भोर की किरणों में बिखर गये तारे
जाने किस झील में उतर गये तारे
रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे
रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे
तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे
चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे
#श्वेता🍁
जाने किस झील में उतर गये तारे
रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे
रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे
तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे
चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे
#श्वेता🍁
रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
ReplyDeleteआँख लगी कहीं निकल गये तारे
श्वेता बहुत ही सुन्दर व सधी लेखनी ,आभार।
बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका यशोदा दी।तहे दिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।
ReplyDeleteआपकी रचना प्रकाशित होने पर बहुत-बहुत शुभकामनायें।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी
Deleteबहुत सुन्दर ... तारों को इन लाजवाब भूमिकाओं में बांधा है अपने ...
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है ...
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दिगंबर जी🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका अर्चना जी
Deleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ..उम्दा .. वाह
ReplyDeleteजी आभार आपका बहुत शुक्रिया संजय जी।
DeleteYou are right very important article thanks useful article
ReplyDeleteYou are right very important article thanks useful article
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