न भाये कछु राग रंग,
न जिया लगे कछु काज सखि।
मोती टपके अँचरा भीगे,
बिन मौसम बरसात सखि।
सूना पनघट जमना चुप सी,
गोकुल की गली उदास सखि।
दिवस जलावै साँझ रूलावै,
बड़ी मुश्किल में कटे रात सखि।
बैरन निदियां भयी नयन से,
भरी भरी आये ये आँख सखि।
निर्मोही को संदेशा दे दो,
लगी दरश की प्यास सखि।
दिन दिन भर मैं बाट निहारूँ,
कब आयगे मोरे श्याम सखि।
#श्वेता🍁
न जिया लगे कछु काज सखि।
मोती टपके अँचरा भीगे,
बिन मौसम बरसात सखि।
सूना पनघट जमना चुप सी,
गोकुल की गली उदास सखि।
दिवस जलावै साँझ रूलावै,
बड़ी मुश्किल में कटे रात सखि।
बैरन निदियां भयी नयन से,
भरी भरी आये ये आँख सखि।
निर्मोही को संदेशा दे दो,
लगी दरश की प्यास सखि।
दिन दिन भर मैं बाट निहारूँ,
कब आयगे मोरे श्याम सखि।
#श्वेता🍁