीठा है उम्मीदों का यह गीत! यूँ ही गाते रहें!!!

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-१२ -२०२१) को
    'नवजागरण'(चर्चा अंक-४२८२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. शरद का भी अपना एक अलग ही सौन्‍दर्य होता है
    बहुत सुन्‍दर

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  5. गर शरद में ही खिलखिला गए सारे फूल तो बसन्त का क्या होगा ।
    प्रकृति के सौंदर्य को शब्दों में क्या खूब बाँधा है । अभी तक नशीली धूप का एहसास हो रहा है ।
    मंत्रमुग्ध कर देने वाला सृजन ।

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  6. शरद की प्राकृति का अनूठा रूप होता है ... इसी को जीवन कहते हैं ...
    इसी रूप को बाखूबी शब्दों में बाँधा है ...

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  7. अबकी बरस
    गेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
    तुम सुन रहे हो न
    आने वाले समय का आलाप
    उम्मीद का यह गीत
    कितना मीठा है न..।बेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी।

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  8. क्या तारीफ करूँ मैं इस सृजन की
    जो तारीफ कर रहा प्रकृति की!
    उसके खूबसूरत शब्दों के आगे मेरे शब्द फीके से लगते हैं!
    जिसमें पहले से ही चार चांद लगे हो उसमें तारीफ करके चार चांद लगाना नहीं आता मुझे!
    निशब्द....!🙏🙏🙏

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  9. नशीली धूप सेकती वसुधा,
    अपने तन पर फूटी
    तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
    कोशिश करती तितलियों को
    देख-देखकर गुनगुनाते
    भँवरों की मस्ती पर
    बलाएँ उतारती है...
    वाकई बहुत ही मीठा..
    निशब्द करती अद्भुत व्यंजनाएं... बहुत ही मनमोहन एवं लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  10. प्रकृति का बहुत ही मनमोहक सृजन, प्रिय श्वेता दी।

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  11. अबकी बरस
    गेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
    तुम सुन रहे हो न
    आने वाले समय का आलाप
    उम्मीद का यह गीत
    कितना मीठा है न..। वाह, सुंदर छायाचित्र जैसी रचना ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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