अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको
तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको
खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको
मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको
महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको
#श्वेता🍁
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको
तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको
खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको
मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको
महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको
#श्वेता🍁
अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
ReplyDeleteदर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको
आपकी ये रचना मन को छू गई है श्वेता जी। सुंदर कोमशल भावनाएं
महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
ReplyDeleteटूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको
वाह क्या बात है
बहुत आभार शुक्रिया आपका P.K ji
Delete😊😊