अभी उम्मीद ज़िदा है अभी अरमान बाकी है
ख्वाहिश भी नहीं मरती जब तक जान बाकी है
पिघलता दिल नहीं अब तो पत्थर हो गया सीना
इंसानियत मर रही है नाम का इंसान बाकी है
कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
तो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है
कहने में क्या जाता है बड़ी बातें ऊसूलों की
मुताबिक खुद के मिल जाए वही ईमान बाकी है
आईना रोज़ कहता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले
बिना शीशे के भी खुद से मेरी पहचान बाकी है
#श्वेता🍁
ख्वाहिश भी नहीं मरती जब तक जान बाकी है
पिघलता दिल नहीं अब तो पत्थर हो गया सीना
इंसानियत मर रही है नाम का इंसान बाकी है
कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
तो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है
कहने में क्या जाता है बड़ी बातें ऊसूलों की
मुताबिक खुद के मिल जाए वही ईमान बाकी है
आईना रोज़ कहता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले
बिना शीशे के भी खुद से मेरी पहचान बाकी है
#श्वेता🍁
:)
ReplyDeleteजी आभार आपका
Deleteबहुत खूब बहुत खूब। बेमिसाल ग़ज़ल।
ReplyDeleteकहीं पर ख़्वाब बिकते हैं, कहीं ज़ज़्बात के सौदे।
तो बोलो क्या पसंद तुमको, बहुत सामान बाकी है।।
एक से एक बढ़कर ख़्याल। आपकी लेखनी को नमन श्वेता जी।
बहुत बहुत स्वागत है अमित जी आपका आपने मेरी रचनाओं को पढ़ा यहाँ आकर कृतार्थ किया।
Deleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका हृदय से अमित जी।
श्वेता जी आपकी लिखी ग़ज़ल को कविता मंच ( http://kavita-manch.blogspot.in ) पर साँझा किया गया है फुर्सत मिले तो ज़रूर आये
ReplyDeleteसंजय भास्कर
शब्दों की मुस्कराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत बहुत आभार संजय जी आपने मान दिया मेरी रचना को।माफी चाहते है बहुत आपसे समय से उपस्थित न हो सके।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 19 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका यशोदा दी बहुत सारा।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति ! श्वेता
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आभार ध्रुव।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार आपका बहुत शुक्रिया लोकेश जी।
Deleteबहुत ही सुंदर सार्थक गजल...।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका आभार सुधा जी।
Delete"कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
ReplyDeleteतो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है"..
जीवन में समाई विसंगतियों का बखूबी चित्रण जो सीधा पाठक के मन-मस्तिष्क पर असर करते हुए चित्रावली तैयार करता है। बधाई श्वेता जी।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया रवींद्र जी रचना का मर्म समझने के लिए । हृदय से धन्यवाद है आपका बहुत सारा।
Delete"कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
ReplyDeleteतो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है"..
जीवन में समाई विसंगतियों का बखूबी चित्रण जो सीधा पाठक के मन-मस्तिष्क पर असर करते हुए चित्रावली तैयार करता है। बधाई श्वेता जी।
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुशील जी।
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