कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है।
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।
गिरने से न घबराना तुम गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।
जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।
टूटे सपनों के टुकड़ों को न देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।
#श्वेता🍁
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।
गिरने से न घबराना तुम गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।
जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।
टूटे सपनों के टुकड़ों को न देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।
#श्वेता🍁
"हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है"
ReplyDeleteवाह ! वाह ! क्या कहने हैं ! बहुत खूब !
आभार बहुत आभार आपका राजेश जी।तहे दिल से शुक्रिया आपका।
Deleteजीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
ReplyDeleteबुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।
हृदय को स्पर्श करती पंक्तियाँ।
बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी आपकी सराहना के लिए शुक्रिया आपका।
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