भोर की प्रथम रश्मि मुस्काई
गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई
जग जाओ ओ फूलों की रानी
देख दिवस नवीन लेकर मैं आई
संग हवाओं की लहरों में इठलाकर
रंग बिरंगी परिधानों में बल खाकर
तितली भँवरों ने गीत गुनगुनाए है
गुलाब के खिले रूख़सारों पर जाकर
बिखरी खुशबुएँ मन ललचाएँ
छूने को आतुर हुई है उंगलियाँ
काश कि कोई जतन कर पाती
न मुरझाती फूलों की कलियाँ
देख सुर्ख गुलाब की भरी डालियाँ
जी डोले अँख भरे रस पियालियाँ
खिल जाते मुख अधर कपोल भी
पिया की याद में महकी जब गलियाँ
#श्वेता🍁
गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई
जग जाओ ओ फूलों की रानी
देख दिवस नवीन लेकर मैं आई
संग हवाओं की लहरों में इठलाकर
रंग बिरंगी परिधानों में बल खाकर
तितली भँवरों ने गीत गुनगुनाए है
गुलाब के खिले रूख़सारों पर जाकर
बिखरी खुशबुएँ मन ललचाएँ
छूने को आतुर हुई है उंगलियाँ
काश कि कोई जतन कर पाती
न मुरझाती फूलों की कलियाँ
देख सुर्ख गुलाब की भरी डालियाँ
जी डोले अँख भरे रस पियालियाँ
खिल जाते मुख अधर कपोल भी
पिया की याद में महकी जब गलियाँ
#श्वेता🍁
शब्दों का चयन बहुत ख़ूब ..सुन्दर रचना :)
ReplyDeleteबेहतरीन
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