Tuesday 18 April 2017

सोच के पाखी

अन्तर्मन के आसमान में
रंग बिरंगे पंख लगाकर
उड़ते फिरते सोच के पाखी
अनवरत अविराम निरंतर
मन में मन से बातें करते
मन के सूनेपन को भरते
शब्दों से परे सोच के पाखी

कभी नील गगन में उड़ जाते
सागर की लहरों में बलखाते
छूकर सूरज की किरणों को
बादल में रोज नहाकर कर आते
बारिश में भींगते सोच के पाती

चंदा के आँगन में उतरकर
सितारों की ओढ़नी डालकर
जुगनू को बनाकर दीपक
परियों के देश का रस्ता पूछे
ख्वाब में खोये सोच के पाखी

नीम से कड़वी नश्तर सी चुभती
मीठी तीखी शमशीर सी पड़ती
कभी टूटे टुकडों से विकल होते
खुद ही समेट कर सजल होते
जीना सिखाये सोच के पाखी

जाने अनजाने चेहरों को गुनके
जाल रेशमी बातों का बुनके
तप्त हृदय के सूने तट पर मौन
सतरंगी तितली बन अधरों को छू
कुछ बूँदे रस अमृत की दे जाते
खुशबू से भर जाते सोच के पाखी

     #श्वेता🍁

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर
    सादर

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    1. आभार आपका दी बहुत सारा😊😊

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  2. जाने अनजाने चेहरों को गुनके
    जाल रेशमी बातों का बुनके
    तप्त हृदय के सूने तट पर मौन
    सतरंगी तितली बन अधरों को छू
    कुछ बूँदे रस अमृत की दे जाते
    खुशबू से भर जाते सोच के पाखी

    कुछ बूँदे रस अमृत की दे जाते खुशबू से भर जाते सोच के पाखी....👌👌

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका P.K ji

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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