ये तो सच है न!!
तुम
कोई वीर सैनिक नहीं,
जिनकी मृत्यु पर
देश
गर्वित हो सके।
न ही कोई
प्रतापी नेता
जिनकी मौत
के मातम में
झंडे झुकाकर
राष्ट्रीय शोक
घोषित कर
दिया जाए।
योगदान,त्याग
और बलिदान के
प्रशस्ति-पत्र पढ़े जायें।
न ही कोई
अभिनेता
जिसकी मौत पर
बिलखते,छाती पीटते
प्रशंसकों द्वारा
धक्का-मुक्की कर
श्रद्धापुष्प अर्पित किये जाये,
उल्लेखनीय
जीवन-गाथाओं
की वंदना की जाए।
न ही तुम किसी
धर्म के ठेकेदार हो,
न धनाढ्य व्यापारी,
जिसकी मौत पर
आयोजित
शोक सभाओं से
किसी प्रकार का कोई
लाभ मिल सके।
कहो न!!
क्या विशेष हो तुम?
जिसकी गुमनाम मौत पर
क्रांति गीत गाया जाए?
शोक मनाया जाए?
महामारी के दौर की
एक चर्चित भीड़!
सबसे बड़ी ख़बर,
जिनके अंतहीन दुःख
अब रोमांचक कहानियाँ हैं..?
जिनकी देह की
बदबू से बेहाल तंत्र
नाक-मुँह ढककर
उपेक्षा की चादर लिए
राज्य की सीमाओं पर
प्रतीक्षारत है...
संवेदना और सहानुभूति के
मगरमच्छी आँसू और
हवाई श्रद्धांजलि
पर्याप्त नहीं क्या?
मौलिक अधिकारों के
संवैधानिक प्रलाप से
छले जानेवाले
ओ मूर्ख!!
तुम लोकतंत्र का
मात्र एक वोट हो
और..
डकार मारती
तोंदियल व्यवस्थाओं के
लत-मर्दन से
मूर्छित
बेबस"भूख"।
©श्वेता सिन्हा
१९मई२०२०
१९मई२०२०