Monday 17 April 2017

थोड़ा.सा पा लूँ तुमको

अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको

खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको

मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको

महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको

        #श्वेता🍁

3 comments:

  1. अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
    दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

    आपकी ये रचना मन को छू गई है श्वेता जी। सुंदर कोमशल भावनाएं

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  2. महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
    टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको

    वाह क्या बात है

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    1. बहुत आभार शुक्रिया आपका P.K ji
      😊😊

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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