सूरज डूबा दरिया में हो गयी स्याह सँवलाई शाम
मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम
थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
बिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम
छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
पोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम
चुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
अंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम
भर आँचल में जुगनू तारे बाँट आऊँ अंधेरों को मैं
भरूँ उजाला कण कण में,सोच सोच मुस्काई शाम
#श्वेता🍁
मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम
थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
बिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम
छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
पोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम
चुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
अंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम
भर आँचल में जुगनू तारे बाँट आऊँ अंधेरों को मैं
भरूँ उजाला कण कण में,सोच सोच मुस्काई शाम
#श्वेता🍁
छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
ReplyDeleteपोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम
सुंदर
जी बहुत बहुत आभार आपका P.K ji
Deleteचुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
ReplyDeleteअंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम
वाह! श्वेता बहुत ही उम्दा रचना आपकी सजीव एवं लयबद्ध।
आप एक अच्छी कवित्री हैं ,लिखते रहिए। शुभकामनायें
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपकी इतनी सराहना के लिये।आपकी शुभकामनाएँ बहुत जरूरी है ।
Deleteसाथ बनाये रखे ।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपकी इतनी सराहना के लिये।आपकी शुभकामनाएँ बहुत जरूरी है ।
Deleteसाथ बनाये रखे ।
थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
ReplyDeleteबिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम
बहुत खूब कहा है
बहुत आभार आपका संजय जी।सराहना के लिए शुक्रिया आपका।
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