Sunday 16 April 2017

तारे

भोर की किरणों में बिखर गये तारे
जाने किस झील में उतर गये तारे

रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे

रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे

तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे

चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे

           #श्वेता🍁

15 comments:

  1. रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
    आँख लगी कहीं निकल गये तारे

    श्वेता बहुत ही सुन्दर व सधी लेखनी ,आभार।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका ध्रुव जी।

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  2. बहुत बहुत आभार आपका यशोदा दी।तहे दिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।

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  3. आपकी रचना प्रकाशित होने पर बहुत-बहुत शुभकामनायें।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी

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  4. बहुत सुन्दर ... तारों को इन लाजवाब भूमिकाओं में बांधा है अपने ...
    अच्छी ग़ज़ल है ...

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दिगंबर जी🙏🙏

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  5. बहुत सुंदर कविता

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  6. बहुत सुंदर कविता

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    1. बहुत शुक्रिया आपका अर्चना जी

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  7. जी शुक्रिया

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  8. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ..उम्दा .. वाह

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    1. जी आभार आपका बहुत शुक्रिया संजय जी।

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  9. You are right very important article thanks useful article

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  10. You are right very important article thanks useful article

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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